केन-बेतवा प्रोजेक्ट:केन-बेतवा की तरह मप्र का राजस्थान और महाराष्ट्र के साथ भी सुलझ सकता है जल बंटवारे पर विवाद

जिस तरह केन-बेतवा प्रोजेक्ट में जल बंटवारे पर मप्र और उप्र ने अपने मतभेद सुलझाए, मप्र ठीक उसी तरह महाराष्ट्र के साथ पेंच नदी जल बंटवारा विवाद और कान्हन पर जामघाट प्रोजेक्ट के मतभेद भी जल्द दूर हो सकते हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की पहल पर गुरुवार को भोपाल में होने जा रहे सभी राज्यों के जल संसाधन, पीएचई और सिंचाई मंत्रियों के सम्मेलन में इन विवादों का हल निकल सकता है।

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत बुधवार को भोपाल पहंुच गए हैं। नर्मदा बेसिन की बात करें तो बजट की कमी के कारण नहरें नहीं बन पाने से मप्र कमांड क्षेत्र विकास में पिछड़ गया है। मप्र इसके लिए केंद्र से अतिरिक्त राशि मांग सकता है।

चंबल-पार्वती-काली सिंध

डेढ़ दशक से अटकी ईआरईसीपी परियोजना
डेढ़ दशक से पूर्वी राजस्थान ईस्टर्न कैनाल परियोजना (ईआरईसीपी) अटकी है। मप्र-राजस्थान में 2005 में जो समझौता हुआ था, उसमें अपने-अपने क्षेत्र में बहने वाले अतिरिक्त पानी का 10% बिना अनुमति उपयोग की छूट है।

इस के बाद दूसरे राज्य की सहमति जरूरी है। राजस्थान ने मप्र से निकलने वाली चंबल की 4 सहायक नदियों पार्वती, कालीसिंध, क्यूल व कूनो पर बैराज बनाने और वर्षा जल संग्रहण की निर्भरता का 75 की बजाय 50% पानी लेने का प्रोजेक्ट तैयार किया, इसे ईआरईसीपी नाम दिया है।

इस पर मप्र को आपत्ति है। इस प्रोजेक्ट से सारा पानी राजस्थान के हक में जाएगा। राजस्थान परियोजना से ग्वालियर-चंबल को पानी देने का विकल्प देता है तो मप्र एनओसी दे सकता है। ये चारों नदियां राजस्थान में जाकर चंबल में मिलती हैं।

पेंच नदी- महाराष्ट्र बना रहा है मप्र पर लगातार दबाव
सिवनी में पेंच नदी के पानी को लेकर मप्र-महाराष्ट्र के बीच मतभेद पैदा हुए हैं। पेंच डायवर्सन परियोजना के माचागोरा बांध के निर्माण से महाराष्ट्र का तोतलाडोह जलाशय कुछ सालों से भर नहीं पा रहा। इस बांध से नागपुर में जलापूर्ति होती है। विकल्प खोजने के लिए महाराष्ट्र मप्र पर दबाव बना रहा है। इसी दबाव में मप्र ने छिंदवाड़ा की कान्हन नदी पर महाराष्ट्र के जामघाट प्रोजेक्ट को मंजूरी दी।

इस प्रोजेक्ट को लेकर 1968 में महाराष्ट्र को 10 टीएमसी और मप्र को 5 टीएमसी पानी बंटवारे का अनुबंध हुआ था। लेकिन लागत पर दोनों राज्यों में मतभेद थे। अब महाराष्ट्र चाहता हैं कि तोतलाडोह जलाशय को हुए नुकसान की भरपाई मप्र इस प्रोजेक्ट के जरिए करे।

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