जीडीए की महाराजपुरा योजना को सिया से मिली अनुमति..!

14 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली 45 मीटर गहरी खदानों को झील के रूप में करें विकसित ..

ग्वालियर विकास प्राधिकरण की बहुप्रतीक्षित महाराजपुरा आवासीय योजना फेज-चार को सिया (मप्र स्टेट एन्वायरनमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथाॅरिटी) से पर्यावरण स्वीकृति मिल गई है। 47 हेक्टेयर में शुरू होने वाली इस योजना के14 हेक्टेयर क्षेत्र में खदान का एक बहुत बड़ा गड्ढा है। इसकी गहराई 45 मीटर तक है।

इस प्रोजेक्ट के संबंध में जब प्राधिकरण के अधिकारियों ने मप्र प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी एचएस मालवीय से चर्चा की तो उन्होंने यहां झील बनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ब्लास्टिंग के चलते 14 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली खदान में बड़ा गड्ढा हो गया है।

ऐसे में यहां भराव कर निर्माण कार्य कराने से बेहतर होगा इसमें पानी भरकर झील के रूप में विकसित किया जाए। ऐसे में इसे न सिर्फ पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा, बल्कि झील बनने के बाद आसपास के क्षेत्र का भू-जलस्तर भी बढ़ेगा। प्राधिकरण ने प्रदूषण बोर्ड का सुझाव माना तो शताब्दीपुरम में ग्वालियर की पहली कृत्रिम झील बनाई जाएगी।

प्रोजेक्ट के तहत 11750 पौधे रोपे जाएंगे

इस प्रोजेक्ट में जीडीए द्वारा अलग-अलग तरह के कुल 11750 पौधे रोपे जाएंगे। इसके साथ ही यहां रेनवाटर हार्वेस्टिंग और फायर फाइटिंग उपकरण लगाए जाएंगे। साथ ही कमर्शियल एरिया, हेल्थ सेंटर और स्कूल भी स्थापित किए जाएंगे।

30 मीटर क्षेत्र ग्रीन बेल्ट होगा
जीडीए ने सिया में जो रिपोर्ट पेश की, उसमें खदान के चारों तरफ के 30 मीटर क्षेत्र में ग्रीन बेल्ट विकसित करने की बात कही है। ऐसे में यदि खदान कोे झील के रूप में योजनाबद्ध तरीके विकसित किया गया तो बहुत बड़ा पर्यटक स्थल तैयार किया जा सकेगा। जहां वाटर एक्टिविटी के साथ ही खान-पान के स्टाल की सुविधा दी जा सकेंगी।

पानी की व्यवस्था करना बड़ी चुनौती

प्रदूषण बोर्ड की सलाह बहुत अच्छी है, लेकिन इसके क्रियान्वयन से पहले सर्वे कराना होगा। ताकि ये पता चल सके कि खदान को पानी से भरना वास्तविक रूप में संभव है या नहीं? उदाहरण के लिए यदि चट्टान में ब्लास्टिंग के चलते दरार आ गई हैं, तो पानी रिसेगा। इससे पानी वहां नहीं ठहरेगा। इसके लिए उन्हें भरना पड़ेगा। ऐसी तमाम जानकारी एकत्रित करने के बाद ही इस विषय पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
-एके सक्सेना, एसो. प्रोफेसर व पर्यावरण विशेषज्ञ

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