इंदौर :इन महिलाओं ने मुश्किल काम कर दिलाया नंबर-1 का खिताब …!

इन महिलाओं ने मुश्किल काम कर दिलाया नंबर-1 का खिताब:सफलता की किरदार: सेग्रीगेशन में 70%, सफाई में 50% महिलाकर्मी

देश के सबसे स्वच्छ शहर में देवगुराड़िया के ट्रेंचिंग ग्राउंड पर गीले कचरे के निपटान के लिए एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट व सूखे कचरे के लिए देश का सबसे बड़ा मटेरियल रिकवरी फेसिलिटी ऑटोमेटेड प्लांट स्थापित किया गया है जो अन्य शहरों के लिए मिसाल बन गए हैं। दुनिया मे 3 शहरों में एयर पॉल्यूशन पर काम चल रहा है, उनमें इंडिया से सिर्फ इंदौर है। लेकिन यहां काम करने वाली महिलाओं के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। सेग्रीगेशन हो या शहर की सफाई दोनों में ही महिला कर्मचारियों की संख्या 50 फीसदी से भी ज्यादा है। कचरे से निकलने वाली गंध यदि लगातार ली जाए तो इससे स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं भी हो जाती है। डॉक्टरों का दावा है इससे फेंफड़े, नाक व स्किन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।

पिछले दिनों यहां प्लांट से करीब पांच से छह किमी दूरी तक शहर में बदबू फैली। बदबू ने शहरवासियों को परेशान कर दिया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नोटिस भी दिया, लेकिन जवाब नहीं आया है। फिर भी इसी बदबू और कचरे के बीच महिलाएं और सैकड़ों सफाईकर्मी बिना थके दिन-रात काम कर रहीं हें।

कुंदन नगर की 30 वर्षीय सोनू चार साल से कचरे के प्लांट पर काम कर रही है। वहां मटेरियल को अलग-अलग तरह से छांटना होता है। बदबू और मशीन के शोर के बीच मास्क लगाएं दिनभर काम करती हैं। मास्क से घबराहट होती है, लेकिन यह प्रोटोकॉल है।दोनों जगह कुल 450 से ज्यादा का स्टाफ काम कर रहा है। निगम ने एक प्लांट पर रेग पिअर्स को रोजगार दिया। 28 साल की संगीता बिड़ौदिया और मोनू ने मशीनों के शोर को लेकर कहा कि शोर में रहना आदत हो गई है।

- ड्राय वेस्ट में भी फूड वेस्ट होता है। उससे मीथेन निकलती है। ट्रामल में घुमाते है। फाइन पार्टिकल होते है, हवा में सर्कुलेट होते है। प्लास्टिक के माइक्रो फाइबर्स होते है।
– ड्राय वेस्ट में भी फूड वेस्ट होता है। उससे मीथेन निकलती है। ट्रामल में घुमाते है। फाइन पार्टिकल होते है, हवा में सर्कुलेट होते है। प्लास्टिक के माइक्रो फाइबर्स होते है।

महिला कर्मचारियों को कचरे की गंध अब दुर्गंध नहीं लगती

70 फीसदी महिलाएं हैं जो सीधे धूल व कचरे के संपर्क में आती हैं। इसके अलावा शहर की सड़कों को साफ करने के लिए साढे सात हजार सफाईकर्मी हैं। इनमें से 3,686 सिर्फ महिलाएं ही हैं। क्षेत्र में व प्लांट पर लगातार बदबू के बीच व मास्क से होने वाली घुटन को लेकर जब सवाल किया तो ज्यादातर महिला कर्मचारियों का जवाब था कि अब आदत हो गई है, पता नहीं चलता।

सभी सावधानी रख रहे पर आंखों का क्या

कचरा प्रोसेसिंग प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए फैक्ट्री एक्ट के तहत चश्मा, कैप, जूते, एप्रिन, ग्लव्स सब पहनना जरूरी है। प्लांट पर पतला मास्क व हाथ में कपड़े के ग्लव्स महिलाएं पहने होती हैं, लेकिन आंखों पर चश्मा नहीं लगा होता। इसी प्लांट पर काम करने वाली 30 साल की संगीता राठौर कहती हैं कि पहले भी कचरे का काम करते थे। अब भी कचरे में रोज हाथ डालने कि आदत हो गई है। मास्क में घबराहट होती है तो कभी निकाल देते हैं। अभी तक तो कभी तबीयत खराब नहीं हुई है। हर साल डॉक्टर जांच करने आते हैं। ज्यादातर ने बताया कि बदबू गीले कचरे की प्रोसेसिंग के दौरान आती है। हालांकि डॉक्टर्स मानते हैं कि बदबू आने का मतलब यही है कि गैस बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लंबे समय बाद इसके साइड इफेक्ट्स सामने आते हैं। इस प्लांट के आसपास हजारों लोगों की बसाहट है लेकिन यहां काम करने वाले सफाईकर्मी वे लोग है जो शहर को स्वच्छ रखने के लिए ट्रेचिंग ग्राउंड पर सुबह से शाम तक काम करते रहते हैं।

- लैंड फिल से मीथेन का उत्सर्जन एक अरब टन कार्बन डाय ऑक्साइड के बराबर होता है।
– लैंड फिल से मीथेन का उत्सर्जन एक अरब टन कार्बन डाय ऑक्साइड के बराबर होता है।

किसी तरह की बदबू आ रही है, इसका मतलब टौक्सिक गैस निकल रहीं
क्लीन एयर कैटलिस्ट के सलाहकार और इंदौर के चेस्ट फिजिशियन प्रो. डॉ. सलिल भार्गव का कहते हैं कि अगर कहीं भी किसी तरह की बदबू आ रही है, इसका मतलब यह है कि किसी ना किसी तरह की टौक्सिक गैस निकल रही है। वह मीथेन,कार्बन मोनो ऑक्साइड या सल्फर डाय ऑक्साइड हो सकती है। बदबू आने का मतलब गैस बन रही है। थोड़ी मात्रा में यह नुकसान नहीं करती है लेकिन लंबे समय तक अधिक मात्रा में अगर यह शरीर में जाए तो फेफडों, नाक, चमड़ी पर असर डाल सकती है।

टौक्सिक गैस से बचने का उपाय है, न्यूट्रीशन व फूड सप्लीमेंट पर्याप्त मात्रा में दिया जाए

इसका विकल्प यह है कि यहां काम करने वाले कर्मचारियों की ड्यूटी लगानी चाहिए। इन कर्मचारियों को न्यूट्रीशनल या फूड सप्लीमेंट दिया जाना चाहिए। प्लांट पर स्ट्रांग एक्जास्ट लगाना चाहिए। इसकी वजह यह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है। प्राकृतिक रूप से महिलाएं शारीरिक रूप से पुरुषों की तुलना में ज्यादा मजबूत नहीं होती है। पतला मास्क धूल से नहीं बचाता है। प्लांट के प्रांशु गंगराडे कहते हैं कि सूखे कचरे में टौक्सिक तत्व नहीं होते हैं। इसलिए यह स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं। एयर क्वालिटी के लिए बड़े फिल्टर भी प्लांट में लगे हैं।

बायपास क्षेत्र में रहने वाले लोगों को खिड़कियां बंद करना पड़ती है। तत्काल प्रभाव पता नहीं चलेंगे लेकिन लांग टर्म में ब्रीदिंग प्राब्लम हो सकती है।
बायपास क्षेत्र में रहने वाले लोगों को खिड़कियां बंद करना पड़ती है। तत्काल प्रभाव पता नहीं चलेंगे लेकिन लांग टर्म में ब्रीदिंग प्राब्लम हो सकती है।

बायो सीनएजी प्लांट इंदौर की ताकत
दरअसल, पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के पक्षधर इंदौर के बायो सीएनजी प्लांट को देश-दुनिया में मिसाल के रूप में देखते हैं। भारत में एन्वायरमेंटल डिफेंस फंड (ईडीएफ) के चीफ एडवाइजर, इंडिया हिषम मंडल के मुताबिक, “इंदौर के बायो-सीएनजी प्लांट कचरा प्रबंधन की प्रक्रिया और चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को बड़े औद्योगिक स्तर पर ले जाता है। यह संसाधनों के फायदेमंद इस्तेमाल की मिसाल है जो इसे आकर्षक निवेश बनाता है। यह काम करने वालों को सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल देता है।

सफाई मित्रों को बेहतर स्वास्थ्य देना भी अहम जिम्मेदारी

इंदौर को वायु प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए चल रहे क्लीन एयर कैटलिस्ट प्रोग्राम के प्रोजेक्ट लीडर कौशिक हजारिका कहते हैं, “कचरा प्रबंधन को लेकर नगर निगम का काम सराहनीय रहा है। इसमें नागरिकों और सफाई कर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। अब इन लोगों को वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके बुरे असर को लेकर जागरुक करने की जरूरत है। हमारे सफाई मित्रों के साथ ही कचरे की छंटाई में लगी महिलाओं को भी खराब वायु के खतरों को लेकर आगाह करने की जरूरत होगी।

70 फीसदी महिलाएं हैं जो सीधे धूल व कचरे के संपर्क में आती हैं। इसके अलावा शहर की सड़कों को साफ करने के लिए साढे सात हजार सफाईकर्मी हैं।
70 फीसदी महिलाएं हैं जो सीधे धूल व कचरे के संपर्क में आती हैं। इसके अलावा शहर की सड़कों को साफ करने के लिए साढे सात हजार सफाईकर्मी हैं।

6 से 8 किमी फैली बदबू, नोटिस का जवाब अब तक नहीं मिला
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रीजनल ऑफिसर एसएन द्विवेदी कहते हैं कि ट्रेचिंग ग्राउंड से पांच किमी दूर तक बदबू आना ठीक नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि एस2एस गैस की स्क्रबिंग नहीं हो रही होगी। हमने वहां जाकर निरीक्षण भी किया था। इतनी दूर तक बदबू आने का मतलब है कि डिकंपोजीशन सही नहीं है। पिछले दिनों जब बंगाली चौराहे तक बदबू आई तब निरीक्षण किया। नगर निगम में कंसल्टेंट रह चुके असद वारसी कहते है कि बायोमिथेनाइजेशन प्लांट में कोई गैस बाहर निकलती नहीं है। इसके अलावा वहां डस्ट कलेक्टर लगाकर रखते हैं। इसमें लोडिंग व अनलोडिंग में पीपीई किट उपयोग करना चाहिए। यहां उपयोग किया जा रहा है। इधर, गीले कचरे से वातावरण में मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन डाय ऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन होता है। स्लरी में भी यह गैस निकलती है। पिछले दिनों सीएनजी प्लांट की स्लरी आईटी पार्क के गार्डन में डंप कर दी थी। फिर बदबू छिपाने के लिए मिट्टी डलवा दी गई थी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नोटिस भी दिया। जिसका जवाब अभी तक नहीं आया है।

- वर्ष में चलने वाली लगभग 2.2 करोड़ कारों से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस उत्सर्जन के बराबर होता है।
– वर्ष में चलने वाली लगभग 2.2 करोड़ कारों से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस उत्सर्जन के बराबर होता है।

साढ़े तीन हजार से ज्यादा महिलाएं सड़कों की सफाई में जुटी
आंकड़े देखें तो सूखे कचरे के प्लांट पर 350 लोग काम कर रहे हैं। वहीं बायो सीएनजी प्लांट पर 9 से 10 महिलाएं काम कर रही हैं। शहर की सड़कों पर साढ़े तीन हजार से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं। सफाईकर्मी किरण पिपल्दे नाइट शिफ्ट में काम करती हैं। सुबह आकर घर का काम करना पड़ता है। इसके बाद नींद लेती हैं। वह बताती हैं कि मुंह पर कपड़ा बांधते हैं लेकिन एलर्जी हो गई है। खांसी की समस्या बनी रहती है। सूखे कचरे के प्लांट पर धूल की समस्या ज्यादा होती है जिसके लांग टर्म प्रभाव होते हैं जबकि गीले कचरे के प्लांट पर एस2एस और मीथेन के लीक होने का खतरा होता है।

इन दोनों ही जगह एक्यूआई जांचने का उपकरण नहीं है। कंपनियां रेंडमली जांच करवाती है। बायो सीएनजी प्लांट के इंचार्ज नितेश त्रिपाठी कहते है कि हमारे यहां ऑनलाइन मशीन नहीं लगी है लेकिन एक्यूआई की जांच रेंडमली करवाते है। थर्ड पार्टी हर तीन महीने में आकर जांच करती है। बैक फिल्टर लगाए हैं। कभी भी एक्यूआई का लेवल ज्यादा नहीं आया। इसके अलावा यहां काम करने वाले कर्मचारियों का नियमित रूप से हेल्थ चेकअप भी करवाते हैं।

प्लांट के नीतेश त्रिपाठी बताते है कि हमने प्रक्रिया शुरू कर दी है। बदबू को लेकर वे बोले कि चूंकी यहां कचरा होता है, इसलिए बदबू आना स्वभाविक है लेकिन मीथेन या एच2एस का उत्सर्जन नहीं होता है क्योंकि चैम्बर में ही यह प्रोसेस होता है। बाहर निकलना मुश्किल है। अभी तक किसी भी तरह के दुष्प्रभाव का कोई मामला सामने नहीं आया है। हर तीन महीने में नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण करवाया जाता है।

वायु प्रदूषण कम करना सबसे बड़ी चुनौती
देश के सबसे स्वच्छ शहर में 10 से ज्यादा प्रोसेसिंग यूनिट्स है जहां कचरे का निपटान किया जाता है। हाल ही में भारत सरकार की एक स्टडी के मुताबिक तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण वेस्ट सेक्टर 4.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। गीले कचरे वाले बायो सीएनजी प्लांट पर 9 महिलाएं ही काम कर रही हैं। गीले कचरे से रोजाना 13 हजार टन बायो-सीएनजी बनाई जा रही है। निगम का दावा है कि हर साल टन गैस का उत्सर्जन रोका जा रहा है। इससे कार्बन क्रेडिट मिलेंगे। जिसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने की तैयारी की जा रही है लेकिन शहर को साफ बनाने की कीमत वे कर्मचारी चुकाते हैं जो यहां दिनरात काम करते हैं।

एमजीएम मेडिकल कॉलेज की वर्ष 2018 में एक स्टडी की जिसके मुताबिक करीब 63 फीसदी महिला सफाईकर्मी इस काम में जुटी है। इनमें से 93 फीसदी महिलाएं सड़कों पर सफाई करती है। इनमें भी 44 फीसदी ऐसी हैं जो 10 साल से काम कर रही हैं। इसमें 96 फीसदी को किसी ना किसी तरह की हेल्थ प्राब्लम थी। डीन डॉ. संजय दीक्षित कहते है कि स्टडी में यह सामने आया था कि ज्यादातर को खांसी की समस्या होती थी।

डायजेस्टर में जाने के पहले बदबू आती है, मतलब मीथेन बनना शुरू
पर्यावरण विशेषज्ञ राहुल गुप्ता कहते हैं कि डायजेस्टर में जाने से पहले भी बदबू आती है तो मीथेन बनना शुरू हो जाती है। जहां गाड़ियां खाली होती हैं, वहां मानव स्वास्थ्य को लेकर खतरे का डर रहता है। घर में भी कचरे से बदबू तभी आने लगती है जब कचरे का ब्रेकडाउन चालू हो जाता है। मतलब वोलेटाइल गैस यानी मीथैन, कार्बन डाय ऑक्साइड, एस2एस गैस निकल रही है। यह कोरोजल गैस है। यानी लोहे को भी गला देती है। इसकी स्क्रबिंग उसी में होती है। ये मानव शरीर को प्राब्लम देता ही है। लांग टर्म इफेक्ट होते है। शार्ट टर्म नहीं होता है।

- इंदौर देश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां लैंड फिल पूरी तरह खत्म हो चुकी है और एक लाख 30 हजार टन कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है।
– इंदौर देश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां लैंड फिल पूरी तरह खत्म हो चुकी है और एक लाख 30 हजार टन कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है

देश के सबसे स्वच्छ शहर में देवगुराड़िया के ट्रेंचिंग ग्राउंड पर गीले कचरे के निपटान के लिए एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट व सूखे कचरे के लिए देश का सबसे बड़ा मटेरियल रिकवरी फेसिलिटी ऑटोमेटेड प्लांट स्थापित किया गया है जो अन्य शहरों के लिए मिसाल बन गए हैं। दुनिया मे 3 शहरों में एयर पॉल्यूशन पर काम चल रहा है, उनमें इंडिया से सिर्फ इंदौर है। लेकिन यहां काम करने वाली महिलाओं के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। सेग्रीगेशन हो या शहर की सफाई दोनों में ही महिला कर्मचारियों की संख्या 50 फीसदी से भी ज्यादा है। कचरे से निकलने वाली गंध यदि लगातार ली जाए तो इससे स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं भी हो जाती है। डॉक्टरों का दावा है इससे फेंफड़े, नाक व स्किन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।

पिछले दिनों यहां प्लांट से करीब पांच से छह किमी दूरी तक शहर में बदबू फैली। बदबू ने शहरवासियों को परेशान कर दिया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नोटिस भी दिया, लेकिन जवाब नहीं आया है। फिर भी इसी बदबू और कचरे के बीच महिलाएं और सैकड़ों सफाईकर्मी बिना थके दिन-रात काम कर रहीं हें।

कुंदन नगर की 30 वर्षीय सोनू चार साल से कचरे के प्लांट पर काम कर रही है। वहां मटेरियल को अलग-अलग तरह से छांटना होता है। बदबू और मशीन के शोर के बीच मास्क लगाएं दिनभर काम करती हैं। मास्क से घबराहट होती है, लेकिन यह प्रोटोकॉल है।दोनों जगह कुल 450 से ज्यादा का स्टाफ काम कर रहा है। निगम ने एक प्लांट पर रेग पिअर्स को रोजगार दिया। 28 साल की संगीता बिड़ौदिया और मोनू ने मशीनों के शोर को लेकर कहा कि शोर में रहना आदत हो गई है।

- ड्राय वेस्ट में भी फूड वेस्ट होता है। उससे मीथेन निकलती है। ट्रामल में घुमाते है। फाइन पार्टिकल होते है, हवा में सर्कुलेट होते है। प्लास्टिक के माइक्रो फाइबर्स होते है।
– ड्राय वेस्ट में भी फूड वेस्ट होता है। उससे मीथेन निकलती है। ट्रामल में घुमाते है। फाइन पार्टिकल होते है, हवा में सर्कुलेट होते है। प्लास्टिक के माइक्रो फाइबर्स होते है।

महिला कर्मचारियों को कचरे की गंध अब दुर्गंध नहीं लगती

70 फीसदी महिलाएं हैं जो सीधे धूल व कचरे के संपर्क में आती हैं। इसके अलावा शहर की सड़कों को साफ करने के लिए साढे सात हजार सफाईकर्मी हैं। इनमें से 3,686 सिर्फ महिलाएं ही हैं। क्षेत्र में व प्लांट पर लगातार बदबू के बीच व मास्क से होने वाली घुटन को लेकर जब सवाल किया तो ज्यादातर महिला कर्मचारियों का जवाब था कि अब आदत हो गई है, पता नहीं चलता।

सभी सावधानी रख रहे पर आंखों का क्या

कचरा प्रोसेसिंग प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए फैक्ट्री एक्ट के तहत चश्मा, कैप, जूते, एप्रिन, ग्लव्स सब पहनना जरूरी है। प्लांट पर पतला मास्क व हाथ में कपड़े के ग्लव्स महिलाएं पहने होती हैं, लेकिन आंखों पर चश्मा नहीं लगा होता। इसी प्लांट पर काम करने वाली 30 साल की संगीता राठौर कहती हैं कि पहले भी कचरे का काम करते थे। अब भी कचरे में रोज हाथ डालने कि आदत हो गई है। मास्क में घबराहट होती है तो कभी निकाल देते हैं। अभी तक तो कभी तबीयत खराब नहीं हुई है। हर साल डॉक्टर जांच करने आते हैं। ज्यादातर ने बताया कि बदबू गीले कचरे की प्रोसेसिंग के दौरान आती है। हालांकि डॉक्टर्स मानते हैं कि बदबू आने का मतलब यही है कि गैस बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लंबे समय बाद इसके साइड इफेक्ट्स सामने आते हैं। इस प्लांट के आसपास हजारों लोगों की बसाहट है लेकिन यहां काम करने वाले सफाईकर्मी वे लोग है जो शहर को स्वच्छ रखने के लिए ट्रेचिंग ग्राउंड पर सुबह से शाम तक काम करते रहते हैं।

- लैंड फिल से मीथेन का उत्सर्जन एक अरब टन कार्बन डाय ऑक्साइड के बराबर होता है।
– लैंड फिल से मीथेन का उत्सर्जन एक अरब टन कार्बन डाय ऑक्साइड के बराबर होता है।

किसी तरह की बदबू आ रही है, इसका मतलब टौक्सिक गैस निकल रहीं
क्लीन एयर कैटलिस्ट के सलाहकार और इंदौर के चेस्ट फिजिशियन प्रो. डॉ. सलिल भार्गव का कहते हैं कि अगर कहीं भी किसी तरह की बदबू आ रही है, इसका मतलब यह है कि किसी ना किसी तरह की टौक्सिक गैस निकल रही है। वह मीथेन,कार्बन मोनो ऑक्साइड या सल्फर डाय ऑक्साइड हो सकती है। बदबू आने का मतलब गैस बन रही है। थोड़ी मात्रा में यह नुकसान नहीं करती है लेकिन लंबे समय तक अधिक मात्रा में अगर यह शरीर में जाए तो फेफडों, नाक, चमड़ी पर असर डाल सकती है।

टौक्सिक गैस से बचने का उपाय है, न्यूट्रीशन व फूड सप्लीमेंट पर्याप्त मात्रा में दिया जाए

इसका विकल्प यह है कि यहां काम करने वाले कर्मचारियों की ड्यूटी लगानी चाहिए। इन कर्मचारियों को न्यूट्रीशनल या फूड सप्लीमेंट दिया जाना चाहिए। प्लांट पर स्ट्रांग एक्जास्ट लगाना चाहिए। इसकी वजह यह है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है। प्राकृतिक रूप से महिलाएं शारीरिक रूप से पुरुषों की तुलना में ज्यादा मजबूत नहीं होती है। पतला मास्क धूल से नहीं बचाता है। प्लांट के प्रांशु गंगराडे कहते हैं कि सूखे कचरे में टौक्सिक तत्व नहीं होते हैं। इसलिए यह स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं। एयर क्वालिटी के लिए बड़े फिल्टर भी प्लांट में लगे हैं।

बायपास क्षेत्र में रहने वाले लोगों को खिड़कियां बंद करना पड़ती है। तत्काल प्रभाव पता नहीं चलेंगे लेकिन लांग टर्म में ब्रीदिंग प्राब्लम हो सकती है।
बायपास क्षेत्र में रहने वाले लोगों को खिड़कियां बंद करना पड़ती है। तत्काल प्रभाव पता नहीं चलेंगे लेकिन लांग टर्म में ब्रीदिंग प्राब्लम हो सकती है।

बायो सीनएजी प्लांट इंदौर की ताकत
दरअसल, पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के पक्षधर इंदौर के बायो सीएनजी प्लांट को देश-दुनिया में मिसाल के रूप में देखते हैं। भारत में एन्वायरमेंटल डिफेंस फंड (ईडीएफ) के चीफ एडवाइजर, इंडिया हिषम मंडल के मुताबिक, “इंदौर के बायो-सीएनजी प्लांट कचरा प्रबंधन की प्रक्रिया और चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को बड़े औद्योगिक स्तर पर ले जाता है। यह संसाधनों के फायदेमंद इस्तेमाल की मिसाल है जो इसे आकर्षक निवेश बनाता है। यह काम करने वालों को सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल देता है।

सफाई मित्रों को बेहतर स्वास्थ्य देना भी अहम जिम्मेदारी

इंदौर को वायु प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए चल रहे क्लीन एयर कैटलिस्ट प्रोग्राम के प्रोजेक्ट लीडर कौशिक हजारिका कहते हैं, “कचरा प्रबंधन को लेकर नगर निगम का काम सराहनीय रहा है। इसमें नागरिकों और सफाई कर्मियों की भागीदारी सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। अब इन लोगों को वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके बुरे असर को लेकर जागरुक करने की जरूरत है। हमारे सफाई मित्रों के साथ ही कचरे की छंटाई में लगी महिलाओं को भी खराब वायु के खतरों को लेकर आगाह करने की जरूरत होगी।

70 फीसदी महिलाएं हैं जो सीधे धूल व कचरे के संपर्क में आती हैं। इसके अलावा शहर की सड़कों को साफ करने के लिए साढे सात हजार सफाईकर्मी हैं।
70 फीसदी महिलाएं हैं जो सीधे धूल व कचरे के संपर्क में आती हैं। इसके अलावा शहर की सड़कों को साफ करने के लिए साढे सात हजार सफाईकर्मी हैं।

6 से 8 किमी फैली बदबू, नोटिस का जवाब अब तक नहीं मिला
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रीजनल ऑफिसर एसएन द्विवेदी कहते हैं कि ट्रेचिंग ग्राउंड से पांच किमी दूर तक बदबू आना ठीक नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि एस2एस गैस की स्क्रबिंग नहीं हो रही होगी। हमने वहां जाकर निरीक्षण भी किया था। इतनी दूर तक बदबू आने का मतलब है कि डिकंपोजीशन सही नहीं है। पिछले दिनों जब बंगाली चौराहे तक बदबू आई तब निरीक्षण किया। नगर निगम में कंसल्टेंट रह चुके असद वारसी कहते है कि बायोमिथेनाइजेशन प्लांट में कोई गैस बाहर निकलती नहीं है। इसके अलावा वहां डस्ट कलेक्टर लगाकर रखते हैं। इसमें लोडिंग व अनलोडिंग में पीपीई किट उपयोग करना चाहिए। यहां उपयोग किया जा रहा है। इधर, गीले कचरे से वातावरण में मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन डाय ऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन होता है। स्लरी में भी यह गैस निकलती है। पिछले दिनों सीएनजी प्लांट की स्लरी आईटी पार्क के गार्डन में डंप कर दी थी। फिर बदबू छिपाने के लिए मिट्टी डलवा दी गई थी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नोटिस भी दिया। जिसका जवाब अभी तक नहीं आया है।

- वर्ष में चलने वाली लगभग 2.2 करोड़ कारों से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस उत्सर्जन के बराबर होता है।
– वर्ष में चलने वाली लगभग 2.2 करोड़ कारों से उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस उत्सर्जन के बराबर होता है।

साढ़े तीन हजार से ज्यादा महिलाएं सड़कों की सफाई में जुटी
आंकड़े देखें तो सूखे कचरे के प्लांट पर 350 लोग काम कर रहे हैं। वहीं बायो सीएनजी प्लांट पर 9 से 10 महिलाएं काम कर रही हैं। शहर की सड़कों पर साढ़े तीन हजार से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं। सफाईकर्मी किरण पिपल्दे नाइट शिफ्ट में काम करती हैं। सुबह आकर घर का काम करना पड़ता है। इसके बाद नींद लेती हैं। वह बताती हैं कि मुंह पर कपड़ा बांधते हैं लेकिन एलर्जी हो गई है। खांसी की समस्या बनी रहती है। सूखे कचरे के प्लांट पर धूल की समस्या ज्यादा होती है जिसके लांग टर्म प्रभाव होते हैं जबकि गीले कचरे के प्लांट पर एस2एस और मीथेन के लीक होने का खतरा होता है।

इन दोनों ही जगह एक्यूआई जांचने का उपकरण नहीं है। कंपनियां रेंडमली जांच करवाती है। बायो सीएनजी प्लांट के इंचार्ज नितेश त्रिपाठी कहते है कि हमारे यहां ऑनलाइन मशीन नहीं लगी है लेकिन एक्यूआई की जांच रेंडमली करवाते है। थर्ड पार्टी हर तीन महीने में आकर जांच करती है। बैक फिल्टर लगाए हैं। कभी भी एक्यूआई का लेवल ज्यादा नहीं आया। इसके अलावा यहां काम करने वाले कर्मचारियों का नियमित रूप से हेल्थ चेकअप भी करवाते हैं।

प्लांट के नीतेश त्रिपाठी बताते है कि हमने प्रक्रिया शुरू कर दी है। बदबू को लेकर वे बोले कि चूंकी यहां कचरा होता है, इसलिए बदबू आना स्वभाविक है लेकिन मीथेन या एच2एस का उत्सर्जन नहीं होता है क्योंकि चैम्बर में ही यह प्रोसेस होता है। बाहर निकलना मुश्किल है। अभी तक किसी भी तरह के दुष्प्रभाव का कोई मामला सामने नहीं आया है। हर तीन महीने में नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण करवाया जाता है।

वायु प्रदूषण कम करना सबसे बड़ी चुनौती
देश के सबसे स्वच्छ शहर में 10 से ज्यादा प्रोसेसिंग यूनिट्स है जहां कचरे का निपटान किया जाता है। हाल ही में भारत सरकार की एक स्टडी के मुताबिक तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण वेस्ट सेक्टर 4.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। गीले कचरे वाले बायो सीएनजी प्लांट पर 9 महिलाएं ही काम कर रही हैं। गीले कचरे से रोजाना 13 हजार टन बायो-सीएनजी बनाई जा रही है। निगम का दावा है कि हर साल टन गैस का उत्सर्जन रोका जा रहा है। इससे कार्बन क्रेडिट मिलेंगे। जिसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने की तैयारी की जा रही है लेकिन शहर को साफ बनाने की कीमत वे कर्मचारी चुकाते हैं जो यहां दिनरात काम करते हैं।

एमजीएम मेडिकल कॉलेज की वर्ष 2018 में एक स्टडी की जिसके मुताबिक करीब 63 फीसदी महिला सफाईकर्मी इस काम में जुटी है। इनमें से 93 फीसदी महिलाएं सड़कों पर सफाई करती है। इनमें भी 44 फीसदी ऐसी हैं जो 10 साल से काम कर रही हैं। इसमें 96 फीसदी को किसी ना किसी तरह की हेल्थ प्राब्लम थी। डीन डॉ. संजय दीक्षित कहते है कि स्टडी में यह सामने आया था कि ज्यादातर को खांसी की समस्या होती थी।

डायजेस्टर में जाने के पहले बदबू आती है, मतलब मीथेन बनना शुरू
पर्यावरण विशेषज्ञ राहुल गुप्ता कहते हैं कि डायजेस्टर में जाने से पहले भी बदबू आती है तो मीथेन बनना शुरू हो जाती है। जहां गाड़ियां खाली होती हैं, वहां मानव स्वास्थ्य को लेकर खतरे का डर रहता है। घर में भी कचरे से बदबू तभी आने लगती है जब कचरे का ब्रेकडाउन चालू हो जाता है। मतलब वोलेटाइल गैस यानी मीथैन, कार्बन डाय ऑक्साइड, एस2एस गैस निकल रही है। यह कोरोजल गैस है। यानी लोहे को भी गला देती है। इसकी स्क्रबिंग उसी में होती है। ये मानव शरीर को प्राब्लम देता ही है। लांग टर्म इफेक्ट होते है। शार्ट टर्म नहीं होता है।

- इंदौर देश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां लैंड फिल पूरी तरह खत्म हो चुकी है और एक लाख 30 हजार टन कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है।
– इंदौर देश का एकमात्र ऐसा शहर है जहां लैंड फिल पूरी तरह खत्म हो चुकी है और एक लाख 30 हजार टन कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *