गुजरात के मोरबी की तरह देश में और कहां-कहां हैं झूला पुल, क्या हैं सुरक्षा के इंतजाम

झूला पुल में 70 से 75 फीसदी केबल का काम होता है. इनमें हजारों छोटे-छोटे तार लगे होते हैं, जिन्हें जोड़कर बड़ी केबल बनाई जाती है.
गुजरात के मोरबी में रविवार को हुए केबल ब्रिज हादसे में अब तक मरने वालों की संख्या 141 हो चुकी है. जबकि घटनास्थल से लगभग 170 से ज्यादा लोगों का रेस्क्यू किया जा चुका है. इस हादसे ने जहां एक तरफ पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. वहीं दूसरी तरफ मोरबी पुल के गिरने के बाद से ही देशभर में इस तरह के पुलों को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं. दरअसल मोरबी पुल अन्य पुलों से अलग था.
यह किसी आम पुलों की तरफ सीमेंट या ईंटों के खंभों पर नहीं टिका था, बल्कि केबल के सहारे बनाया गया था. ऐसे ब्रिज को हैंगिंग ब्रिज या झूला पुल कहते हैं. इस ब्रिज के तकनीकी नाम की बात करें तो इस तरह के पुलों को सस्पेंशन ब्रिज कहते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर सस्पेंशन ब्रिज होता क्या है? ये किसी अन्य पुल से कितना अलग है और देश में इस तरह के सस्पेंशन ब्रिज यानी झूला पुल वर्तमान में कहां-कहां पर स्थित है.

क्या है सस्पेंशन ब्रिज या झूला पुल

आपने किसी भी नदी, नहर के ऊपर या समुद्र के बीच में पुल बने हुए देखे होंगे. ज्यादातर नदियों पर पुल पिलर के सहारे टिके रहते हैं. पिलर वाले पुल बनाने के लिए पहले पानी की बहने की स्पीड, उसकी गहराई, पानी के नीचे की मिट्टी का प्रकार, पुल पर पड़ने वाला भार और पुल बनने के बाद गाड़ियों के भार आदि पर गहरा रिसर्च किया जाता है. लेकिन कुछ ऐसे पुल भी हैं जहां पिलर के इस्तेमाल की जगह केबल का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे पुलों को सस्पेंशन ब्रिज कहा जाता है. सस्पेंशन ब्रिज ज्यादातर बहाव वाली नदियों के ऊपर बनाए जाते हैं. इस तरह के ब्रिज में पानी के अंदर कोई भी पिलर या बेस नहीं बनाया जाता है. सस्पेंशन ब्रिज या झूला पुल में 70 से 75 फीसदी केबल का काम होता है. इनमें हजारों छोटे-छोटे तार लगे होते हैं, जिन्हें जोड़कर बड़ी केबल बनाई जाती है. लॉन्ग स्पैन के लिए इस तरह पुलों का इस्तेमाल किया जाता है. इस पुल को बनाने का एक मकसद ये भी होता है कि यह हवा की तेज मार को झेल सकें. यह छोटे-मोटे मूवमेंट को आसानी से सहन कर सकता है.

इन 5 हिस्सों से बना होता है सस्पेंशन ब्रिज

सस्पेंशन पुल को आसान शब्दों में समझा जाए तो इसके तहत सीमेंट के दो पिलर नदी के किनारों पर लगाए जाते हैं, जबकि बाकी पूरा पुल लोहे की केबल पर टिका होता है. सस्पेंशन ब्रिज में डेक, टावर,  टेंशन, फाउंडेशन और केबल अहम हिस्से होते हैं. डेक पुल के आखिरी हिस्से को कहते हैं. यह जमीन या पहाड़ी में घुसा होता है. इसी डेक के आगे टावर लगाया जाता है, जो पुल को बेस देने का काम करता है, डेक दोनों किनारे पर बने होते हैं. वहीं टेंशन पुल का वो तार होता है, जो एक टावर से दूसरे टावर पर बंधा होता है. पुल में इस्तेमाल किया जाने वाला केबल इससे ही लगे होते हैं, जो पुल की सड़क को टेंशन से बांधे रखते हैं.

भारत का प्रसिद्ध झूला पुल और सुरक्षा के इंतजाम

भारत में मोरबी पुल के अलावा कई नदियों पर सस्पेंशन ब्रिज यानी झूला पुल बने हैं. आज भले ही मोरबी पुल के गिरने से लोगों के मन में दहशत होगी लेकिन इन पुलों का इस्तेमाल दशकों से पब्लिक बेझिझक करती आई है. भारत में मोरबी पुल के अलावा सैकड़ों छोटे छोटे हैंगिंग ब्रिज मौजूद हैं. लेकिन प्रसिद्ध झूला पुल में कोटो हैंगिंग ब्रिज, लोहित रिवर (अरुणाचल प्रदेश), लक्ष्मण झूला, वालॉन्ग,विद्यासागर सेतु (प.बंगाल) और डोपरा-चंती पुल (उत्तराखंड), लोहित रिवर (अरुणाचल प्रदेश) और दार्जिलिंग का ब्रिज शामिल हैं.

कोटो हैंगिंग ब्रिज

ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर के तहत कोटा बाईपास के समीप चंबल नदी पर बने हैंगिंग ब्रिज को शुरू हुए 5 साल हो गए. चम्बल नदी पर इस ब्रिज के निर्माण की शुरुआत साल 2007 में हुई. निर्माण के 2 साल बाद यानी 2009 में ही ब्रिज के दूसरी ओर निर्माणाधीन पिलर गिरने से 48 मजदूरों की  मौत गई थी. इस घटना के बाद पुल का निर्माकार्य धीमा हो गया और साल 2017 में 213.58 करोड़ की लागत का यह ब्रिज बनकर तैयार हुआ. ब्रिज की सड़क के नीचे डेक बना है. इसके भीतर 2.5 मीटर चैड़ा ऊंचा सुरंगनुमा होलो सेक्शन है जिसमें एक हाथी घूम सकता है.

लक्ष्मण झूला

भारत में सबसे प्रसिद्ध हैंगिंग ब्रिज में लक्ष्मण झूला का नाम भी शामिल है. इस पुल को ब्रिटिश काल में गंगा नदी के ऊपर बनाया गया था. यह पुल 450 फीट लंबा और 5 फीट चौड़ा है.  लक्ष्मण झूला, तपोवन क्षेत्र में आवागमन का एकमात्र साधन है. हालांकि यह पुल 92 साल पुराना है लेकिन समय समय पर प्रशासन द्वारा इसके मरम्मत करवाई जाती है. मरम्मत के दौरान कई बार लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी जाती है ताकी संभावित दुर्घटना में जानमाल का नुकसान न हो. यही कारण है कि इस पुल को साल 2019 से बंद कर दिया गया है.

इस पुल का निर्माण साल 1927 से 1929 के बीच उत्तर प्रदेश ( तब यूनाइटेड प्रोविंस) पीडब्ल्यूडी विभाग ने कराया था. साल 1924 में पुराना लक्ष्मण झूला पुल बाढ़ में तबाह हो गया था. पुराना पुल 284 फीट लंबा था, जो वर्तमान पुल से थोड़ा नीचे था.  इस पुल के साथ धार्मिक आस्था बताया जाता है कि लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों से नदी पार की थी. बाद में इसी जगह झूला पुल बना.

डोबरा-चांठी मोटरेबल झूला पुल 

उत्तराखंड के टिहरी झील पर देश का सबसे बड़ा सिंगल लेन डोबरा-चांठी मोटरेबल झूला पुल है.  डोबरा चांठी पुल लगभग 300 करोड़ की लागत से बनकर तैयार हुआ है. इस पुल की कुल लंबाई 725 मीटर है. इसमें 440 मीटर सस्पेंशन ब्रिज हैं. इस पुल का निर्माण कार्य साल 2006 में शुरू हुआ था और 2014 में खत्म हुआ.

इन झूला पुलों के लिए भी खतरे की घंटी 

धवलेश्वर झूला पुल: गुजरात के मोरबी में हुए दुर्घटना के बाद देश के अन्य राज्यों के पुलों की हालत भी टटोलनी शुरू की जा चुकी है. इस दौरान उत्तराखंड में जिन पुलों की हालत अच्छी नहीं है उनपर प्रशासन लगातार अपनी नजरें टिकाए हुए हैं. ओडिशा के कटक जिला प्रशासन ने आठहढ़ के प्रसिद्ध शैव पीठ जाने के लिए बने धवलेश्वर झूला पुल पर आवाजाही को दो दिनों के लिए बंद कर दिया है. इस दौरान पुल की जांच की जाएगी. इस पुल का निर्माण साल 2006 में किया गया था इन 16 सालों में इस झूला पुल में 12 जगह दरार आ गई है. इस पुल पर पहले 600 लोगों के जाने की अनुमति थी लेकिन अब उसकी संख्या घटाकर 200 कर दी गई है.

राम झूला पुल: उत्तराखंड में त्रषिकेश के इस पुल की भी स्थिति अच्छी नहीं है. राम झूला पुल 1986 में बना था. इसकी लंबाई 230 मीटर है और इसकी भार क्षमता 220 किलो वर्ग मीटर है. वर्तमान में इसकी खराब हालत को देखते हुए पिल की जांच शुरू कर दी गई है.

जानकी सेतु पुल: जानकी सेतु पुल का निर्माण साल 2020 में हुआ था. इसकी लंबाई 346 मीटर है. यह गंगा नदी में 15 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पुल है.

यूपी के सभी पुलों की होगी जांच

गुजरात में हुए पुल हाजसे से सबक लेते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने राज्य के सभी पुलों के निरीक्षण के आदेश दे दिए हैं. उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग ने एक चिट्ठी जारी कर राज्य के सभी पुलों की तत्कार निरीक्षण कर इसकी सूचना विभाग को उपलब्ध कराने के निर्देश जारी किए हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार के लोक निर्माण विभाग ने संबंधित अधिकारियों को जारी चिट्ठी में कहा है कि गुजरात जैसे हादसे की पुनरावृत्ति न होने इसके लिए सभी प्रकार के पुलों की सेफ्टी सुनिश्चित किए जाने के लिए आज ही तत्काल निरीक्षण कर इसकी सूचना उपलब्ध कराएं. आदेश में संबंधित अधिकारियों से जल्द से जल्द सभी पुलों का निरीक्षण कर उसकी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश विभाग की ओर से दिया गया है.

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