हाईटेक कारों के फीचर्स जानलेवा …!

ड्राइवर्स के दिमाग पर कार के फीचर्स बढ़ा रहे लोड, रोड एक्सिडेंट से हर घंटे 150 मौतें …

2001 में अमेरिकी सुपरमॉडल निकी टेलर की कार का एक्सिडेंट हो गया। सिर में चोट लगने से वह महीने भर तक कोमा में रहीं। उनके ड्राइवर का ध्यान कॉल की वजह से भटक गया था। इसी तरह 2012 में ब्रिटिश सिंगर पीटर फ्रेम्पटन रोड का एक्सिडेंट हो गया। उन्हें टक्कर मारने वाली महिला कार चलाने के साथ मोबाइल पर चैटिंग भी कर रही थी।

इन दोनों फेमस सेलिब्रिटीज के रोड एक्सिडेंट काफी चर्चा में रहे थे। अब, 4 सितंबर 2022 को टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की सड़क हादसे में मृत्यु से रोड सेफ्टी पर फिर से बहस शुरू हो गई है।

दुनिया का पहला कार एक्सिडेंट 153 साल पहले हुआ था। तबसे लेकर साइरस मिस्त्री तक करोड़ों लोग ऐसे हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के मुताबिक दुनिया भर में हर साल करीब 13 लाख लोगों की मौत सड़क हादसों की वजह से हो जाती है। इन हादसों की एक बड़ी वजह गाड़ी चलाते समय मोबाइल इस्तेमाल करना है, लेकिन भारत में लोग न तो अपनी गलती मानते हैं, न ही उससे सबक सीखते हैं।

सड़क हादसे बढ़ने लगे तो रोड सेफ्टी के लिए उपाय भी तेज हो गए। कार बनाने वाली कंपनियां ड्राइविंग को सेफ बनाने के लिए एक से बढ़कर एक फीचर लाने लगीं। कारों में इंटेलिजेंट डिवाइस लगने लगीं। दावे हो रहे हैं कि इनसे सफर आरामदेह और सुरक्षित होगा। लेकिन, क्या यह दावे पूरी तरह सही हैं? या फिर हाईटेक कारों के ये फीचर्स हादसों की वजह बन रहे हैं?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि टेक्नोलॉजी हमें सेफ तो फील करा रही है, लेकिन गाड़ी चलाते वक्त उतना ही ध्यान भी भटका रही है। रोड से सिर्फ 2 सेकेंड के लिए नजर हटाने से कार एक्सिडेंट का खतरा दोगुना हो जाता है। यह अमेरिका की संस्था ‘ट्रिपल-ए फाउंडेशन फॉर ट्रैफिक सेफ्टी’ की एक स्टडी में पता चला है । दूसरी तरफ कार में टेक्निकल फीचर्स इतने बढ़ गए हैं कि आंख, हाथ और दिमाग तीनों का फोकस ड्राइविंग के साथ-साथ, इन फीचर्स का इस्तेमाल करने पर भी हो रहा है। टेक्नोलॉजी ड्राइविंग सीट पर बैठे ड्राइवर के माइंड और साइकोलॉजी पर कैसे असर कर रही है, इसको समझना होगा।

ड्राइविंग की साइकोलॉजी: समझें ड्राइवर का दिमाग कैसे करता है काम

ड्राइविंग हो या कोई दूसरा काम। कुछ भी करने से पहले हमारा दिमाग फैसला लेता है। फिर हम उस फैसले को अमल में लाते हैं। यानी कोई एक्शन करते हैं। जैसे, गाड़ी चलाते हुए दाएं मुड़ना है या बाएं, कब स्पीड तेज करनी है, कब ब्रेक लगाने हैं? दिमाग के फैसला लेते ही हमारे हाथ-पैर उसी तरह चलते हैं।

किसी भी काम को करने के लिए दिमाग इसी तरह फैसले लेता है। जैसे अभी आप यह रिपोर्ट पढ़ रहे हैं। कोई लाइन आपको दोबारा पढ़नी है, अगला पैराग्राफ पढ़ने के लिए माउस या अंगूठे की मदद से नीचे जाना है या फिर इस रिपोर्ट के किसी ग्राफिक्स को शेयर करना है, इन सारे कामों में दिमाग फैसले लेता है और आपका हाथ चलता है।

जब आंख, कान, हाथों और दिमाग का तालमेल किसी वजह से गड़बड़ाता है, तो एक्सिडेंट की आशंका बढ़ जाती है…

लेकिन, दिमाग आखिर यह सब करता कैसे है, इसकी एक दिलचस्प प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को समझिए ड्राइविंग के उदाहरण से…

ज्ञानेंद्रियां खोलती हैं दिमाग के दरवाजे, पिछले अनुभव सिखाते हैं ड्राइविंग
ज्ञानेंद्रियां यानी आंख, नाक, कान, त्वचा और जीभ। जिनसे हम देख, सुन और सूंघ पाते हैं, स्वाद और ताप का एहसास कर पाते हैं। इसे ही साइकोलॉजी में ‘परसेप्शन’ कहते हैं।

इन्हीं पांचों ज्ञानेंद्रियों से 5 तरह के परसेप्शन बनते हैं। इनमें ड्राइवर के लिए विजुअल परसेप्शन सबसे अहम है। जैसे आगे कोई मोड़ है या स्पीड ब्रेकर तो इन्हें देखकर कार की स्पीड कम करनी होगी। ड्राइविंग से जुड़े अनुभव और पिछली यादें ही ड्राइविंग स्किल्स को तराशती है। ड्राइविंग के पिछले अच्छे, बुरे अनुभवों को दिमाग याददाश्त के तौर पर संभाल कर रखता है।

लेकिन, ब्रेन में ढेर सारी यादों के स्टोर होने के बावजूद कभी-कभी ड्राइविंग करते समय चूक हो ही जाती है। इस चूक की वजह है डिस्ट्रैक्शन…

आइए, अब आपको बताते हैं कि ड्राइविंग के दौरान दिमाग, आंख और कान जब मल्टीटास्क करने लगते हैं तो ड्राइविंग पर उसका क्या असर पड़ता है।

मेंटल मल्टीटास्किंग: दिमाग पर बढ़ा लोड तो बढ़ गईं दुर्घटनाएं
दुनियाभर में तमाम रिसर्च हुई हैं, जिनमें यह पाया गया है कि सबसे ज्यादा सड़क हादसे ध्यान भटकने की वजह से ही होते हैं। ध्यान भटकने की सबसे बड़ी वजह गाड़ी चलाते हुए मोबाइल पर बात करना बताई गई है। अमेरिका और यूरोप में रोड एक्सिडेंट बढ़े तो 1993-94 में कार नेविगेशन सिस्टम के इस्तेमाल पर सबका ध्यान गया। मैप देखते वक्त ड्राइवरों का ध्यान बंटने और उनपर मेंटल वर्कलोड बढ़ने से वहां हादसे भी बढ़ गए।

विजुअल मल्टीटास्किंग: देखकर भी नहीं देखा, हो गया हादसा…
यह तो आपने बुजुर्गों से ही सुना होगा कि सही फैसला लेने के लिए जरूरी है कि दिमाग सही से काम करे। लेकिन, परसेप्शन में किसी तरह की गड़बड़ी हो तो फैसला भी गड़बड़ हो सकता है। एक्सिडेंट होने पर लोगों को कहते सुना है न, ‘देखकर भी ध्यान नहीं दिया…’, ‘ध्यान चूक गया…।’

जैसे, आंखों ने रेड लाइट देखी। इसी बीच मोबाइल की घंटी बजी। ध्यान मोबाइल स्क्रीन पर गया। आंखों ने जो पहले देखा था, दिमाग उसे छोड़ मोबाइल पर स्क्रीन पर चला गया। यानी, ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।’

हमारे बुजुर्ग इसे लापरवाही भी कहते हैं। कानून है कि गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल नहीं यूज करना है, लेकिन लोगों को नियम-कानून मालूम ही नहीं है, जिससे लापरवाही जारी रहती है…

विजुअल डिस्ट्रैक्शन यानी नजर हटी, दुर्घटना घटी

ड्राइविंग के दौरान ड्राइवर का ध्यान गाड़ी, सड़क और आसपास के माहौल पर होना चाहिए। लेकिन, नेविगेशन से लेकर दूसरी ‘इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन डिवाइस’ के इस्तेमाल के दौरान ड्राइवर की नजर रोड से हटती है। यह ‘विजुअल डिस्ट्रैक्शन’ दिमाग को भटका देता है। जिससे हादसे होते हैं।

जापान में ‘विजुअल डिस्ट्रैक्शन’ पर एक रिसर्च हुई। जिसमें सुझाव दिया गया कि हादसे रोकने के लिए बेहतर होगा कि ड्राइविंग के दौरान सिर्फ वही काम करें, जो गाड़ी चलाने के लिए जरूरी हैं। सिर्फ ड्राइविंग पर फोकस करें। नॉन-ड्राइविंग एक्टिविटीज कम से कम हों। जो हों, वे बहुत कठिन न हों।

इस परेशानी को अमेरिकी सेना के फेमस अपाचे हेलिकॉप्टर्स के कॉकपिट की डिजिटल स्क्रीन के डिस्प्ले के जरिए समझते हैं।
अमेरिकी सेना के पायलट्स के लिए जब बोझ बने हेलिकॉप्टर के डिस्प्ले फीचर्स
1980 के दशक के आखिर में अमेरिकी सेना ने लड़ाकू हेलिकॉप्टर अपाचे पर एक रिसर्च करवाई। एक्सपर्ट्स से पता लगाने को कहा गया कि कॉकपिट की डिजिटल स्क्रीन और एनालॉग डिस्प्ले पर लगातार आने वाली ढेर सारी सूचनाओं पर पायलट का रेस्पॉन्स कैसा है।
रिसर्च में पता लगा कि पायलट्स को एक ही समय में बहुत सारी चीजों पर ध्यान देना पड़ रहा है। इससे उनकी परफॉर्मेंस तो घट ही रही है, हेलिकॉप्टर के क्रैश होने का खतरा भी बढ़ रहा है।
अगले दशक में अमेरिकी सेना ने हेलिकॉप्टर्स के कॉकपिट को दोबारा से डिजाइन किया, जिससे पायलट्स को अपना फोकस बनाए रखने में मदद मिल सके। इसी तरह कार ड्राइविंग में भी डिस्प्ले फीचर्स ध्यान भटकाते हैं।

अमेरिकी सेना ने जो गलती सुधारी, कार कंपनियों ने वही गलतियां अपना लीं। यकीन नहीं, तो देखिए इस सर्वे में हाइटेक कार चलाने वालों ने क्या कहा…

कानों की मल्टीटास्किंग: कहीं और लगाया कान तो बिगड़ जाएगा ध्यान
गाड़ी चलाते वक्त ट्रैफिक का शोर कानों को तंग करने लगे, तो ध्यान बंटता है। इसी तरह, हॉर्न का इस्तेमाल दूसरे ड्राइवरों को सचेत करने के लिए किया जाता है, लेकिन अगर ये हॉर्न ज्यादा तेज और लगातार बजने लगें तो उसका ड्राइविंग पर बुरा असर पड़ता है। इसीलिए बेवजह हॉर्न बजाने से मना किया जाता है और ऐसा करने पर 2000 रुपए तक का फाइन भी लगता है।

जो फीचर्स पायलट के लिए बन गए थे खतरा, वैसे ही फीचर अब कारों में आ रहे
अमेरिकी सेना के हेलिकॉप्टर के कॉकपिट की रीडिजाइनिंग में मदद करने वाले न्यूरो साइंटिस्ट डेविड स्ट्रेयर कहते हैं कि अपाचे हेलिकॉप्टर में ‘डिजिटल इंटरफेस ट्रेंड’ पायलट्स के लिए बोझ साबित हो रहे थे। लेकिन, आज की कारों में टच स्क्रीन, इंटरैक्टिव मैप से लेकर वॉइस कॉलिंग और मैसेजिंग तक के लिए फीचर्स आने लगे हैं।

फीचर्स के मामले में हेलिकॉप्टर को टक्कर देने वाली ये कारें ‘सेमी-ऑटोनमस’ कैटेगरी में आती हैं। आइए इसके बारे में और जानते हैं…

कार में इतने ज्यादा फीचर्स का आना ड्राइवर्स का दिमाग उलझाने और परेशानियां बढ़ाने के लिए काफी है। लेकिन कार एक लग्जरी आइटम है और कार में कई फीचर्स का होना कार बायर्स की शान बढ़ाता है। स्पीड को लेकर हमारा शौक और जुनून इतना बढ़ता गया है कि कार की ड्राइविंग सीट को पायलट सीट तक कह देते हैं। डेविड स्ट्रेयर के मुताबिक कार की खूबसूरती बढ़ाने वाले फीचर्स अगर लापरवाही से इस्तेमाल किए जाएं तो जानलेवा साबित हो रहे हैं। हेलिकॉप्टर्स के कॉकपिट की रीडिजाइनिंग से कार मेकर्स और ड्राइवर्स दोनों को सीख लेनी चाहिए।

लग्जरी फीचर्स जो आपसे गलती करा बैठते हैं

अमेरिका की ऑटो मार्केट रिसर्च फर्म जेडी पावर ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि कार में लगे इंफोटेनमेंट सिस्टम में सबसे बड़ी दिक्कत उनका ठीक से काम न करना है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ड्राइवर इन फीचर्स पर जरूरत से ज्यादा निर्भर हो जाते हैं, जिससे लापरवाही की आशंका बढ़ जाती है।

ठीक ऐसे ही एसी चलाने और म्यूजिक प्लेलिस्ट चेंज करने के लिए वाइस कमांड को लाने के पीछे तर्क दिया गया था कि इससे ड्राइवर को स्टीयरिंग से हाथ नहीं हटाना पड़ेगा। 2019 में डेविड स्ट्रेयर की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की, जिसके मुताबिक हाथ की तुलना में वाइस कमांड से स्मार्टफोन या इंफोटेनमेंट सिस्टम यूज करने में ज्यादा वक्त लगता है। इस दौरान सड़क पर ड्राइवर का ध्यान नहीं रहता।

मोबाइल का इस्तेमाल हादसों की सबसे बड़ी वजह

देश ही नहीं, दुनिया भर में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का बड़ा कारण मोबाइल है। ड्राइविंग के साथ मोबाइल यूज करने किस तरह बंटता है ध्यान, ऐसे समझिए…

  • कॉल से कॉग्निटिव डिस्ट्रैक्शन: हैंड्स-फ्री फीचर को कॉल के लिए यूज करने, वॉइस कमांड से कॉल का निर्देश देने, या कॉल करने में कॉग्निटिव डिस्ट्रैक्शन होता है।
  • मैसेज चेक करने से 3 डिस्ट्रैक्शन: ड्राइविंग के दौरान मैसेज चेक करने से मैनुअल, विजुअल और कॉग्निटिव- तीनों डिस्ट्रैक्शन होते हैं। ये सबसे खतरनाक होता है।
  • चैटिंग से 6 गुना बढ़ जाता है खतरा: गाड़ी चलाते समय चैटिंग से एक्सिडेंट का खतरा 6 गुना बढ़ जाता है। इसमें हाथ, नजरें और दिमाग तीनों इंगेज होते हैं।

गाड़ी चलाते वक्त ध्यान न भटके और सफर सुरक्षित रहे, इसके लिए एक्सपर्ट्स की इन बातों का रखिए ध्यान…

क्या सेल्फ ड्राइविंग कारें हैं समाधान
सेल्फ ड्राइविंग यानी बिना ड्राइवर की मदद के खुद से चल सकने वाली कारों का क्रेज बढ़ता जा रहा है। टेस्ला जैसी कंपनियां भी हाईटेक सेल्फ ड्राइविंग कारें बनाने में जुटी हैं। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये कारें हाइवे के लिए तो अच्छी हैं, लेकिन शहर के अंदर ये कारें भी हादसों की वजह बन सकती हैं।

उदाहरण के तौर पर 2018 में अमेरिका के एरिजोना में टेस्ट के दौरान एक सेल्फ ड्राइविंग कार ने पैदल जा रहे राहगीर को कुचल कर मार डाला था। विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ टेक्नोलॉजी के भरोसे ही सफर को सुरक्षित नहीं बनाया जा सकता। इंसान को हमेशा सतर्क रहना पड़ेगा।

अगली बार आप ड्राइविंग सीट पर बैठें तो आपका दिमाग शांत रखें, अपने किसी के ‘शौक’ को ड्राइविंग के साथ मिक्स न करें, कार के फीचर्स में न उलझें और फोन को कुछ समय के लिए किनारे कर दें क्योंकि ड्राइविंग में फोन आपको डेंजर जोन में ले जाता है।

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