क्या ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ वास्तविक हैं ?
क्या ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ वास्तविक हैं: विश्वसनीय व्याख्या के लिए वास्तविक अर्थ जरूरी, प्रेमपूर्ण संगति अहम
‘मृत्यु के निकट अनुभव’ यह नहीं दर्शाते कि जीवन के बाद भी कुछ है, बल्कि यह दर्शाते हैं कि प्रेमपूर्ण संगति में अच्छी तरह से मृत्यु संभव है। वे हमें मृत्यु के बारे में कुछ गहन और सुंदर बातें बताते हैं।
आखिर मरने के बाद होता क्या है? विभिन्न धर्मों के दर्शन में इस पर तमाम विचार मिलते हैं, लेकिन क्या मालूम वे सच हैं भी या नहीं? जब तक कोई खुद अपनी आंखों से न देखे, तब तक कैसे मान ले कि मृत्यु के बाद हम जाते कहां हैं। कोई जाने के बाद लौट कर आया हो, और वह बताए, तो एक बार को मान भी लें।
हालांकि इस दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जो मृत्यु को छूकर वापस लौटे। यानी, कुछ पल के लिए मर गए, लेकिन फिर वह लौटे। मृत्यु के निकट के ये अनुभव विस्मय को जगाते हैं- वे हमें ‘ईश्वर की नजर’ से यह देखने का मौका देते हैं कि वास्तव में इससे परे क्या है। वे हमें ब्रह्मांड के किनारे तक ले जाते हैं। हालांकि यह बिल्कुल वैज्ञानिक विचार नहीं है, लेकिन हममें से ज्यादातर लोगों को इस बात की एक आम समझ है कि ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ का क्या मतलब है।
जाहिर है, मृत्यु के निकट अनुभव का मतलब एक ऐसी स्थिति से है, जिसमें किसी का जीवन खतरे में होता है। जिन लोगों ने इसका अध्ययन किया है या इस पर चर्चा की है, उनमें से अधिकांश इस बात पर सहमत हैं कि ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ के रूप में गिनने के लिए ऐसा अनुभव तब होना चाहिए, जब व्यक्ति पूरी तरह सचेत न हो और उसमें निम्नलिखित पहलू पर्याप्त हों : शरीर से परे होने का अनुभव, जिसमें व्यक्ति को भौतिक रूप से ऊपर तैरने का अनुभव होता है और वह खुद को तथा अपने आसपास के वातावरण को देख सकता है।
ऐसे में व्यक्ति अपने जीवन की समीक्षा करता है, और मृतक परिजनों या पूज्य धार्मिक व्यक्तियों द्वारा संरक्षित क्षेत्र (गहन अंधेरे में रोशनी, द्वार या बाड़ से घिरा क्षेत्र, नदी के दूसरे किनारे) की ओर बढ़ने का मार्गदर्शन पाता है। कई लोग जो ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ से गुजर चुके हैं, वे गंभीरतापूर्वक बदलाव की बात करते हैं-उन्हें मृत्यु का भय कम सताता है, वे ज्यादा आध्यात्मिक, ज्यादा सकारात्मक एवं मददगार होते हैं। वे नैतिकता के प्रति ज्यादा चिंतित होते हैं। ऐसे अनुभव पूरे इतिहास में और विभिन्न संस्कृतियों में पाए जाते हैं।
प्लेटो ने द रिपब्लिक में इनमें से एक का वर्णन किया है-एर का मिथक। (यह एर नामक एक सैनिक की कहानी है, जिसे मरा हुआ मान लिया जाता है और वह पाताल लोक में चला जाता है। पर जब वह पुनर्जीवित होता है, तो उसे लोगों को यह बताने के लिए भेजा जाता है कि परलोक में कौन-सी चीज उनका इंतजार कर रही है। एर परलोक का वर्णन करता है, जहां दयालु को पुरस्कृत किया जाता है और दुष्टों को दंडित किया जाता है।) ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ आंशिक रूप से व्यक्ति की जीवन स्थिति, धर्म और संस्कृति के विवरण पर निर्भर होते हैं, लेकिन कुछ सामान्य तत्व भी हैं।
उदाहरण के लिए, धार्मिक आकृतियां अलग-अलग हो सकती हैं-एक ईसाई को ईसाई आकृतियां दिखाई देंगी, एक बौद्ध को बौद्ध आकृतियां दिखाई देंगी और एक हिंदू को ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ में हिंदू देवी-देवताओं की आकृतियां दिखाई देंगी। फिर भी गहरे स्तर पर सम्मानित व्यक्तियों द्वारा मार्गदर्शन मिलता है, तथा ज्ञात से अज्ञात की ओर यात्रा होती है। यह शायद सबसे कठिन यात्रा है, जीवन से मृत्यु तक। हमारी अंतिम यात्रा या हमारी यात्रा के अंतिम चरण पर प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन गहरा प्रभाव डालता है।
लोकप्रिय साहित्य में ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ की व्याख्या लगभग हमेशा ‘अलौकिक रूप से’ की जाती है। मानो वे यह दिखाते हैं कि मन मस्तिष्क जैसा नहीं है और मस्तिष्क के काम करना बंद करने के बाद भी मन सक्रिय रह सकता है, और यह भी कि मन का किसी तरह से ‘स्वर्ग’ या गैर-भौतिक क्षेत्र से संपर्क होता है। ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ से संबंधित पुस्तकों के शीर्षक बताते हैं कि ‘स्वर्ग वास्तव में होता है’ या हमारे पास ‘स्वर्ग का सबूत’ है। इन मुद्दों पर लिखने वाले न्यूरोसाइंटिस्ट दावा करते हैं कि ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ ‘मृत्यु के बाद के जीवन का सबूत’ और ‘जीवन से परे चेतना’ प्रदान करते हैं। वे उन्हें मृत्यु के बाद की यात्रा मानते हैं।
अलौकिक व्याख्या के समर्थक इस पर जोर देते हैं कि वे ‘वास्तविक’ हैं। न्यूरोसर्जन एबेन एलेक्जेंडर का प्रूफ ऑफ हेवन में अल्ट्रा-रियल शीर्षक से एक अध्याय भी है। मैं इससे इन्कार नहीं करता कि बहुत से लोगों के पास ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ हैं। उनके पास सचमुच ऐसे अनुभव हैं, जैसे लोग सपने देखते हैं। इसलिए ये अनुभव प्रामाणिक रूप में वास्तविक हैं। इससे इन्कार करना उन बहुतेरे लोगों का अनादर करना है, जो ईमानदारी से इसके बारे में बताते हैं।
हालांकि ‘वास्तविक’ का एक और अर्थ है सटीक। क्या मृत्यु के निकट अनुभव की जो शाब्दिक व्याख्या की गई, वह परलोक की वास्तविकता का सटीक चित्रण है? यह एक अलग महत्वपूर्ण प्रश्न है। लेकिन वास्तविक मानते हुए सटीक न मानना महत्वपूर्ण है और कई अलौकिकतावादी यही करते हैं। मृत्यु के निकट अनुभव वास्तव में होते हैं। लेकिन इनसे हम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वे मृतक प्रियजनों द्वारा गैर-भौतिक क्षेत्र में मार्गदर्शन को सटीक रूप से दर्शाते हैं। बड़ा सवाल है कि क्या मृत्यु के निकट अनुभव स्वर्ग या नरक का सबूत देते हैं? मैं ऐसा नहीं मानता। इनमें से कोई भी तर्क ठोस नहीं है। ये स्पष्ट रूप से ज्वलंत सपने और मतिभ्रम हैं।
नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले अनुभव भी गहरे और परिवर्तनकारी होते हैं। ये सभी अनुभव विषय-वस्तु को ‘अति-वास्तविक’ रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह किसी भी आध्यात्मिक अनुभव की एक चिर-परिचित विशेषता है, और मृत्यु का निकट अनुभव एक तरह का आध्यात्मिक अनुभव है। दुनिया भर में लोग अपने धर्मों में ईमानदारी और निश्चित विश्वास रखते हैं, लेकिन इस ईमानदारी और निश्चितता से यह अर्थ नहीं निकलता है कि धार्मिक विश्वास सत्य है और उसकी शब्दशः व्याख्या की गई है। मौलिक अंतरों को देखते हुए वे सत्य कैसे हो सकते हैं? यही बात ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ के साथ है। ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ की अलौकिक व्याख्या के लिए दिए जाने वाले तर्क स्पष्ट रूप से समस्याग्रस्त हैं।
कई डॉक्टर इस विचार का समर्थन करते हैं कि ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ पुनर्जन्म के अस्तित्व को साबित करते हैं। मगर उनके निष्कर्ष चिकित्सकीय नहीं, बल्कि दार्शनिक हैं। यह विचार कि मन शरीर से अलग हो सकता है और स्वर्ग (गैर-भौतिक क्षेत्र) से संपर्क कर सकता है, स्पष्ट रूप से चिकित्सा निष्कर्ष नहीं है, और चिकित्सकों के पास इस मामले में कोई विशेषाधिकार नहीं है। आखिरकार, वे चिकित्सक हैं, तत्वमीमांसक नहीं।
क्या ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ वास्तविक है?, अधिक विश्वसनीय व्याख्या करने के लिए वास्तविक अर्थ जरूरी
‘मृत्यु के निकट अनुभव’ की अधिक विश्वसनीय व्याख्या करने के लिए जरूरी है कि वे दोनों अर्थों में वास्तविक हों-यानी वे वास्तव में घटित होते हों और उनकी व्याख्या सटीक हो। मेरा मानना है कि ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ की व्याख्या मूल रूप से और मुख्य रूप से जीवन से मृत्यु तक की यात्रा के बारे में होनी चाहिए। अधिकांश ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ एक काल्पनिक संरक्षित क्षेत्र की ओर यात्रा को दर्शाते हैं, लेकिन उस तक पहुंचने के सफल मार्ग को नहीं।
‘मृत्यु के निकट अनुभव’ में हम कयामत के द्वार तक तो पहुंच जाते हैं, लेकिन उसके पार नहीं जा पाते। हम ब्रह्मांड के किनारे तक तो पहुंच जाते हैं, लेकिन वहीं रुक जाते हैं। ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ यह नहीं दर्शाते कि जीवन के बाद भी कुछ है, बल्कि यह दर्शाते हैं कि प्रेमपूर्ण संगति में अच्छी तरह से मृत्यु संभव है। इस प्रकार ‘मृत्यु के निकट अनुभव’ दोनों ही अर्थों में वास्तविक हैं: वे वास्तव में घटित होते हैं, और इन संभावनाओं को सटीक रूप से चित्रित करते हैं। वे महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे हमें अच्छी तरह से मृत्यु की संभावना की याद दिलाते हैं। वे हमें मृत्यु के बारे में कुछ गहन और सुंदर बातें बताते हैं। वे हमें अपनी यात्रा के अगले भाग का सामना करने के लिए झूठी आशा नहीं, बल्कि वास्तविक उम्मीद देते हैं, चाहे वह जो भी लेकर आए।