ठगी का शिकार होने वालों मे पढ़े-लिखे और जानकार समझे जाने वाले लोग भी बढ़ रहे हैं। कई मामलों में यह भी देखने में आया है कि साइबर ठगी के शिकार लोग शर्मिंदगी के कारण पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने से हिचकते हैं। सरकारी एजेंसियां चाहे जो दावे करें, बहुत कम मामलों में ठगी गई राशि बरामद होती है और ठगों को गिरफ्तार किया जाता है। यह तब है, जब ठगी गई राशि देश के ही खातों में ट्रांसफर कराई जाती है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया जा चुका है कि सीबीआइ, ईडी, आयकर विभाग आदि उसकी किसी भी एजेंसी की ओर से डिजिटल अरेस्ट जैसी कार्रवाई नहीं की जाती।

इसमें संदेह है कि आम लोग साइबर ठगों की चालबाजी से भली तरह जागरूक हो चुके हैं। जागरूकता के अभाव का एक कारण यह भी है कि सरकार ने साइबर ठगों और उनकी ठगी के नित-नए तरीकों के प्रति लोगों को सही तरह सतर्क नहीं किया है। यदि यह समझा जा रहा है कि समाचार पत्रों में एक-दो विज्ञापन जारी करने अथवा प्रधानमंत्री की ओर से मन की बात कार्यक्रम में इस समस्या को रेखांकित करने से लोग डिजिटल अरेस्ट के बहाने की जा रही ठगी के काले कारोबार से अवगत हो गए हैं तो यह सही नहीं।

सरकार को न केवल साइबर ठगों की कमर तोड़ने के लिए और अधिक सख्ती का परिचय देना होगा, बल्कि लोगों को जागरूक करने का कोई व्यापक अभियान भी चलाना होगा। अच्छा हो कि इस पर विचार किया जाए कि कुछ दिनों के लिए मोबाइल कालर ट्यून के जरिये लोगों को चेताया जाए कि इस-इस तरह की फोन काल आए तो सावधान हो जाएं। साइबर ठगी के बढ़ते मामले केवल देश को डिजिटल करने के अभियान को ही चोट नहीं पहुंचा रहे हैं, बल्कि भारत की छवि भी खराब कर रहे हैं। साइबर ठग पहले लोगों को लालच देकर ठगते थे। अब वे लोगों को धमकाकर अथवा उनका मोबाइल फोन हैक करके यही काम कर रहे हैं। साफ है कि उनका दुस्साहस बढ़ रहा है। उनका बढ़ता दुस्साहस सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी का ही परिचायक है। यह नाकामी निराश करने वाली है।