नए ऊर्जा कानून से महंगे होंगे फ्लैट्स …?

रिहायशी इमारतों पर पहली बार लागू होगा ग्रीन एनर्जी कोड…बिजली बचेगी मगर घर की लागत बढ़ेगी….

अब तक किसी नए हाउसिंग प्रोजेक्ट के विज्ञापन में ‘ग्रीन लिविंग’, या ‘ग्रीन एनर्जी’ जैसे शब्द फ्लैट की ज्यादा कीमत वसूलने का MARKETING GIMMICK माने जाते हैं। लेकिन अब ग्रीन एनर्जी के नए कानून से फ्लैट्स की कीमत में वाकई बढ़ोतरी होना तय है। सोमवार 8 अगस्त को लोकसभा ने ऊर्जा संरक्षण कानून (ECA) में संशोधनों को हरी झंडी दे दी है। राज्यसभा से पारित होकर यह संशोधन कानून में बदले तो कर्मशियल इमारतों की ही तरह बड़ी रेसिडेंशियल इमारतें भी ECA के दायरे में होंगी। यानी इन इमारतों को भी क्लीन एनर्जी के इस्तेमाल से जुड़े नियम अनिवार्य तौर पर मानने होंगे। उल्लंघन पर फ्लैट के मालिक या उसमें रहने वाले को जुर्माना भी भरना पड़ेगा। इन नियमों में निर्माण सामग्री, खिड़कियों के आकार और छत की ऊंचाई जैसे कंस्ट्रक्शन रूल्स के साथ ही बिजली के उपकरणों के इस्तेमाल पर भी रूल्स शामिल होंगे। यह नियम फ्लैट्स की निर्माण लागत 3 से 5% तक बढ़ाएंगे। वास्तविक गाइडलाइन्स तो संशोधन बिल के कानून बनने के बाद ही जारी होंगे। तब तक समझिए, ECA की वजह से क्यों बढ़ेगी फ्लैट्स की कीमत…

 

COP26 का संकल्प 2070 तक नेट एमिशन करना है जीरो…तभी ECA में संशोधन

ऊर्जा संरक्षण कानून 2001 में बना था। 2010 में इसमें पहली बार संशोधन किए गए थे। अब पिछले साल नवंबर में ग्लासगो में हुए पर्यावरण सम्मेलन COP26 में लिए गए संकल्पों को देखते हुए इसमें दोबारा संशोधन किए जा रहे हैं। इस सम्मेलन में भारत ने 2070 तक नेट कार्बन एमिशन जीरो करने का लक्ष्य रखा था।

अब तक EAC के दायरे में स्कूल, हॉस्पिटल, मॉल समेत कमर्शियल इमारतें ही हैं

EAC के तहत गठिक ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशियेंसी (BEE) ने 2017 में ENERGY CONSERVATION BUILDING CODE (ECBC) जारी किया था। यह कोड कॉमर्शियल इमारतों पर लागू होता है, जिसमें स्कूल, हॉस्पिटल, मॉल, होटल भी शामिल हैं। इस कोड के तहत ऊर्जा संरक्षण की न्यूनतम अनिवार्य शर्तें तय हैं। साथ ही इमारत की ऊर्जा संरक्षण की क्षमता को बढ़ाने के लिए सुझाव भी हैं।

रिहायशी इमारतों के लिए पहली बार आएगा एनर्जी कोड ऑफ कंडक्ट

अभी तक भारत में रिहायशी इमारतों में ऊर्जा संरक्षण के लिए कोई भी नियम नहीं है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 2018 में ईको निवास संहिता जारी की थी, मगर इसे लागू करना अनिवार्य नहीं था। जो रिहायशी प्रोजेक्ट इन्हें अपनाने का दावा करते थे वो फ्लैट्स का दाम भी ज्यादा रखते थे। ज्यादा दाम चुकाने के बाद भी यह गारंटी नहीं होती थी कि ग्रीन एफिशियेंसी के पैमाने पर यह फ्लैट कितने खरे उतरते।

बिल्डिंग का इलेक्ट्रिसिटी लोड 100 किलोवॉट या इससे ज्यादा तो अब EAC के दायरे में

कानून में संशोधन के बाद हर वो रिहायशी इमारत जिसका इलेक्ट्रिसिटी लोड 100 किलोवॉट या इससे ज्यादा है वह EAC के दायरे में होगी। इस हिसाब से देखा जाए तो 10 2BHK फ्लैट्स वाली बिल्डिंग या 20 1BHK फ्लैट्स वाली बिल्डिंग्स भी इस दायरे में होंगी। हालांकि अभी तक एकल मकानों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। केंद्र रिहायशी इमारतों में ऊर्जा संरक्षण के लिए अपने हिसाब से गाइडलाइन तैयार करेगा। राज्य सरकारें अपनी स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए इसमें बदलाव भी कर सकेंगे।

अब समझिए, नए कानून से फ्लैट्स महंगे कैसे होंगे

EAC में संशोधन के बाद रिहायशी इमारतों के लिए गाइडलाइन्स तय होंगी, लेकिन 2018 में जारी ईको निवास संहिता (ENS) को भी आधार मानें तो नए फ्लैट बनाने और मौजूदा फ्लैट्स में बदलाव करने की लागत काफी होगी।

  • – ENS के मुताबिक आदर्श रूप से किसी कमरे की दीवार के 60% हिस्से में खिड़की होनी चाहिए। इसमें 54% हिस्सा खुलने योग्य होना चाहिए।
  • – अभी वॉल टु विंडो रेश्यो आम तौर पर 10% के आसपास होता है। कुछ ही फ्लैट्स में यह 30% तक होता है।
  • – निर्माण में आदर्श रूप से दीवार 300 MM ऑटोक्लेव्ड एयरेटेड कंक्रीट (AAC) की होनी चाहिए। जिस पर दोनों तरफ 15 MM का प्लास्टर होना चाहिए।
  • – अभी ज्यादातर बिल्डिंग्स में दीवारें 150 MM RCC की बनी होती हैं। AAC के इस्तेमाल से लागत बढ़ेगी।
  • – इसके अलावा लाइट्स किस तरह की होंगी और AC का आदर्श तापमान क्या होगा यह भी नई गाइडलाइन्स में तय होगा।

2030 तक हम बचाएंगे 300 अरब यूनिट बिजली

सरकार ने संशोधन कानून के ड्राफ्ट में कहा है कि इन उपायों के जरिये हम 2030 तक 300 अरब यूनिट बिजली बचाने में सक्षम होंगे। सरकार ने यह भी माना है कि इन उपायों की वजह से फ्लैट्स की निर्माण लागत बढ़ेगी मगर यह माना जा रहा है कि बिजली के बिल में होने वाली बचत के जरिये इस अतिरिक्त खर्च की 4 से 5 साल में भरपाई हो जाएगी।

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