अभी आप अटलजी – अटलजी कह रहे हैं ; एक दिन आडवाणीजी – आडवाणीजी कहेंगे…
अटलजी की बात सही साबित होने के बीच 17 साल का इंतजार था. …और फिर जब आडवाणी जी के नाम की धूम मची तो पार्टी के भीतर ऐसा भी वक्त आया तब खुद अटलजी हाशिए पर जाते नजर आए.
तब लाल कृष्ण आडवाणी उतने मशहूर नहीं हुए थे, इसलिए पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनके चयन की सूचना से कार्यकर्ता बहुत उत्साहित नहीं थे. अटलजी ने इसे भांपा और फिर माइक पर आए. उन्होंने कहा, “अभी आप अटलजी – अटलजी कह रहे हैं लेकिन एक दिन आएगा जब आप सब आडवाणीजी – आडवाणीजी कहेंगे.”
अटलजी की बात सही साबित होने के बीच 17 साल का इंतजार था. …और फिर जब आडवाणी जी के नाम की धूम मची तो पार्टी के भीतर ऐसा भी वक्त आया तब खुद अटलजी हाशिए पर जाते नजर आए. भारतीय जनसंघ का 9 से 11फरवरी 1973 का कानपुर अधिवेशन दो कारणों से खासतौर पर याद किया जाता है. एक – पार्टी के संस्थापकों में रहे बलराज मधोक का पार्टी से निष्कासन तय हुआ. दूसरा – संसदीय कार्यों में अटलजी की सहायता के लिए 1957 से दिल्ली में सक्रिय हुए आडवाणीजी का पार्टी में कद और बड़ा हुआ. आडवाणी जी ने अपना पहला सार्वजनिक भाषण इसी अधिवेशन में दिया था.
आडवाणी अध्यक्ष बनने को नहीं थे तैयार
तब अटलजी का अध्यक्ष के तौर पर चार वर्ष का कार्यकाल पूरा हो रहा था. अटलजी ने आडवाणीजी से कहा कि अब आप अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालिए. उनके कहने के बाद भी आडवाणी खुद को इस भूमिका के लिए तैयार नहीं कर पा रहे थे. क्यों ? अपनी आत्मकथा में आडवाणीजी ने लिखा है ,”अटलजी , मैं किसी जनसभा में भाषण भी नहीं दे सकता हूं, फिर मैं पार्टी अध्यक्ष कैसे हो सकता हूं ? उन दिनों मैं जनता के बीच में बोलने में पटु नहीं था और मुझे बोलने में संकोच भी होता था. मैं यह जरूर स्वीकार करता हूं कि मेरे अंदर इस ग्रंथि के पनपने का बहुत बड़ा कारण अटलजी के साथ मेरा निकट संपर्क था, जो अपनी जादुई भाषण कला से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे.”
राजमाता, भाई महावीर के इनकार बाद आडवाणी हुए मजबूर
आडवाणीजी 1970 में राज्यसभा के सदस्य बन चुके थे. अटलजी ने उनके राज्यसभा में बोलने का हवाला दिया. आडवाणीजी ने कहा कि संसद में बोलना एक बात है और हजारों लोगों की जनसभा में बोलना अलग बात है. अटलजी ने उन्हें दीनदयालजी की याद दिलाई जो वक्ता नहीं थे, लेकिन लोग उन्हें बहुत ध्यान से सुनते थे. आडवाणीजी फिर भी तैयार नहीं हुए, फिर कौन ? अटलजी – आडवाणीजी ग्वालियर गए. बहुत मुश्किल से राजमाता विजयराजे सिंधिया राजी हुईं, लेकिन उन्होंने कहा कि वे अपने जीवन में कोई महत्वपूर्ण निर्णय दतिया में रहने वाले अपने श्रीगुरूजी की अनुमति और आशीर्वाद से ही लेती हैं. उसी दिन वे दतिया गईं.
अगले दिन वापसी में उन्होंने बताया कि श्रीगुरूजी ने इसकी अनुमति नहीं दी. अगला प्रयास पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य भाई महावीर के लिए था. इस बार जगन्नाथ राव जोशी भी साथ थे. भाई महावीर आसानी से तैयार हो गए, लेकिन एक क्षण प्रतीक्षा करने को कहकर वे पत्नी से सलाह के लिए घर के भीतर गए. वापसी में निकलकर क्षमा मांगी. उनकी पत्नी सहमत नहीं थीं. अटलजी ने कहा , अब और असफल प्रयास नहीं. जो मैं कहता हूं, उसे मानना होगा. औपचारिक तौर पर दिसंबर 1972 में आडवाणीजी अध्यक्ष चुने गए. फरवरी 1973 के पार्टी के 18 वें कानपुर अधिवेशन की उन्होंने अध्यक्षता की.
मंडल की काट में कमंडल का दांव
1973 और 1990 के बीच बहुत कुछ बदल चुका था. 1990 में केंद्र में भाजपा और वामपंथियों के सहयोग से चलने वाली विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी. 7अगस्त 1990 को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की पिछड़ों को आरक्षण की सिफारिशें लागू करने की घोषणा की. अचानक माहौल काफी उत्तेजक हो गया. उच्च जातियों की ओर से इसका व्यापक विरोध तो पिछड़ों के बीच समर्थन का उल्लास था. भाजपा दुविधा में थी. मंडल से ध्यान कैसे बंटाया जाए ? शुरुआती सितंबर महीने की एक ढलती शाम अपने घर के ड्राइंग रूम में उधेड़बुन में बैठे आडवाणीजी के साथ उनकी पत्नी थीं, तभी प्रमोद महाजन वहां पहुंचे. आडवाणीजी ने कहा , ” मैं सोमनाथ से अयोध्या की पदयात्रा करने को सोच रहा हूं जो 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचेगी. यह पदयात्रा या तो 2 अक्तूबर यानी गांधी जयंती के दिन अथवा दीनदयालजी की जयंती 25 सितंबर को शुरू कर सकता हूं. पदयात्रा से मुझे ग्रामीणों तथा अन्य लोगों से आमने – सामने मिलने और अयोध्या आंदोलन के महत्व के बारे में बताने का अवसर मिलेगा. ”
प्रमोद महाजन ने किया राम रथयात्रा के लिए तैयार
राजनीतिक अभियानों के कुशल खिलाड़ी प्रमोद महाजन ने तुरंत हिसाब लगाया. महाजन ने पदयात्रा के विचार को तो अच्छा बताया लेकिन जिस उद्देश्य को लेकर इसे किया जाना है , उस नजरिए से बहुत लाभप्रद नहीं माना. कहा कि इस अवधि में अधिकतम गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश , दिल्ली के कुछ हिस्सों और आधे उत्तर प्रदेश में यह यात्रा पहुंच सकेगी. आडवाणी जी ने कार से यात्रा के प्रति अनिच्छा जताई. जीप को बेहतर माना, लेकिन प्रमोद महाजन ने कहा क्यों न रथयात्रा की योजना बनाई जाए ? आडवाणी जी उत्सुक दिखे. महाजन ने बताया , “हम एक मिनी बस या मिनी ट्रक लेंगे और उसे रथ की तरह बनाएंगे. आप उसमें बैठकर यात्रा कर सकते हैं और चूंकि उसका उद्देश्य राम मंदिर के लिए जनसमर्थन जुटाना है, इसलिए उसका नाम राम रथ यात्रा रखेंगे. यह रथ पश्चिमी, दक्षिणी, मध्य, उत्तरी तथा पूर्वी भारत का बड़ा हिस्सा तय करते हुए कम से कम एक दर्जन राज्यों तक पहुंचेगा. ” आडवाणी जी ने 12 सितंबर को दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन में 25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू होने वाली दस हजार किलोमीटर की उस रथ यात्रा की जानकारी दी ,जिसे 30अक्टूबर को अयोध्या पहुंचकर कारसेवा में शामिल होना था.
रथयात्रा को मिला भारी जनसमर्थन
मौसम अनिश्चित था, अनिश्चितता आडवाणीजी के भीतर भी थी. जिंदगी के सबसे बड़े अभियान पर निकल रहे आडवाणीजी यात्रा के प्रति जन प्रतिक्रिया को लेकर आश्वस्त नहीं थे. 25 सितंबर की सुबह परिवार के सदस्यों के साथ सोमनाथ मंदिर में उन्होंने ज्योतिर्लिंग का पूजन किया. राजमाता सिंधिया, सिकंदर बख्त, नरेंद्र मोदी और प्रमोद महाजन सहित समर्थकों की तुमुल हर्षध्वनि और सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे के नारों के बीच वे रथ पर सवार हुए. आगे इस रथ के रास्ते में दोनो किनारे सुबह से देर रात तक स्वागत करने, फूल और सिक्के बरसाने वाले और आरती उतारने और आडवाणीजी के पैरों पर गिरने वालों की भीड़ ही भीड़ थी. कभी जनता के बीच भाषण देने की अपनी योग्यता को लेकर सशंकित आडवाणीजी अब रास्ते में रोज पच्चीस – तीस सभाओं को संबोधित कर रहे थे. एक राजनेता के तौर पर वे नए अनुभवों से गुजर रहे थे. अब तक संसदीय और बौद्धिक क्षेत्रों में जाने – पहचाने जाने वाले आडवाणीजी को यह यात्रा देश के आम आदमी से जोड़ रही थी.
विपक्षियों ने इसे बताया आडवाणी की खूनी यात्रा
मंदिर आंदोलन के समर्थक इस यात्रा को लेकर कितने भी उत्साहित रहे हों लेकिन विपक्षियों और मीडिया के एक हिस्से ने इसे आडवाणी की खूनी यात्रा माना , जो देश के तमाम हिस्सों में सांप्रदायिक दंगों का कारण बनी. यात्रा समर्थकों ने और आडवाणीजी ने इसे विपक्षियों का दुष्प्रचार बताया था. आडवाणी जी का दावा है कि इस यात्रा के दौरान उनके भाषणों में एक भी शब्द सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाला नहीं था. इस दौरान कर्नाटक , हैदराबाद और उत्तर प्रदेश के दंगों में लगभग छह सौ मौतें हुई थीं लेकिन यात्रा जिन रास्तों से गुजरी वहां कोई दंगा नहीं हुआ.
इस रथयात्रा ने आडवाणी को चर्चा के केंद्र में ला दिया, लेकिन विहिप क्या सोच रही थी ? विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘ जुगलबंदी ‘ में सुब्रह्मण्यम स्वामी के हवाले से अशोक सिंहल को उद्धृत किया , “आडवाणी कौन हैं ? हमने उन्हें कभी आमंत्रित नहीं किया. उन्हें कभी रथयात्रा की अगुवाई के लिए नहीं कहा” अटलजी सार्वजनिक रूप से तो बोल रहे थे , ” डवाणीजी रावण से लड़ने के लिए नहीं बल्कि पश्चाताप के लिए अयोध्या जा रहे हैं.” लेकिन अकेले में वे आडवाणी को फोन पर रथयात्रा रद्द करने का अनुरोध करते हुए कह रहे थे कि आप शेर की सवारी कर रहे हैं. आडवाणीजी नहीं माने. बाद में अटल जी ने कहा , “मुश्किल यह है कि एक बार आप रथ पर चढ़ जाएं तो उतरने का मन नहीं करता.” 23 अक्टूबर को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने यात्रा रोक दी. आडवाणीजी गिरफ्तार कर लिए गए. आडवाणीजी के शब्द हैं , “रथयात्रा जो मेरे जीवन की सबसे रोमांचकारी घटना थी, का अंत हो गया.” यात्रा की शुरुआत में अनिश्चितता में झूलते आडवाणी को रास्ते में मिले अपार जनसमर्थन ने आत्मविश्वास से भर दिया. वे अब अटलजी की छाया से निकल जननेता बन चुके थे. उन दिनों हर और आडवाणी – आडवाणी की गूंज थी.