यमुना हमारे घरों में नहीं, हम यमुना के घर में आ गए हैं ..!
यमुना हमारे घरों में नहीं, हम यमुना के घर में आ गए हैं, त्रासदी के लिए सब जिम्मेदार ….
मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि अगले चार से पांच दिनों में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में एक बार फिर तेज बारिश हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह पूरा पानी यमुना से होते हुए दिल्ली पहुंचेगा। यानी राजधानी की समस्या तत्काल हल होने वाली नहीं है…
यमुना में आई बाढ़ के कारण दिल्ली के लगभग 25 हजार लोगों को विस्थापित करना पड़ा है। इसकी कैचमेंट एरिया सोनिया विहार, शास्त्री पार्क, गांधी नगर, गीता कॉलोनी से लेकर ओखला तक में रहने वाले लगभग 35 लाख परिवार बाढ़ के कारण प्रभावित हुए हैं। अभी यमुना का जलस्तर 208.38 मीटर के लगभग हो गया है। मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि अगले चार से पांच दिनों में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में एक बार फिर तेज बारिश हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह पूरा पानी यमुना से होते हुए दिल्ली पहुंचेगा। यानी राजधानी की समस्या तत्काल हल होने वाली नहीं है।
इस बाढ़ के बीच एक प्रश्न बार-बार उठाया जा रहा है कि इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार राजनीतिक दल एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली में इससे पहले 1978 में आई भयंकर बाढ़ के बाद से दिल्ली में आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस की लंबे समय तक सरकारें रही हैं। लेकिन इस दौरान इस समस्या का कोई समाधान नहीं खोजा गया जिसका परिणाम आज राजधानी के करीब 35 लाख लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
आम जनता और सरकार दोनों जिम्मेदार- विशेषज्ञ
शहरी मामलों के जानकार तो मानते हैं कि इस समस्या को हल करने की बजाय आम जनता और सरकारों, दोनों ने ही इस समस्या को लगातार गंभीर बनाने का काम किया है। दिल्ली के जल निकासी सिस्टम पर काम करने वाले आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर एके गोसाईं बताते हैं कि यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल सहित देश के अलग-अलग इलाकों से आए प्रवासी श्रमिकों ने सस्ता आवास पाने की कोशिश में यमुना की कैचमेंट एरिया में अवैध बस्तियां बसाईं और इनमें रहने लगे।
इससे यमुना के जल का सामान्य बहाव क्षेत्र सिकुड़ता गया और कभी लगभग पांच किलोमीटर की चौड़ाई में बहने वाली यमुना अब कुछ स्थानों पर एक से दो किलोमीटर की चौड़ाई में ही सिमट कर रहने के लिए बाध्य हो गई। लेकिन जब भी भारी बारिश होती है, यमुना अपने पहले के इलाके में बहने के लिए निकल पड़ती है। इसे बाढ़ का नाम दे दिया जाता है, लेकिन सच यह है कि यमुना हमारे घरों तक नहीं आई है, बल्कि हम यमुना के घर में अवैध बस्तियां बनाकर रहने लगे हैं जिसका परिणाम हमें बाढ़ के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
सुविधाएं देकर बढ़ावा
सरकारों और राजनीतिक दलों ने इन अवैध कॉलोनियों को बसने से रोकने के लिए कोई काम नहीं किया। उलटे वोट बैंक मजबूत करने की चाहत में इन अवैध कॉलोनियों में बिजली, पानी, सड़क और स्वास्थ्य सुविधाएं देकर लोगों को इनमें बसने के लिए प्रेरित किया। इसका परिणाम हुआ है कि यमुना खादर की एरिया में आज लाखों परिवार रह रहे हैं। केंद्र-राज्य सरकारों में इन अवैध कॉलोनियों को पक्का करने की होड़ लगी हुई है, जिससे वे इसका राजनीतिक लाभ ले सकें। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और मानवीय आधार पर अदालतों की दखल के कारण अब इन्हें यहां से हटाना लगभग असंभव हो गया है।
सरकारों ने की भारी कमाई
ऐसा नहीं है कि अवैध कॉलोनियां बसाने के मामले में केवल आम लोगों ने ही भागीदारी निभाई। केंद्र, डीडीए और दिल्ली की सरकारों ने अपनी भव्य इमारतों को बनाने के लिए भी यमुना में अतिक्रमण करने को ही विकल्प पाया। आज स्थिति यह है कि दिल्ली सरकार का सचिवालय, इंदिरा गांधी स्टेडियम, राजघाट पर बना बस डिपो, अक्षरधाम मंदिर, विश्व स्वास्थ्य संगठन का कार्यालय और अनेक बड़ी-बड़ी संस्थाओं के कार्यालय यमुना की कैचमेंट एरिया में ही बनाए गए हैं।
अक्षरधाम मंदिर के पास बने खेल गांव में एक पूरी पॉश कॉलोनी विकसित की गई है। इसमें एक-एक फ्लैट की कीमत कई करोड़ रुपये में है। इन्हें बेचकर हजारों करोड़ रुपये की कमाई की गई है। इसके कारण यमुना के बहाव क्षेत्र में रहने वाले जंगली जीवों और जलीय पौधों को भारी नुकसान हुआ है और जैव विविधता नष्ट हुई है।
अब क्या है समस्या का समाधान
शहरी मामलों के विशेषज्ञ जगदीश ममगांई ने अमर उजाला को बताया कि दिल्ली जैसे शहरों को बाढ़ से बचाने के लिए हमें पूरी योजना के साथ काम करना पड़ेगा। यमुना के बहाव क्षेत्र के साथ-साथ बड़े जल संग्रह स्रोत बनाकर ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल को संग्रहित किया जाना एक विकल्प हो सकता है। इन जलाशयों का उपयोग कर बाद में दिल्ली के लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है। यमुना की कैचमेंट एरिया को जितना संभव हो, मुक्त कराने की कोशिश की जानी चाहिए। कम से कम अब और ज्यादा अवैध कॉलोनियां न बसाई जा सकें, इसकी पुख्ता व्यवस्था की जानी चाहिए। अतिक्रमण के साथ-साथ यमुना में प्रदूषण को भी रोकने की कोशिश होनी चाहिए। दिल्ली के नालों-नालियों की डिसिल्टिंग, यमुना की गहराई बढ़ाना बाढ़ से निपटने में मदद कर सकता है।