24 हजार करोड़ खर्च रहे डेटा सिक्योरिटी पर हम ….. ?
24 हजार करोड़ खर्च रहे डेटा सिक्योरिटी पर हम:फिर भी 300% साइबर क्राइम बढ़े, सेक्सुअल हैरेसमेंट केस 6300% बढ़े…
भारत में डेटा प्रोटेक्शन बिल फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। 2018 में यूरोपीय संघ ने जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) लागू किया था। बढ़ते साइबर क्राइम्स और व्यक्तियों के साथ ही कंपनियों के डेटा प्रोटेक्शन की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना गया था। उसके बाद से ही भारत में भी डेटा प्रोटेक्शन बिल पर काम शुरू हो गया था। संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के संशोधनों और सुझावों पर अटका यह बिल तो फिलहाल सरकार ने संसद से वापस ले लिया है, मगर डेटा प्रोटेक्शन और साइबर सिक्योरिटी की स्थिति नहीं सुधरी है। साइबर क्राइम के मामले 2018 में 27 हजार से ज्यादा थे जो 2020 में बढ़कर 50 हजार से भी ज्यादा, यानी लगभग दोगुना हो गए। भारत में साइबर सिक्योरिटी पर खर्च 2019 में करीब 15 हजार करोड़ रु. था, जो 2022 में 24 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। आंकड़ों से समझिए कि आखिर भारत को डेटा प्रोटेक्शन बिल की जरूरत क्यों है?
पहले समझिए, भारत में साइबर क्राइम की बढ़ती रफ्तार
साइबर फ्रॉड और पहचान चुराना सबसे तेज बढ़ते अपराध…दक्षिणी राज्यों में यह ज्यादा
2020 में दर्ज हुए कुल साइबर क्राइम के केसों में सबसे ज्यादा 10395 मामले साइबर फ्रॉड के थे। इसमें से 4047 केस सीधे तौर पर ऑनलाइन बैंकिंग के फ्रॉड से जुड़े थे। साइबर क्राइम्स का दूसरा सबसे बड़ा मोटिव पहचान चुराना, यानी आइडेंटिटी थेफ्ट था। इसके कुल 5110 केस दर्ज किए गए। एक खास बात ये भी है कि आइडेंटिटी थेफ्ट के 3513 केस सिर्फ कर्नाटक में ही दर्ज किए गए जो बाकी पूरे देश के मुकाबले ज्यादा हैं। वहीं साइबर फ्रॉड के भी सबसे ज्यादा 3316 केस तेलंगाना में दर्ज किए गए। इसके बाद महाराष्ट्र (2032) और बिहार (1294) का नंबर आता है।
अब समझिए, भारत में साइबर सिक्योरिटी पर खर्च का गणित
साइबर सिक्योरिटी के लिए भारतीय बैंकिंग, फाइनांस, इंश्योरेंस और IT कंपनियां हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती हैं। इसमें निजी सर्वर का खर्च डेटा इनक्रिप्शन और फायरवॉल जैसे उपाय शामिल हैं। साइबर सिक्योरिटी पर सरकारी उपक्रमों ने भी 2022 में 462 करोड़ रुपए खर्च किए। हालांकि बैंकिंग व IT सेक्टर की तुलना में यह खर्च बहुत कम है।
जानिए, क्यों जरूरी है डेटा प्रोटेक्शन
इंटरनेट यूजर्स की आबादी में चीन के बाद हमारा नंबर, 85 करोड़ के हाथ में स्मार्टफोन
इंटरनेट यूजर्स की आबादी के लिहाज से भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। 2022 में देश की 66% आबादी यानी करीब 85 करोड़ लोग स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे हैं। स्वास्थ्य और बैंकिंग सेक्टर से जुड़ी ज्यादातर सेवाएं अब ऑनलाइन इस्तेमाल की जा रही हैं। कोविड के दौरान शिक्षा और रिटेल सेक्टर से जुड़ी सेवाएं भी ऑनलाइन आ गई हैं। ऐसे में नागरिकों और कंपनियों के लिए अपना डेटा सुरक्षित रखना बहुत जरूरी हो गया है।
- मौजूदा नियमों में डेटा सिक्योरिटी के उल्लंघन पर शिकायत की प्रक्रिया बहुत उलझाऊ है।
- नए नियमों में एक डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी (DPA) का गठन किया जाएगा जो हर शिकायत सुनेगा।
- लोगों या कंपनियों का डेटा एकत्र करने वाले हर प्लेटफॉर्म को DPA रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
- डेटा लोकलाइजेशन पर जोर होगा यानी डेटा कंपनियों को भारतीयों का डेटा देश में ही सर्वर में स्टोर करना होगा।
- निजी व्यक्ति, कंपनियों और सरकार सभी के डेटा प्रोटेक्शन को नए बिल में समाहित किया जाएगा।