छोटी शुरुआत नहीं करेंगे तो बड़ी सफलताएं संभव नहीं ..!
रोहित शेट्टी की फिल्मों में पुलिस वाला बनना कौन नहीं चाहेगा? वह एक्शन फिल्म डायरेक्टर हैं और सिद्धार्थ मल्होत्रा जैसे अभिनेता, जिन्हें 2021 में शेरशाह से अपार सफलता मिली, वह कहते हैं कि रोहित हर पुलिस वाले को ‘माचो’ पेश करते हैं। स्वाभाविक है रोहित स्मार्ट, लंबे, अच्छी मसल्स वाले, गोरे कलाकारों पर काम करके पर्दे पर डेशिंग पुलिसवाले के रूप में पेश करते हैं। पर आपने कभी सोचा है कि असल जिंदगी में इंस्पेक्टर्स ऐसे हीरो हो सकते हैं, जिन्होंने दशकों पहले हुई चोरी पकड़ी हो, जिसका राष्ट्रीय महत्व है?
कुछ को छोड़कर बाकी पुलिसकर्मी डेशिंग नहीं हो सकते क्योंकि धूप में उनकी त्वचा काली हो जाती है, अजीब ड्यूटी टाइम के कारण वे फिटनेस पर ध्यान नहीं दे पाते। इसलिए उनका ‘माचो’ दिखना कठिन काम है। दो दिन पहले जब पता चला कि कैसे भारत, अमेरिका से 40 लाख डॉलर के 307 एंटीक पीस लाने में कामयाब रहा, तब मुझे तमिलनाडु पुलिस के लो-प्रोफाइल विभाग ‘मूर्ति शाखा’ की याद आ गई, यह ऐसे ही फिल्म स्क्रिप्ट जैसे काम करती है।
यूएस डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी एल्विन एल ब्रैग ने एंटीक्स लौटाते हुए कहा कि भारतीयों को सैकड़ों शानदार चीजें लौटाते हुए हमें गर्व हो रहा है। हालांकि भारत को इन एंटीक्स को वापस लाने में अंतरराष्ट्रीय जांच टीमों के साथ मिलकर सबसे मुश्किल रास्ता लेना पड़ा, ये पेशेवर लुटेरे अफगानिस्तान, कंबोडिया, इंडोनेशिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, श्री लंका, थाइलैंड के अलावा बाकी देशों से भी एंटीक्स चुराते हैं।
वहीं पुलिस की ये छोटी टीम चोरी के कुछ हफ्तों बाद ही कुछ मूर्तियों का पता लगाने में सफल रही। वो भी तब जब शिकायत तक दर्ज नहीं हुई थी। यहां इसकी कहानी है। 21 मई 2021 को तीन लोग चेन्नई से 425 किमी दूर डिंडिगुल में पहाड़ की चोटी पर स्थित अरुलमिगु आदिनाथ पेरुमल रंगानायकी अम्माल मंदिर में घुसे। उन्होंने दो पुजारियों को चाकू की नोंक पर धमकाया और एक कमरे में बंद कर दिया और फिर हाल ही में स्थापित की गई पांच मूर्तियां लेकर भाग गए।
ये मंदिरों वाले कस्बे कुंभकोणम के पास, स्वामिमलई में मूर्तियां बनाने वाली यूनिट में बनाई गई थीं, पुरानी की जगह नई मूर्तियों स्थापित करने के लिए भक्तों ने दान दिया था। दो हफ्ते बाद दो ब्रोकर कुछ धनी कला संग्राहकों (कलेक्टर) को कुछ मूर्तियां 12 करोड़ रु. में देने की पेशकश कर रहे थे। एक कलेक्टर चार महीनों तक ब्रोकर को मनाता रहा और रईसी भी दिखाता रहा। अंत में ब्रोकर राजी हुआ और खरीदार को एक बार मूर्ति दिखाने का मौका दिया।
मदुरई के पास 70 किमी दूर एक हाईवे पर मिलने की जगह तय हुई, जहां मूर्तियां चुराई थीं और फिर मास्टरमाइंड प्रभाकरन तीन साथियों के साथ पहुंचा। पर उनकी मुलाकात पुलिस की विशेष यूनिट मूर्ति शाखा के सब-इंस्पेक्टर आर. राजेश से हुई। पूरे चार महीने राजेश उन्हें लग्जरी कार में घुमाता रहा, ड्राइवर भी राजेश का सहकर्मी था।
सारी मुलाकातों में राजेश पारंगत होकर मिले कि कैसे कला पारखी होते हुए रईस दिखें। उन्हें यह अहसास दिलाने में महीने लग गए कि खरीदार वाकई कला प्रेमी हैं और उन्हें मतलब नहीं कि मूर्ति कहां से आई है। दिलचस्प रूप से मंदिर के स्टाफ ने शिकायत नहीं कराई थी। मूर्ति शाखा सीआईडी के डीजीपी जयंत मुरली को गैंग की भनक लगी और उन्होंने इसकी स्क्रिप्ट लिखी। 1983 में स्थापित यह मूर्ति शाखा 11वीं व 13वीं सदी की चुराई मूर्तियों का भी पता लगा चुकी है, रोहित शेट्टी क्या इसे स्क्रिप्ट बनाना चाहेंगे? याद रखें ये विभाग दशकों गुमनाम रहा।
फंडा यह है कि बड़ा बनना चाहते हैं तो छोटे से शुरुआत करनी होगी और छोटे-छोटे प्रतिफलों (रिटर्न) से हतोत्साहित नहीं होना है।