रेवड़ियां बांटने की संस्कृति की जड़ें कहां हैं, यह समझना जरूरी

बिहार में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी राजद के साथ नीतीश कुमार की नई जोड़ी, यूपी के नोएडा में सरकारी गनर से लैस श्रीकांत त्यागी का उत्पात, महाराष्ट्र में संजय राठौड़ की कैबिनेट मंत्री के तौर पर प्रोन्नति : ऐसे सभी मामलों में सत्ता हासिल करने के लिए दलबदलू अपराधियों से गठजोड़ होता है और फिर काले कारनामों को ढकने के लिए गरीब जनता को फ्री की रेवड़ियों से नवाजा जाता है।

प्रधानमंत्री पिछले कुछ महीनों से रेवड़ी कल्चर खत्म करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग की सलाह के अनुसार अभी तक कोई कानून नहीं बनाया। आयोग ने भी संवैधानिक संस्था की दुहाई देते हुए सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त होने वाली एक्सपर्ट कमेटी से खुद को बाहर रखने की दरख्वास्त की है। हर घर तिरंगा फहराने के साथ रेवड़ी-मर्ज के इलाज के लिए इसके इन 8 पहलुओं को समझने की जरूरत है।

1. आजादी के बाद शास्त्री युग तक के नेताओं के लिए सत्ता देशसेवा का माध्यम थी। इंदिरा गांधी और परवर्ती नेताओं ने सत्ता पर एकाधिकार कायम रखने के लिए भ्रष्ट नेताओं को प्रश्रय देने के साथ मासूम वोटरों को फुसलाने के लिए रेवड़ी संस्कृति शुरू कर दी थी। 2. संविधान में लोगों को जीवन का अधिकार हासिल है। रिजर्व बैंक के अनुसार सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा की योजनाएं जनकल्याण करने के साथ अर्थव्यवस्था को पुष्ट करती हैं। लेकिन फ्री बिजली, पानी, सार्वजनिक यातायात, ऋण माफी जैसी चुनावी रेवड़ियां उत्पादकता में कमी लाने के साथ ही गरीबी, असमानता और बेरोजगारी के दुश्चक्र को बढ़ाती हैं। 3. जेपी और वीपी सिंह के आंदोलनों से सत्ता में गैरकांग्रेसी नेताओं का वर्चस्व बढ़ा था, लेकिन भ्रष्ट सिस्टम नहीं सुधरा। राज्यों में क्षेत्रीय दलों और केंद्र में गठबंधन सरकारों के दौर में रेवड़ी के साथ क्षेत्र, जाति और धर्म का झुनझुना बजने से स्थिति बद से बदतर हो गई। 4. अन्ना आंदोलन के दौर में मोदी ने भ्रष्टाचार के खात्मे, तो केजरीवाल ने गवर्नेंस में बदलाव के नाम पर सत्ता हासिल की। लेकिन व्यवस्था परिवर्तन के दुर्गम पथ पर चलने के बजाय त्यागी और राठौड़ जैसे नेताओं की सेटिंग और रेवड़ी कल्चर के शॉर्टकट से सत्ता हासिल करना बेहतर समझा। 5. चुनावी वादों के अलावा रेवड़ी के चार और तरीके हैं- सरकारी बैंकों में 5 सालों में 10 लाख करोड़ की बट्टे खाते की रकम; उद्योगपतियों को लाखों करोड़ की सालाना सब्सिडी; 70 लाख लोगों को केंद्र से 2.54 लाख करोड़ की पेंशन; कोरोना काल में 80 करोड़ लोगों को फ्री में राशन। 6. रिजर्व बैंक और कैग रिपोर्ट के अनुसार कई राज्यों में कुल खर्च का 90 फीसदी राजस्व खर्चों के तौर पर हो रहा है। ये राज्य भाजपा, कांग्रेस, आप, कम्युनिस्ट पार्टी, टीएमसी सहित दूसरे दलों द्वारा शासित हैं। विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर लिए गए कर्ज से मुफ्त की रेवड़ी बांटने की वजह से राज्यों की हालत खस्ता हो गई है। 7. संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अधिकारों का इस्तेमाल करके टीएन शेषन ने चुनावी व्यवस्था को काफी दुरुस्त कर दिया था। मतदाताओं को रेवड़ी बांटना घूसखोरी है, लेकिन उसे रोकने के लिए अब चुनाव आयोग के पास इच्छाशक्ति नहीं दिखती। वित्त आयोग की सलाह की ऐसे मामलों में क्या वैधानिक मान्यता होगी? सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित एक्सपर्ट समिति से क्या उम्मीदें पाली जाएं? 8. रेवड़ियों की लॉन्चिंग, विज्ञापन और उद्घाटन समारोह में सत्ताधारियों की फोटो के लिए अब पुलिस फोर्स भी जुटने लगी है। रेवड़ियों के साथ नेताओं की फोटो छपना जरूरी है तो आर्थिक बदहाली के आंकड़ों के साथ भी नेताओं की फोटो का विज्ञापन छापने के लिए सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी करे। जो करे वही भरे के इस छोटे कदम से रेवड़ी-मर्ज से मुक्ति का दरवाजा खुल सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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