मध्यप्रदेश में बड़े मंदिरों का ऑडिट …!

मध्यप्रदेश में बड़े मंदिरों का ऑडिट:महाकाल, खजराना, मैहर और सलकनपुर के लिए ही एक्ट, बाकी मंदिरों का प्रबंधन पुजारी, उनके परिवार और समितियों के हवाले

दान-दक्षिण का गणित- 20 मंदिरों के पास 200 करोड़ का फंड, व्यवस्था की जिम्मेदारी प्रबंधन समितियों के पास

मप्र में सिर्फ महाकाल, खजराना, मैहर और सलकनपुर मंदिर ही एक्ट से चल रहे हैं, बाकि सभी मंदिरों का प्रबंधन निजी हाथों में हैं। इनके पास 200 करोड़ रुपए के करीब फंड भी हैं। कई मंदिरों की समितियां लंबे समय से चुनिंदा लोगों के ही पास हैं। 2019 में नियम बनाए गए, ताकि मंदिरों का प्रबंधन प्रशासन के पास चला जाए, लेकिन 2020 में इन नियमों को बदल दिया गया। अब निजी प्रबंध समितियों के पास ही कई मंदिर हैं।

सलकनपुर मंदिर में हुई चोरी की बड़ी घटना के बाद जब सभी मंदिरों की पड़ताल की गई तो यह तथ्य सामने आए। मप्र में 20 बड़े मंदिर हैं। सिर्फ चार के ही एक्ट राज्य सरकार से पारित हुए हैं। इनमें सबसे पुराना अधिनियम सलकनपुर देवी धाम का है। इस मंदिर का अधिनियम मध्यप्रदेश के गठन से पूर्व भोपाल राज्य की विधानसभा ने पारित किया जो विधिवत भोपाल राज्य सलकनपुर मंदिर अधिनियम-1956 का है।

इसके बाद महाकालेश्वर मंदिर का (मध्यप्रदेश महाकालेश्वर मंदिर अधिनियम-1982), 2002 में मध्यप्रदेश मां शारदा देवी मंदिर अधिनियम-2002 और मध्यप्रदेश श्री गणपित मंदिर खजराना (इंदौर) अधिनियम 2003 में पारित हुआ। इन मंदिरों की सुरक्षा और देखरेख के लिए सरकार समय-समय पर प्रशासक नियुक्त करती रही है।

इसमें बेहतर प्रबंधन के लिए मध्यप्रदेश महाकालेश्रवर अधिनियम-1982 के तहत मंदिर में सभी प्रबंध राज्य सरकार की देखरेख में शासन द्वारा नियुक्त प्रशासक के अधीन होती है।जानकारी के अनुसार कुंडेश्वर मंदिर टीकमगढ़ और रामराजा मंदिर ओरछा के एक्ट पारित किए जाने की मांग पूर्व में उठती रही है।

प्रदेश में मंदिरों के प्रबंध के लिए पहले से मप्र लोक न्यास अधिनियम-1951 और मध्यभारत धर्मादा निधि अधिनियम-1951 में पारित हुआ। इसके अंतर्गत ही प्रदेश में मंदिरों की सुरक्षा और प्रबंध की जिम्मेदारी कलेक्टरों की है। इन्हीं अधिनियम को बाद में मप्र सार्वजनिक स्थान (धार्मिक भवन एवं गतिविधियों का विनियमन) अधिनियनम 2001 के अंतर्गत लाया गया।

दो साल पहले मिला हक

मंदिरों, शासन संधारित देव स्थानों की कृषि भूमि एवं भवन का प्रबंधक कलेक्टर को बनाए जाने के लिए 2019 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार में आदेश निकला। अध्यात्म विभाग द्वारा नियम बनाए गए, जिससे प्रबंधन प्रशासन के हाथ में चला गया। 2020 में भाजपा सरकार नियम बदल गया। इससे मंदिरों की प्रबंध समितियों के पास दोबारा अधिकार आ गए।

यहां प्रबंधन समिति
ओंकारेश्वर मंदिर, इंदौर का अन्नपूर्णा मंदिर, उज्जैन का भैरव पर्वत व बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामन गणेश मंदिर, रामराजा मंदिर ओरछा, भरत मिलाप व सती अनुसुइया चित्रकूट, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर, भोपाल का लक्ष्मीनारायण मंदिर, कालिका माता मंदिर रतलाम, तक्षकेश्वर मंदसौर, नलखेड़ा पीठ आगर मालवा, कंकाली माता मंदिर रायसेन, तरावली माता मंदिर बैरसिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *