5जी के साथ नया टेलीकॉम कानून भी लागू हो तो बेहतर

मानव शरीर के साथ मोबाइल के अटूट रिश्ते को सब जान चुके हैं। अब ड्राफ्ट टेलीकॉम कानून में सरकार ने आत्मा के साथ स्पेक्ट्रम का नाता जोड़ते हुए उसे अजर-अमर बताया है। 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में अनियमितताओं पर कैग की रिपोर्ट ने यूपीए सरकार को हिला दिया था। अंग्रेजों के राज में बने टेलीग्राफ कानून से 21वीं सदी में इंटरनेट बंदी करने पर दैनिक भास्कर में मेरा लेख प्रकाशित हुआ था।

अब सरकार ने 137 साल पुराने कानून समेत दो अन्य कानूनों को रद्द करने के साथ नए टेलीकॉम बिल का मसौदा विमर्श के लिए जारी किया है। 5जी तकनीकी को लागू करने में हमारा देश, चीन समेत कई देशों से पिछड़ गया है। इसलिए छह बिंदुओं के मद्देनजर प्रभावी टेलीकॉम कानून को पारित करके तुरंत लागू करने की जरूरत है।

1. देश में आटा से सस्ता डाटा है। 2014 के बाद डाटा के उपभोग में 43 गुना बढ़ोतरी हुई है। जबकि डाटा की दरों में 96% गिरावट आई है। डाटा की खपत के लिहाज से दुनिया में सबसे ऊंची पायदान पर होने के बावजूद इंटरनेट स्पीड के मामले में हम फिसड्डी हैं। 5जी से इंटरनेट की गति 10 से 100 गुना तक बढ़ सकती है। रिलायंस के मुखिया मुकेश अम्बानी के अनुसार 5जी कामधेनु की तरह है। इससे आजादी के शताब्दी वर्ष यानी सन् 2047 तक भारत की अर्थव्यवस्था 40 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है।

2. टेलीकॉम में 2जी से 6जी और आई-फोन में 14वीं पीढ़ी आने के बावजूद भारत में डिजिटल कानून नहीं बदले। कई टेलीकॉम कम्पनियों ने दो सदी पुराने टेलीग्राफ कानून के आपराधिक प्रावधानों को रद्द करने की मांग की है। टेलीकॉम कंपनियां लाइसेंस लेने के साथ स्पेक्ट्रम के लिए सरकार को बड़ी रकम देती हैं। उनकी बहुत दिनों से मांग है कि बराबरी के मुकाबले के लिए वॉट्सएप और जूम जैसी कंपनियों को भी लाइसेंस और रेगुलेशन के दायरे में लाना चाहिए।

3. पीएम मोदी और कानून मंत्री रिजिजू के प्रयासों से हजारों पुराने कानून रद्द हो रहे हैं। लेकिन टेलीग्राफ के पुराने कानून निरस्त होने के बावजूद उनके तहत बनाए नियम जारी रखने का प्रस्ताव अनुचित-अनोखा है। डिजिटल के नियमन के लिए भारत में फिलहाल ट्राई ही सबसे प्रभावी रेगुलेटर है, जिसके लिए 1997 में कानून बना था। नए कानून के बाद ट्राई व टीडीसैट की भूमिका और अधिकारों में कमी आएगी। टावर लगाने के लिए जमीन से जुड़े मामलों पर राज्यों की सहमति के बगैर कानून बनाना गलत होगा।

4. उपभोक्ता संरक्षण और इंटरनेट बंदी के बारे में प्रस्तावित कानून में कई प्रावधान हैं। लेकिन नेटफ्लिक्स और अमेजन जैसी ओटीटी कंपनियां स्वच्छंदता में दखल डालने वाले कानूनों का विरोध करती हैं। उनका मानना है कि आईटी कानून और इंटरमीडियरी नियमों के तहत नियमन के बाद नए टेलीकॉम कानून के दायरे में आने की क्या जरूरत है? डाटा नीलाम करके बड़ा मुनाफा कमाने वालीं कम्पनियां आम जनता की प्राइवेसी की दुहाई देने लगी हैं।

5. रोजगार बढ़ाने, आर्थिक विषमता कम करने और विदेशी कम्पनियों के औपनिवेशिक तंत्र से मुक्ति के लिए इन तीन पहलुओं के मद्देनजर प्रभावी कानून बनना चाहिए। पहला, डाटा की सुरक्षा के साथ साइबर अपराध रोकना। दूसरा, टेलीकॉम, आईटी और अन्य कानूनों को सफल बनाने के लिए प्रभावी रेगुलेटर। तीसरा, कम्पनियों के कारोबार पर टैक्स की वसूली।

6. डिजिटल के दायरे में आने वाली 3 वर्गों की कंपनियां हैं। इसलिए टेलीकॉम (टीएसपी), इंटरनेट (आईएसपी) और मोबाइल कंपनियों के नियमन और कारोबार के लिए समन्वित कानून बनाना जरूरी है। टेलीकॉम कानून में डाटा संरक्षण और डिजिटल इंडिया कानून को जोड़कर आईपीसी की तरह सम्पूर्ण कानूनी संहिता बनाना जरूरी है। उस बेस कानून के दायरे में सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स, ओटीटी, ऑनलाइन गेम्स, फिनटैक, क्रिप्टो, ड्रोन, रोबोटिक्स जैसे सेक्टर्स के लिए अलग नियमावली बनायी जा सकती है।

ट्विटर पर आधिपत्य के बाद अब एलन मस्क सैटेलाइट इंटरनेट से दुनिया को कब्जाने की फिराक में हो सकते हैं। बड़ी कंपनियों को महानगरों और समृद्ध वर्ग से ही ज्यादा मुनाफा होता है। तकनीकी के विकास से गांवों और गरीबों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार और कानून को हस्तक्षेप करना होगा। टेक कम्पनियों को फ्री-रन जारी रखने से असमानता और अराजकता बढ़ने के साथ अर्थव्यवस्था और सार्वभौमकिता खतरे में पड़ सकती है।

जिस तेजी से 5जी को सफल बनाया जा रहा है, वैसी ही तत्परता से नई कानूनी व्यवस्था और नियामक को भी भारत में सफल बनाना होगा। टेक कम्पनियों को फ्री-रन देना हमारे लिए खतरनाक हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *