भोपाल। सियासत के गलियारों में नया साल ऐसी चुनौतियों के साथ दस्तक दे रहा है, जिनसे भाजपा और कांग्रेस का न सिर्फ भविष्य तय होगा, बल्कि मध्य प्रदेश की अगले पांच साल की दिशा निर्धारित होगी। नया साल 2023 यह मौका विधानसभा चुनाव के रूप में लेकर आ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की स्थिति भले कमजोर हो, लेकिन मध्य प्रदेश विधानसभा में वह भाजपा को खासी टक्कर दे रही है। 2018 के चुनाव से लेकर अब तक के लगातार बदलते राजनीतिक तस्वीरों के बीच कोई शक नहीं है कि आने वाला विधानसभा चुनाव दोनों दलों के लिए सत्ता ही नहीं, बल्कि नाक का भी सवाल होगा। कमल नाथ वापसी के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं तो भाजपा 2018 के परिणाम की पुनरावृत्ति किसी भी दशा में रोकते हुए सत्ता बरकरार रखना चाहती है। दोनों दलों की कुंडली खंगालें तो कई समानताएं स्पष्ट संकेत करती हैं कि कोई किसी से कम नहीं और मुकाबला कांटेदार रहेगा।

MP Assembly Election 2023: 2018 में हुआ कांटे का मुकाबला

इस साल हुए विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत किसी को नहीं मिल सका था। कांग्रेस 114 और भाजपा 109 सीटें जीत सकी थी। दोनों का वोट शेयर क्रमश: 41.5 और 41.6 प्रतिशत रहा। चुनाव में कई मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था। इन परिणामों में सुधार करते हुए विस चुनाव में सत्ता के जादुई आंकड़े 116 को पार करने की चुनौती दोनों दलों के सामने है। हालांकि, मार्च 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद अब तक भाजपा की सीटें बढ़कर 127 हो चुकी है, जबकि कांग्रेस की 96 रह गई है।

MP Politics: गुटबाजी का खतरा भी

हालांकि, दोनों दलों में अलग-अलग धड़ों के बीच संबंध मधुर न होने की खबरें भी किसी चुनौती से कम नहीं। भाजपा हमेशा से कांग्रेस के कई गुटों में बंटे होने के आरोप लगाती रही है, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद ऐसे ही तीर उसे भी झेलने पड़ रहे हैं। भाजपा के अंदरखाने में ही उन विधानसभा सीटों के नेताओं में भविष्य को लेकर चिंता है, जहां 2020 के उपचुनाव में भाजपा को जीत मिली थी। इन सीटों पर भाजपा ने अपने पुराने प्रत्याशी के बजाय ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को मौका दिया था, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। 2023 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर सिंधिया समर्थकों को फिर से मौका मिलेगा या भाजपा अपने पुराने नेता को मैदान में उतारेगी, इसे लेकर अभी से अंदरूनी खींचतान शुरू हो चुकी है। विश्लेषक मानते हैं कि इन परिस्थितियों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले खासी संख्या में कांग्रेस और भाजपा के बीच नेताओं का पलायन देखने को मिल सकता है। इसे रोक पाना भी दोनों दलों के लिए बड़ी चुनौती है।

 दिग्गज चेहरों के भरोसे

भाजपा-कांग्रेस उन दिग्गज चेहरों के भरोसे भी दिखाई पड़ रही हैं, जिनका प्रभाव राष्ट्रीय स्तर तक है। भाजपा मोदी मैजिक के अलावा मामा कहे जाने वाले शिवराज सिंह के साथ ही केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित अन्य चेहरों को आगे रखकर चल रही है। प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व सांसद विवेक तन्खा, नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह और जयवर्द्धन सिंह को आगे बढ़ा रही है।

MP News: सरकार को अपनी उपलब्धियों पर भरोसा

शिवराज सरकार अपनी उपलब्धियों में कोरोना पर अंकुश से लेकर प्रदेश में निवेश तक सामने रखने की तैयारी में है। शिवराज सरकार ने एक साल में एक लाख युवाओं को नौकरी देने की घोषणा कर दी है। मप्र लोकसेवा आयोग ने चार हजार पदों पर भर्ती निकाल दी है। हर महीने आयोजित रोजगार मेले में करीब 12 लाख से अधिक लोगों को स्वरोजगार से जोड़ा गया। इनके अलावा शिवराज सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी, कन्यादान और तीर्थदर्शन यात्रा जैसी जनता के हित से सीधे जुड़ी योजनाओं को नए कलेवर के साथ लांच किया है। इसमें लाभ की राशि बढ़ाने के साथ कई सुविधाएं जोड़ी गई हैं।

MP Election 2023: मुद्दे और वादे

किसानों के कर्ज 10 दिनों में माफ करने के वादे के साथ कमल नाथ सत्ता में आए थे। सत्ता जाने पर उन्होंने दावा किया था कि बड़ी संख्या में किसानों को राहत दी गई है। शिवराज ने चौथी बार सत्ता संभाली तो उन्होंने कर्ज माफी के वादे पर कमल नाथ को घेरा, लेकिन स्वयं कर्जमाफी पर स्पष्ट लकीर खींचने के बजाए कहते हैं कि हमने किसानों के खातों में दो लाख 12 हजार 464 करोड़ रुपये डाले। आने वाले चुनावों में दोनों दलों के सामने किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा चुनौती रहेगा। कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाली इस बार अहम मुद्दा बनना तय है। कमल नाथ कह चुके हैं कि इसे घोषणा पत्र में शामिल करेंगे, जबिक शिवराज सरकार इन्कार कर चुकी है।