कौन हैं रोहिंग्या, ये भारत में कैसे आए, कोर्ट और सरकार का इन्हें लेकर क्या रुख?

रोहिंग्या मुसलमान चर्चा में हैं। आखिर कौन हैं ये रोहिंग्या प्रवासी? ये भारत कैसे पहुंचे और यहां क्यों आए? देश में इस तरह के कितने अवैध प्रवासी रहते हैं? आइए जानते हैं
रोहिंग्या प्रवासियों को लेकर केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के एक ट्वीट के बाद बवाल मचा है। पुरी ने इन लोगों को बाहरी दिल्ली के बक्करवाला में अपार्टमेंट में स्थानांतरित करने की बात कही। पुरी की बात का दिल्ली की आप सरकार ने विरोध किया। बाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से सफाई आई। गृह मंत्रालय ने कहा कि अवैध प्रवासियों को इस तरह के फ्लैट देने का सरकार की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं है।

इस विवाद के बाद एक बार फिर रोहिंग्या मुसलमान चर्चा में हैं। आखिर कौन हैं ये रोहिंग्या प्रवासी? ये भारत कैसे पहुंचे और यहां क्यों आए? देश में इस तरह के कितने अवैध प्रवासी रहते हैं?

कौन हैं रोहिंग्या?

कहानी 16वीं शताब्दी से शुरू होती है। जगह म्यांमार के पश्चिमी छोर पर स्थित राज्य रखाइन थी। जिसे अराकान भी कहते हैं। इस राज्य में उस दौर से ही मुस्लिम आबादी रहती थी। 1826 में हुए पहले एंग्लो-बर्मा युद्ध के बाद अराकान पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। युद्ध में जीत के बाद अंग्रेजों ने बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) से मुसलमान मजदूरों को अराकान लाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे रखाइन में मुस्लिम मजदूरी की आबादी बढ़ती गई। बांग्लादेश से आकर रखाइन में बसी इसी मुस्लिम आबादी की रोहिंग्या कहा जाता है।

1948 में  म्यांमार पर से ब्रिटिश शासन का अंत हुआ और वह आजाद मुल्क के रूप में अस्तित्व में आया। तभी से यहां की बहुसंख्यक बौद्ध आबादी और मुस्लिम आबादी के बीच विवाद शुरू हो गया। रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल विन की सरकार ने 1982 में  देश में नया राष्ट्रीय कानून लागू किया। इस कानून में रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया। तभी से म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती रही है। तब से रोहिंग्या बांग्लादेश और भारत में घुसपैठ करके यहां आते रहे हैं।

रोहिंग्या कैंप
रोहिंग्या कैंप –

2012 में हुए दंगों के बाद बढ़ा पलायन

2012 में रखाइन में सांप्रदायिक दंगे हुए। इसके बाद यहां से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन और बढ़ा। रखाइन में 2012 से ही सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में हजारों लोग मारे जा चुके हैं तो लाखों विस्थापित भी हुए हैं। 2014 में हुई जनगणना में म्यांमार सरकार ने रखाइन के करीब 10 लाख लोगों को जनगणना में शामिल नहीं किया। ये वही लोग थे जिन्हें म्यांमार सरकार रोहिंग्या घुसपैठिया मानती है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट कहती है कि करीब 1,30,000 हजार रोहिंग्या लोग आज भी शरणार्थी कैम्पों में रह रहे हैं। वहीं, छह लाख से ज्यादा रोहिंग्या लोग ऐसे हैं जिन्हें अभी भी अपने गांवों में ही बुनियादी सेवाओं तक से महरूम रखा गया है।

म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार किया जाता है। लाखों रोहिंग्या मुसलमान बिना दस्तावेज के दशकों से बांग्लादेश में रह रहे हैं। वहीं, कई रोहिंग्या मुसलमान अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कर चुके हैं।

भारत में इस तरह के कितने अवैध प्रवासी रहते हैं?

सरकार कई मौकों पर लोकसभा में इसे लेकर जवाब दे चुकी है। अगस्त 2021 में लोकसभा में गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि अवैध प्रवासी बिना वैध दस्तावेज के गैरकानूनी और गुप्त तरीके से देश में घुसते हैं। इस वजह से देश में अवैध रूप से रह रहे अवैध रोहिंग्या मुसलमानों का कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

जम्मू के रोहिंग्या
जम्मू के रोहिंग्या

कोर्ट का रोहिंग्या को लेकर क्या रुख है?

सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या प्रवासियों को लेकर कई याचिकाएं लंबित हैं। इनमें से एक याचिका 2017 में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने लगाई थी। उपाध्याय ने अपनी याचिका में भारत में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों और रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान करके उन्हें एक साल में वापस उनके देश भेजने की मांग की थी। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा था। केंद्र और ज्यादातर राज्य सरकारों ने अब तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है। वहीं, कुछ राज्यों ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट जो आदेश देगा वो उसका पालन करेंगे।

कई रोहिंग्या लोगों ने प्रशांत भूषण के जरिए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी। इस याचिका में रोहिंग्या लोगों को भारत में शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की गई है। इस पर फैसला आना बाकी है। वहीं, 2021 में भी इसी तरह की एक याचिका लगी थी। तब जम्मू की जेल में बंद 168 रोहिंग्या लोगों को रिहा करने और उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने की अपील की गई थी। कोर्ट ने ऐसा आदेश देने से इनकार कर दिया था। साथ ही कोर्ट ने कहा था कि सरकार इन लोगों को तब तक जेल में रखे, जब तक उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए इन्हें वापस भेजने की व्यवस्था नहीं हो जाती।

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