गहलोत-वसुंधरा का भविष्य दांव पर …!

राजस्थान: बीजेपी-कांग्रेस से ज्यादा गहलोत-वसुंधरा का भविष्य दांव पर
बीते 4 साल में कई बार ऐसा हुआ जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट की रार ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी. बीजेपी के लिए भी अंदरुनी कलह बड़ी बाधा है.

राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी में विधानसभा चुनाव की तैयारियों से ज्यादा अंदर की खेमेबाजी से निपटने के लिए गुणा-गणित चल रहा है. राजस्थान में साल 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राजस्थान सबसे बड़ा कांग्रेस शासित राज्य है. कांग्रेस इसे खोना नहीं चाहती तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी हर हाल में इस राज्य में अपनी सत्ता कायम करना चाहती है.

हालांकि यह चुनाव कांग्रेस या बीजेपी से ज्यादा तीन बार से सीएम रहे अशोक गहलोत और दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे के लिए महत्वपूर्ण है. बीते 4 साल में कई ऐसे मौके आए जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट की रार से कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई.

वहीं बीजेपी के लिए भी अंदरुनी कलह बड़ी बाधा है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के बीच तकरार की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती है. ऐसे में बीजेपी के लिए राजस्थान की सत्ता को हासिल करना उतना आसान नहीं होगा और कांग्रेस को भी आपसी कलह के समस्या क्या तोड़ निकालना पड़ेगा.

राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 101 सीटें चाहिए. यहां पिछले 6 चुनाव से बीजेपी और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती है. ये सिलसिला 1993 से जारी है. 1993 से यहां कोई भी पार्टी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सकी है.

राजस्थान की ये परिपाटी ही फिलहाल सत्ताधारी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. कांग्रेस के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच 2018 के बाद से ही तनातनी है. कांग्रेस के लिए  इस बाधा से भी निपटना एक बड़ी चुनौती है और बीजेपी की राह में ये सबसे फायदेमंद पहलू है.

अशोक गहलोत के सामने क्या है चुनौतियां

  • अशोक गहलोत साल 2018 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर राज्य में तीसरी बार सीएम बने थे. लेकिन इस बार का कार्यकाल पिछले दो कार्यकाल की तुलना में काफी उथल पुथल भरा रहा.
  • अपने पिछले कार्यकाल की तुलना में इस बार अशोक गहलोत केंद्र सरकार के निशाने पर ज्यादा रहे हैं. उन पर कई जांच एजेंसियों द्वारा अलग-अलग मामलों में पूछताछ की करवाई भी की जा चुकी है.
  • सीएम पद पर रहते हुए अशोक गहलोत को कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट और उनके गुट का विद्रोह भी झेलना पड़ा. अशोक गहलोत को सबसे ज्यादा चुनौती सचिन पायलेट से मिली है, लेकिन फिलहाल टकराव ठंडा पड़ा हुआ है.
  • जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम की चर्चा थी उस वक्त पार्टी हाईकमान ने भी उनके सीएम पद को लेकर असंतोष जाहिर किया था. कांग्रेस पार्टी के ‘एक व्यक्ति एक पद’ के नियम के मुताबिक उनको अध्यक्ष बनने के लिए सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ती.

हालांकि इतनी मुश्किलों के बाद भी अशोक गहलोत अगर अपने कार्यकाल के अंतिम चरण की ओर खड़े हैं, तो यह काफी हद तक खेल के पिछले मास्टर के रूप में उनकी अपनी क्षमताओं के कारण है.

वसुंधरा राजे की चुनौतियां 

  • राजस्थान बीजेपी में भी गुटबाजी हावी है. वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, सतीश पूनिया और गुलाबचंद कटारिया खेमे के बीच आपसी खींचतान चलती रहती है
  • राजस्थान में बीजेपी प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रभाव से बाहर निकालने की कोशिश में लगी है. यहीं कारण पार्टी के अंदर राजे के समर्थक और विरोधी खेमे के बीच टकराव ने पार्टी की चिंता बढ़ाई हुई है.
  • पिछले दो दशक से वसुंधरा राजे बीजेपी पार्टी की एकछत्र नेता है. लेकिन पिछले पांच सालों में बीजेपी ने राज्य में नए नेताओं को उभारने की काफी कोशिश की है. हालांकि वसुंधरा राजे के सामने ये कोशिश कुछ खास असर नहीं कर पाई.

सत्ता बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने बनाया ये प्लान

गहलोत सरकार इस बार तय समय से पहले यानी विधानसभा चुनाव से पहले बजट ला रहे हैं. ऐसे में इस बार के बजट में हर वर्ग को खुश करने के लिए बड़ी घोषणाएं की जा सकती है. तय समय से पहले बजट पेश करने का यह भी मकसद हो सकता है कि बजट घोषणाओं को चुनावों से पहले पूरा कर गहलोत सरकार अपने पक्ष में माहौल बना सके.

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और पार्टी नेताओं का मानना है कि इस बार के चुनाव में उनकी पार्टी को सरकार की योजनाओं का फायदा मिलेगा. इन योजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण चिरंजीवी मुफ्त चिकित्सा बीमा योजना को माना जा रहा है. जिसके तहत दस लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त उपलब्ध करवाया जाता है. इसके अलावा वृद्धावस्था पेंशन योजना, शहरी रोजगार गारंटी योजना, इंदिरा रसोई योजना का भी लाभ पार्टी को मिलेगा.

कांग्रेस में फिलहाल गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेशाध्यक्ष हैं. उन्होंने हाल ही में कहा था, ‘ अगर कांग्रेस राजस्थान में अपनी सत्ता कायम रखना चाहती है तो सबसे पहले उन्हें गुटबाजी से दूर रहकर आम लोगों को जोड़ना होगा.

सरकार की योजनाओं के साथ केंद्र सरकार की विफलता और राहुल गांधी के विजन को लेकर जनता को जोड़ना होगा, इसके बाद फिर कोई कारण नहीं होगा कि सरकार 2023 में रिपीट नहीं कर सके.

सत्ता में लौटने के लिए बीजेपी 

भारतीय जनता पार्टी ने भी साल 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए इस बार राजस्थान में गुजरात मॉडल लागू किया है. बीजेपी का मानना है कि इसी मॉडल के दम पर पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2001 से 2013 तक सत्ता में बने रहे. ऐसे में उसी मॉडल पर राजस्थान में पहली बार चुनाव लड़ने पर पार्टी को फायदा मिल सकता है.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि हम हमारा फोकस है कि इस बार सत्ता में हम संगठन के ताकत के बूते पर आएं. इस चुनाव में हमने संगठन की योजनाओं को फोकस किया है. उन्होंने कहा कि केंद्र की तरफ से भी हमें यही निर्देश मिला है कि हमारा बूथ सशक्त हो.

2018 के विधानसभा चुनाव में क्या हुआ था

2018 के हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 100 सीटों पर जीत मिली थी. वो बहुमत से महज एक सीट दूर रह गई थी. वहीं 90 सीटों के नुकसान के साथ बीजेपी का रथ 73 सीटों पर रुक गया था. हालांकि दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर का अंतर महज सवा फीसदी ही था. बसपा (BSP) 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.

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