मध्य प्रदेश: अब बीजेपी जातीय समीकरणों की …..जारी की उम्मीदवारों की पहली लिस्ट …

मध्य प्रदेश: हिंदुत्व के रथ पर सवार बीजेपी अब जातीय समीकरणों की फसल काटने की कोशिश में, जानिए घोषित सीटों की रिपोर्ट
भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी को विपक्षी पार्टी से कड़ी प्रतिस्पर्धा की उम्मीद है.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले प्रत्याशियों की घोषणा कर बीजेपी ने परंपरा तोड़ दी है. आम तौर पर बीजेपी आखिरी तक अपने प्रत्याशियों की सीटों का ऐलान करती रही है. बीजेपी सबसे पहले प्रत्याशियों की घोषणा ही नहीं की है बल्कि जातिगत समीकरणों को भी साधने की पूरी कोशिश की है. हिंदुत्व के रथ पर सवार बीजेपी आरक्षित सीटों पर टिकट देकर प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार का पूरा मौका दे दिया है.

खास बात ये है कि इन सीटों पर साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी ने दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के समर्थकों की सीटों पर भी तगड़ी घेराबंदी की है. इसके साथ ही टिकट बंटवारे में इस बार ज्योर्तिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को भी जगह दी गई है.

टिकटों की घोषणा के बाद से ही एबीपी की टीम इन सीटों पर जातिगत समीकरणों के खंगालने में जुट गई और कई तरह के तथ्यों और रिपोर्टों के अध्ययन के बाद हम आपको अलग-अलग सीटों पर जातियों  की संख्या और समीकरण के बारे में बताएंगे.

सबलगढ़: मध्यप्रदेश के सबलगढ़ से बीजेपी ने सरला विजेन्द्र रावत को उम्मीदवार बनाया है. सबलगढ़ विधानसभा सीट के बारे में यह कहा जाता है कि जिस भी उम्मीदवार के पीछे रावत जुड़ जाता है वो चुनाव जीतता है. इस सीट को रावत का गढ़ कहा जाता है.

सुमावली : इस सीट से बीजेपी ने एंदल सिंह कंसाना को अपना उम्मीदवार बनाया है. 2018 के विधानसभा चुनाव में सुमावली सीट से बीजेपी  के टिकट पर चुनाव लड़े अजब सिंह कुशवाह 53 हजार वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे.

इस चुनाव में कांग्रेस के ऐंदल सिंह कंसाना को 63 हजार वोट मिले थे. एंदल सिंह ने दस हजार वोटों से जीत हासिल की थी.कंसाना सिंधिया के साथ 2020 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे.

सुमावली सीट के जातीय समीकरणों पर की बात करें तो यहां पर कुशवाहा बिरादरी के 42 हजार वोट हैं. इसके अलावा क्षत्रिय वोट 28 हजार, गुर्जर वोट 26 हजार, दलित वोट 36 हजार, किरार यादव 14 हजार, ब्राह्मण 16 हजार, बघेल 6500, मुस्लिम 6000, यादव अहीर 3000 व रावत जाति के 2200 वोट हैं.  इस सीट पर 2.17 लाख की वोटिंग है.

गोहद इस विधानसभा सीट से बीजेपी ने लाल सिंह आर्य को अपना उम्मीदवार बनाया है. जिले की पांच विधानसभाओं में आरक्षित गोहद विधानसभा सीट पर आजादी के बाद से अब तक 16  बार चुनाव हुआ है, लेकिन शुरुआत के तीन चुनाव को छोड़कर हर बार यहां से विधायक बाहरी प्रत्याशी चुना जाता है.

साल 1957 से अब तक गोहद विधानसभा क्षेत्र से चुने गए विधायकों पर नजर डाली आए तो इस सीट पर बीजेपी का अच्छा दबदबा रहा. गोहद सीट पर ग्वालियर और भिंड जिले के रहने वाले उम्मीदवार विधायक बनते आए हैं. गोहद के रहने वाले उम्मीदवारों को यहां कम ही सफलता मिलती है.

ये सीट ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों में से एक है. जो विधानसभा सीट भिंड जिले में आती है. इस सीट पर हरिजन और क्षत्रिय वोटर निर्णायक भूमिका में रहते है. क्षत्रिय के अलावा ओबीसी वर्ग के वोटर भी चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं. जो चुनाव के नतीजों को किसी भी एक पक्ष से दूसरे पक्ष में खिसका सकता है.

पिछोर इस सीट से बीजेपी ने प्रीतम लोधी को उम्मीदवार बनाया है. इसे तोमर राजपूतों की नगरी कहा जाता है. केपी सिंह यहां से 30 सालों से विधायक बनते आ रहे हैं. इस विधानसभा सीट पर बीजेपी शुरू से अपनी ताकत लगाती आ रही है, लेकिन कांग्रेस के केपी सिंह ही हर बार जीतते हैं.

इस सीट के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर कुल 2 लाख 15 हजार 517 वोटर हैं. यहां ब्राह्मण वोटर की संख्या 35 हजार है. धाकड़ समाज के 50 हजार और आदिवासी समाज के 30 हजार मतदाता हैं. जाटव और कुशवाहा वर्ग से भी 30-30 हजार मतदाता हैं. यादव और रावत समाज के भी करीब 12-12 हजार मतदाता हैं.

चाचौड़ा गुना जिले के इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. इसे दिग्विजय सिंह का गढ़ भी कहा जाता है. 1990 के बाद सिर्फ 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीतने में सफल रही थी. फिलहाल बीजेपी की ममता मीना यहां से विधायक हैं. इस बार बीजेपी ने प्रिंयका मीना को अपना उम्मीदवार बनाया है.

चाचौड़ा के सियासी समीकरण की बात करें तो यहां पार्टियों की जीत-हार कास्ट फैक्टर से तय होती है. इस सीट पर  मीना समाज का बोलबाला है. इसलिए बीजेपी ने मीना कार्ड के रूप में सियासी दांव चला है.

मीना चाचौड़ा में पार्टियों की हार जीत में अहम सियासी फैक्टर हैं . दरअसल यहां दो लाख 6 हजार मतदाताओं में से 55 हजार से ज्यादा मीना समाज के वोटर्स हैं. कांग्रेस ने लंबे समय तक मीना कार्ड के जरिए यहां राज किया.  लेकिन 2013 में बीजेपी ने मीना प्रत्याशी के दम पर ही कांग्रेस को मात दी.

चंदेरी बीजेपी ने यहां से जगन्नाथ सिंह रघुवंशी को उम्मीदवार बनाया है. जगन्नाथ सिंह रघुवंशी भी सिंधिया के समर्थक हैं और वर्तमान में जिला पंचायत के अध्यक्ष हैं.

चंदेरी विधानसभा चुनाव में जातिगत आंकड़ों की बात करें तो यहां पर 25 हजार अनुसुचित जनजाति, 21 हजार अनुसुचित जाति , 18 हजार यादव समाज, 17 हजार लोधी समाज , 15 हजार रघुवंशी, 14 हजार ब्राह्मण, 14 हजार मुस्लिम, 8.5 हजार कुशवाह, 6 हजार गुर्जर, 4.5 रैकवार, 3 हजार जैन सहित अन्य समाज के वोट भी 1 हजार से लेकर 3 हजार के बीच हैं.

बंडा- बीजेपी ने इस विधानसभा सीट से वीरेन्द्र सिंह लम्बरदार को अपना उम्मीदवार बनाया है. पिछली बार इस सीट पर कांग्रेस के तरबर सिंह ने भाजपा के हरवंश सिंह को 24164 वोट से हराया था .

बंडा विधानसभा में कुल 2 लाख 17 हजार 604 मतदाता हैं. इनमें से 80 हजार 566 मतदाता शाहगढ़ तहसील में हैं. यहां आने वाली 121 पोलिंग बूथ पर कुल 40485 पुरुष और 40081 महिला मतदाता हैं.

इनमें करीब 20-20 हजार यादव और एससी वर्ग के मतदाता हैं.  पूरे बंडा में लोधी समाज के बाद एससी और यादव वोटर ही ज्यादा हैं. ये वोटर  चुनावों में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

महाराजपुर- छतरपुर जिले की महाराजपुर सीट से बीजेपी ने कामख्या प्रताप सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. पिछली बार कांग्रेस के नीरज दीक्षित ने बीजेपी के मानवेंद्र सिंह को 14005 वोट से हराया था.

जातिगत समीकरणों की बात करें तो चौरसिया और अहरिवार समाज के बाहुल्य वाले इलाके में ब्राह्मण मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं.

पथरिया- बीजेपी ने यहां से लखन पटेल को टिकट दिया है. यहां बसपा की रामबाई ने बीजेपी के लखन पटेल को 2205 वोट से हराया था.बीएसपी ने ये  चुनाव जीत कर बीजेपी के 20 साल के किले का ढ़हा दिया था.

पथरिया विधानसभा में सबसे ज्यादा कुर्मी मतदाता हैं. दूसरे नंबर पर एससी, तीसरे नंबर पर लोधी, चौथे नंबर राजपूत, पांचवे नंबर पर ब्राम्हण हैं.  अन्य जातियां भी हैं.  कुर्मी, एससी व लोधी मतदाता प्रत्याशी की जीत तय करते है.

गुन्नौर (पन्ना) अनुसूचित जाति सीट से बीजेपी ने राजेन्द्र कुमार वर्मा को उम्मीदवार बनाया है इस सीट पर कांग्रेस के शिवदयाल बागरी ने बीजेपी के राजेश कुमार वर्मा को 1984 वोट से हराया था.

बीजेपी ने इस बार यहां पर जातिगत समीकरण के आधार पर चुनावी जीत रखने की कोशिश की है. गुनौर आरक्षित सीट का इतिहास है कि यहां कोई विधायक रिपीट नहीं हो पाता है.

चित्रकुट- बीजेपी ने यहां से सुरैन्द्र सिंह गहरवार को उम्मीदवार बनाया है. ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र होने के बावजूद क्षत्रिय रणनीति बनाने में माहिर दिखते हैं.  जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पर कुल 1.98737 मतदाता है. 58 हजार ब्राह्मण मतदाता, 53 हजार हरिजन-आदिवासी, 16 हजार यादव, 14 हजार कुशवाहा, 12 हजार मुस्लिम, 7 हजार क्षत्रिय मतदाता, 38 हजार अन्य मतदाता हैं. यहां से 6 बार विधानसभा चुनावों में क्षत्रिय चुनाव जीतते आए हैं.

छतरपुर- बीजेपी ने इस बार ललिता यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी ने बीजेपी की अर्चना गुड्‌डू सिंह को 3495 वोट से हराया था.  ललिता यादव 1997 से लेकर 2004 तक छतरपुर महिला मोर्चा की अध्यक्ष रही हैं.

उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2008 में लड़ा था, और जीत हासिल की थी. 2013 में एक बार फिर छतरपुर से विधायक चुनी गई थी. 2018 में बीजेपी ने अर्चना गुड्डु सिंह को दिया था, जो कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी से 3 हजार 495 वोटों से हार गयी थी.

पुष्पराजगढ़– बीजेपी ने हीरा सिंह श्याम को अपना उम्मीदवार बनाया है. यह शहडोल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का एक खंड है. हीरा सिंह श्याम एक युवा चेहरा और बीजेपी के जिला महामंत्री हैं. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

बड़वारा धिरेन्द्र सिंह को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है. पिछली बार कांग्रेस के  विजयराघवेन्‍द्र सिंह 84236 वोटों से जीते थे. बीजेपी के मोती कश्यप दूसरे नंबर पर थे. यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

बरगी- बीजेपी ने इस सीट से नीरज ठाकुर पर दांव खेला है. पिछले विधानसभा चुनाव में बरगी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक प्रतिभा सिंह को कांग्रेस प्रत्याशी संजय यादव से हार का सामना करना पड़ा था. संजय यादव को 86901 और प्रतिभा सिंह को 69368 वोट मिले थे. पार्टी ने जातीय समीकरण को देखते हुए इस बार नीरज ठाकुर  के नाम पर दांव खेला है. बरगी सीट में यादव और लोधी वोटरों का दबदबा है. नीरज लोधी समुदाय से आते है.

जबलपुर जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट से पिछले चुनाव में अंचल सोनकर को लगातार दूसरी बार कांग्रेस उम्मीदवार लखन घनघोरिया से हार का सामना करना पड़ा था. लखन घनघोरिया को 90206 और अंचल सोनकर को 55070 वोट मिले थे. इस बार भी इस सीट से बीजेपी ने अंचल सोनकर को अपना उम्मीदवार बनाया है. जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट मुस्लिम और अनुसूचित जाति वर्ग के वोटरों की बहुलता वाला क्षेत्र है. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.

पेटलावाद  बीजेपी ने निर्मल भूरिया को अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां पर कुल वोटर- 247585 हैं. महिला वोटर की संख्या 123989 और पुरुष वोटर की संख्या 123590 है. यहां पर आदिवासी चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

कुक्षी – बीजेपी ने जयदीप पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है. ये सीट अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट है. यहां अनुसूचित जनजाति ही निर्णायक भूमिका निभाते हैं. हर बार यहां से कांग्रेस उम्मीदवार को वोट मिलते आए हैं. यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

यहां अनुसूचित जनजाति वोट निर्णायक स्थिति में हैं. ऐसे में आदिवासी बाहुल्य डही क्षेत्र जो कांग्रेस का गढ़ है, वहां के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. हर बार कांग्रेस के उम्मीदवारों को यहां से इतने वोट मिलते आए हैं कि कुक्षी क्षेत्र के मतदाताओं का झुकाव बीजेपी के साथ होने के बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं.

हालांकि, पाटीदार और सिर्वी समाज भी इस इलाके में प्रभावी हैं. कुक्षी विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यहां एसटी वोटर्स की संख्या अन्य समुदायों से अधिक है, आदिवासी मतदाता ही यहां निर्णायक भूमिका में होते है. सीट पर पाटीदार समुदाय की तादाद भी चुनावी नतीजों को प्रभावित करती है.

धरमपुरी बीजेपी ने कालू सिंह ठाकुर को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है. यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

राऊ मधु वर्मा को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां पर सिख मराठी वोट ज्यादा हैं. यहां पर मराठी खाटी, सिंधी और पंजाबी वोटर बीजेपी समर्थक माने जाते हैं.

राऊ क्षेत्र में आठ वार्ड महाराष्ट्रीयन बहुल है. इन्हीं वोटों को बीजेपी साधने में असफल होती आ रही है. इसी वजह से वह जीत नहीं पा रही है. ब्राह्मण, मराठी, मुस्लिम वोट निर्णायक माने जाते हैं.  यहां पर सिख मराठी वोट ज्यादा मायने रखता है.

राऊ में चाहे वो जीतू पटवारी हो या जीतू जिराती हो दोनों की जीत के पीछे खाती समाज है. दरअसल ये सीट खाती समाज बाहुल्य सीट है और यहां इस समाज के वोटरों की संख्या करीब 22 हजार है. एससी-एसटी वर्ग का नंबर दूसरे नंबर पर आता है. जिसके मतदाताओं की संख्या करीब 35 हजार है.  मुस्लिम वोटर्स की संख्या  करीब 28 हजार है. मराठी वोटर्स की संख्या करीब 20 हजार है.  सिक्ख समाज के वोटर्स की संख्या करीब 14 हजार है. पाटीदार समाज और सिंधी समाज के वोटर्स की संख्या करीब 12-12 हजार है.

घटिया विधान सभा घटिया विधानसभा शुरू से ही बलाई समाज का गढ़ रहा है. यहां पर दो लाख से ज्यादा मतदाता हैं जिनमें 40,000 वोट बलाई समाज से आते हैं. इसके अलावा 15000 आंजना समाज, 10000 ब्राह्मण और 20000 राजपूत समाज के वोट है. इसी आंकड़े को दृष्टिगत रखते हुए हमेशा से यहां बलाई समाज के प्रत्याशी कोई राजनीतिक पार्टियों मैदान में उतारती है. वर्तमान में भी दोनों ही प्रत्याशी बलाई समाज से हैं.

तराना- तराना विधानसभा सीट पर भी भलाई वोटरों की संख्या 25000 के आसपास है लेकिन यहां पर बीजेपी ने नया प्रयोग करते हुए पूर्व विधायक ताराचंद गोयल को मैदान में उतारा है  . रविदास समाज के भी यहां 12000 वोट हैं. रविदास समाज से जुड़े ताराचंद गोयल मैकेनिक व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. तराना विधानसभा में ठाकुर समाज 22000 वोट हैं जबकि ब्राह्मण समाज के 8000 मतदाता है. यहां जाट आंजना चौधरी और अन्य मिलाकर 25000 वोट है. यहां भी कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख के आसपास है.

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भाजपा की चुनाव से काफी पहले मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के पीछे है शाह का दिमाग, समझिए पूरा मामला

तकरीबन चौंकाने के अंदाज में विधानसभा चुनाव के तीन महीने पहले ही मध्यप्रदेश बीजेपी ने 39 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि चुनाव की तारीखें आयी नहीं है और बीजेपी ने अपने प्रत्याशियों को सामने ला दिया है. हालांकि, ये सारे नाम उन सीटों के उम्मीदवारों के हैं जहां से बीजेपी दो बार से लगातार हार रहीं है या फिर हाल के सर्वे में इन सीटों पर बीजेपी की हालत अच्छी नहीं है. 2018 के विधानसभा चुनाव में जिन 103 सीटों पर हारी हैं उन सीटों को पार्टी ने आकांक्षी सीटों का नाम देकर नयी रणनीति बनायी थी. इसका पहला कदम प्रत्याशी का चयन पहले कर उसका नाम चुनाव के दो-तीन महीने पहले घोषित करना. मकसद ये रहा कि प्रत्याशी को प्रचार और मतदाताओं में पहचान बनाने के लिये लंबा वक्त मिल जाये, साथ ही पार्टी के कैडर को संदेश दे दिया जाये कि नाराजगी छोड़ जुट जाओ जीत को लाने में.

मध्यप्रदेश के लिए बीजेपी का अलग है दांव

आमतौर पर बीजेपी ऐसा करती नहीं है मगर मध्यप्रदेश के लिये बीजेपी के आलाकमान ने कुछ अलग ही सोच रखा है. ये बदलाव हुआ है गृह मंत्री अमित शाह के चुनाव की कमान संभालने के साथ ही. कई सारे प्रभारियों की मनमर्जी से चल रहे मध्यप्रदेश बीजेपी संगठन को कसने के लिये अमित शाह ने कोई कसर नही छोड़ी है. लगातार बैठकें दिल्ली से लेकर भोपाल तक बुलाईं और जमीनी स्तर के फीडबैक को आधार बनाकर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. अब तक जो होता था चाहे मुख्यमंत्री की रोज की यात्राएं, भारी सरकारी प्रचार और हितग्राही सम्मेलन उनको नहीं रोका मगर जमीनी स्तर की हवा को पहचानना और उसके मुताबिक तैयारियों को बल दिया. प्रदेश के सारे बडे नेताओं को एक साथ बैठाया और बताया गया कि प्रदेश में सरकार में वापसी करनी है तो पहली जरूरत रूठे कार्यकर्ता को मनाने की है. इसके लिये पार्टी के पुराने नाराज नेताओं को ही काम पर लगाया. कल तक नाराज नेता अब जिलों संभागों की खाक छान रहे हैं और कार्यकर्ता सम्मेलन करते नजर आ रहे हैं. कार्यकर्ता मान जायेंगे, उनमें जीत का विश्वास आ जायेगा तभी चुनाव जीता जा सकता है. इंदौर में हुये संभागीय सम्मेलन में अमित शाह ने मंच पर बैठे नेताओ की ओर इशारा कर कहा था कि चुनाव मंच पर बैठे नेता नहीं, आप जैसा कार्यकर्ता जिताता है. ये संदेश दूर तक गया. एक दूसरे से दूर-दूर छिटक रहे संगठन के नेताओं को एकजुटता का संदेश दिया और सबको काम बांट कर उस काम की प्रगति पर नजर रखने लगे अमित शाह.

शाह की मध्यप्रदेश चुनाव में हुई एंट्री  को पार्टी के बडे नेताओं ने ही केंद्र शासित राज्यादेश माना और समझ गये कि अब सारे फैसले केंद्र ही करेगा और सख्त फैसले होने लगे. अमित शाह ने सबसे पहले तो पुराने प्रभारियों को उनका दायरा दिखाया. कुछ को बिना काम के तो कुछ को प्रदेश के बाहर नया काम सौंप दिया.  पुराने की जगह नए प्रभारियों की प्रदेश में प्रवेश दिया. विधानसभा सीटों से आ रहे नकारात्मक फीडबैक को समझा और फैसले लेने शुरू कर दिये. बीजेपी आलाकमान की तरफ से आने वाले दिनों में कुछ और चौंकाने वाले निर्णय सामने आयेगे मगर पहले फैसले ने ही बता दिया है कि पार्टी मध्यप्रदेश के चुनाव को आसानी से कांग्रेस के हाथ में जाने नहीं देगी. ये पहली सूची उसी रणनीति का पहला कदम है. अब बात इस सूची की, जिसमें हारी हुई सीटों पर प्रत्याशी तय कर दिये हैं। इस सूची में अधिकतर पुराने लोगां को ही दोहराया गया है. नये प्रत्याशियों की बात करें तो वो सिर्फ 11 हैं. इसमें चालीस साल से कम उमर वाले सिर्फ सात हैं. पार्टी ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है और कांग्रेस के जीते उम्मीदवारों के सामने पार्टी का मजबूत उम्मीदवार उतारा है बिना किसी खास सोच के मकसद सीट निकालना ही रहा है. उम्मीद थी कि पार्टी ज्यादा से ज्यादा नये चेहरों को जगह देकर चौंकाती मगर अधिकतर सीटों पर वही प्रत्याशी एक दूसरे के खिलाफ लडते नजर आ रहे है जो पिछले चुनाव में आमने-सामने थे.

सबको साथ होने का संदेश है ‘सूची”

बीजेपी ने इस सूची में संदेश दिया है कि कददावर नेता की चलती रहेगी. उनकी नाराजगी से बचा गया है. लाल सिहं आर्य, ध्रुव नारायण सिंह, ओमप्रकाश धुर्वे, राजेश सोनकर, अंचल सोनकर, निर्मला भूरिया और प्रीतम सिंह लोधी ये सारे वो पुराने नाम हैं, जिन पर पार्टी ने हार के बाद भरोसा जताया है। कुछ उम्मीदवार को सीट देने के पहले भरोसे में नहीं लिया गया. आलोक शर्मा भोपाल उत्तर से नहीं लड़ना चाहते थे. ओमप्रकाश धुर्वे शाहपुरा से नहीं डिंडोरी से लडना चाहते थे. बिछिया  सूची में नाम आने के बाद डा विजय आनंद ने मंडला जिला कार्यालय में जाकर सदस्यता ली. वैसे ज्यादा पहले नाम घोषित करने के अपने नफे नुकसान दोनों हैं और पार्टी ने अच्छी तरह सोचने के बाद ही ये जुआ चला है. अब देखना ये है कि इस रणनीति का कितना फायदा मिलता है. वैसे पिछले चुनाव में बीजेपी 103 सीटें हारी थी और बाकी की हारी सीटों के लिये पार्टी क्या करने जा रही है इसका इंतजार रहेग.

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