महंगाई की चिंता के बीच पार्टियों को बेइंतहा चंदा

बाजारवाद का कमाल यह है कि वह जरूरत पैदा करता है और लोग खिंचे चले जाते हैं। दरअसल इस बाजारवाद ने बाजार को चुंबक और लोगों को लोहा बना दिया है। खैर, बेइंतहा खरीदी का परिणाम यह आया कि जीएसटी कलेक्शन ने इस बार आसमान छू लिया। अक्टूबर महीने में यह 16.6 प्रतिशत ज्यादा आया। कुल 1.52. लाख करोड़। ऐसे में राजनीतिक अभिलाषा भी उफान पर रहीं। क्यों न हों!

हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव जो होने जा रहे हैं। अप्रत्याशित तौर पर राजनीतिक दलों को लोगों ने दिल खोलकर चंदा दिया। दो राज्यों में होने जा रहे चुनाव से पहले 542 करोड़ के इलेक्टोरल बॉण्ड बिके। इलेक्टोरल बॉण्ड वे होते हैं, जो बैंक से खरीदे जाते हैं और इनका पैसा राजनीतिक पार्टियों को चंदे के रूप में जाता है। कुल मिलाकर आप इसे आधिकारिक चंदा कह सकते हैं।

अनाधिकृत चंदे का तो इस देश में कोई हिसाब-किताब होता ही नहीं है। किस पार्टी के पास कितना चंदा पिछले दरवाजे से पहुंचा, यह न तो कोई पार्टी बताती और न ही कोई इनकम टैक्स विभाग उनसे इस बारे में पूछता है। इसीलिए पार्टियां और उनके प्रत्याशी अपने चुनाव के दौरान पानी की तरह पैसा बहाते फिरते हैं। भुगतना हमें पड़ता है। आम आदमी को।

जब बिना हिसाब-किताब का पैसा बड़ी मात्रा में बाजार में आता है तो चीजें तो हाथ से निकलना तय ही है। यानी महंगाई बढ़ती ही है। बिना सोच-विचार के जब कोई खर्च किया जाता है तो आम आदमी को महंगाई का दंश झेलना ही पड़ता है। इससे किसी भी तरह बचा नहीं जा सकता। एसबीआई रिसर्च की दो दिन पहले ही मिली इकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक इस बार जरूरत से बहुत ज्यादा बरसात होने के कारण काफी हद तक फसलें खराब हो गई हैं और इस वजह से आने वाले महीनों में महंगाई और बढ़ेगी।

इस रिपोर्ट के बाद सरकार भी घबराई हुई है। सरकार के स्तर पर विचार किया जा रहा है कि महंगाई बढ़ने की आशंका के बाद पेट्रोल के दामों में चालीस पैसा लीटर की कमी की जाए। हालांकि तेल कंपनियों ने अब तक इसका ऐलान नहीं किया है, लेकिन कर देंगी, तब भी यह चालीस पैसे की कमी ऊंट के मुंह में जीरे की तरह ही होगी। महंगाई में बेइंतहा बढ़ोतरी की आशंका ने रिजर्व बैंक को भी हरकत में ला दिया है। उसने अपनी तिमाही समीक्षा बैठक समय से पहले करना तय कर लिया है।

अब यह तिमाही मीटिंग कल होने जा रही है और पूरी तरह महंगाई पर ही केंद्रित रहेगी। बहरहाल महंगाई की चिंता किसी को नहीं है। न सरकारों को, न राजनीतिक दलों को। क्योंकि उनका बम्पर चंदा तो बदस्तूर है ही। महंगाई भला उनका क्या बिगाड़ लेगी! कुल मिलाकर सरकारों, पार्टियों की आमदनी बढ़ती जा रही है और इसी वजह से महंगाई लोगों को खाए जा रही है।

पार्टियां और उनके प्रत्याशी चुनाव के दौरान पानी की तरह पैसा बहाते फिरते हैं। भुगतना हमें पड़ता है। जब बिना हिसाब-किताब का पैसा बड़ी मात्रा में बाजार में आता है तो चीजें तो हाथ से निकलना तय ही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *