भोपाल\इंदौर : पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में लूटपाट और चोरियां बढ़ीं…?

पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में लूटपाट और चोरियां बढ़ीं:अफसर और जवानों का लाव लश्कर मिला, फिर भी भोपाल में लूट 82% ज्यादा

सालभर पहले 9 दिसंबर को जब इंदौर और भोपाल में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हुआ ! इंदौर-भोपाल में भी कोई बदलाव नहीं आया। कुल अपराध जरूर कम हुए हैं, लेकिन जिन अपराधों को कम होना था, वो बढ़ गए।

सालभर में पुलिस सिस्टम का नाम भले ही कमिश्नरेट हो गया हो, लेकिन काम डीआईजी सिस्टम जैसा ही हो रहा है। आईपीएस अफसरों की फौज और एक-एक हजार का ऐक्स्ट्रा पुलिस बल मिलने के बाद भी इंदौर-भोपाल में लोग लूटे जा रहे हैं, चोरियां हो रही हैं और कत्ल कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के एक साल पूरे होने पर ……

राजधानी का बुरा हाल: लूट के साथ हत्या और चोरी भी बढ़ी

राजधानी भोपाल में लूट 82%, चोरी 29%, हत्या 19% और वाहन चोरी की घटनाएं 30% बढ़ गई हैं। इंदौर में हत्याएं 20% बढ़ी हैं। पिछले साल जितनी चोरियां हुई थीं, अभी भी उतनी ही हो रही हैं। भोपाल में कमिश्नर सिस्टम लागू होने से पहले 4400 मैदानी पुलिसकर्मी थे, जिनको बढ़ाकर 5400 किया गया। ऐसे ही इंदौर में पुलिस जवान बढ़ाकर पांच हजार कर दिए गए।

गुंडे ने जेल से छूटने का जश्न कार की बोनट पर घूमकर मनाया, वीडियो वायरल किया

ऐसा भी नहीं है कि गुंडे कमिश्नर सिस्टम वाली पुलिस से कांपने लग गए हों। बीते दिनों भोपाल में इसका नमूना दिखा। जब ऐशबाग इलाके का निगरानीशुदा बदमाश जुबेर मौलाना जेल से छूटा तो सड़कों पर ऐसे जश्न मनाते निकला जैसे कोई उपलब्धि हासिल की हो। पुलिस ने जुबेर की इस हरकत को साधारण माना और मामूली धाराओं में केस दर्ज कर अपना काम खत्म कर लिया। सवाल यही है कि कमिश्नर सिस्टम में किसी बदमाश का इतना दुस्साहस कैसे हुआ कि वो अपनी कार की बोनट पर बैठकर लोगों को डराता रहे और वीडियो भी वायरल कर दे।

भोपाल पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर कहते हैं- सालभर में हिस्ट्रीशीटरों के अपराध आधे रहे गए हैं। एडिशनल पुलिस कमिश्नर सचिन अतुलकर कहते हैं कि गुंडे पुलिस से डरने लगे हैं। ये पुलिसिंग सिस्टम का ट्रांजिट फेज है। सुपरविजन के लिए ज्यादा अफसर हैं, इसके परिणाम जरूर दिखेंगे, पूरी तरह से इस सिस्टम को महसूस होने में अभी वक्त लगेगा।

चैंबरों के बाहर नेम प्लेट बदली, पुलिसिंग वैसी ही

भोपाल में 12 आईपीएस अफसर हैं, लेकिन क्राइम जस का तस है। अफसरों के चैंबरों के बाहर नेम प्लेट बदल गई हैं, लेकिन बेसिक पुलिसिंग वैसी ही है। मजिस्ट्रियल पॉवर मिलने से पुलिस को बार-बार प्रशासनिक अफसरों के पास जाने की झंझट भी नहीं रह गई, लेकिन उसका जमीनी असर नहीं दिख रहा है।

मजिस्ट्रियल पॉवर का इस्तेमाल कम हुआ

पुलिस ने खुद जिस डेटा से कमिश्नर सिस्टम का चरित्र सत्यापन किया है, उसी डेटा को आधार मानें तो ये सच है कि अपराधों के आंकड़े बीते सालों के मुकाबले कम हुए हैं। लेकिन पुलिस को जो मजिस्ट्रियल पॉवर मिले हैं, उसका इस्तेमाल कई मायनों में पहले से कमजोर भी नजर आया है। 2022 में जिलाबदर के सिर्फ 117 मामले हुए। 2021 में 384 जिला बदर हुए थे। 2020 में कोराना के बावजूद 205 गुंडों को जिलाबदर किया गया था।

क्राइम कंट्रोल न होने की वजह यह तो नहीं… आधे अफसर 50 के पार, 8 प्रमोटी भी

भोपाल और इंदौर दोनों शहरों में कमिश्नरेट के नाम पर 21 आईपीएस अफसर तैनात किए गए हैं। इनमें आधे अफसरों की उम्र 50 साल से ज्यादा है। 8 अफसर प्रमोटी हैं। डिपार्टमेंट के कुछ ऑफिसर मानते हैं कि कमिश्नर सिस्टम ठीक से एग्जीक्यूट नहीं होने की एक वजह यह भी है। उम्र ज्यादा होने से कुछ अफसरों में काम का जोश नहीं है। कुछ प्रमोटी अफसर परंपरागत ढंग से काम करते हैं जिस कारण जो रिजल्ट मिलने चाहिए थे, नहीं मिले।

बांड ओवर में आगे रही पुलिस

भोपाल में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वो है बांड ओवर यानी झगड़ा करने वाले या शांति भंग करने की आशंका वालों से पुलिस पहले बांड भरा लेती है। इसके तहत यदि बदमाशों ने इस करार काे तोड़ा तो सीधे जेल भेज दिया जाएगा। पुलिस ने बांड ओवर पर ही ज्यादा फोकस किया और साल भर में 7498 लोगों को बांड ओवर कर दिया। हालांकि जिलाबदर और शांति भंग करने के मामले में आश्चर्यजनक ढंग से बीते सालों के मुकाबले आधे से भी ज्यादा केस कम हो गए हैं। ये चौंकाने वाली बात इसलिए है, क्योंकि कमिश्नर सिस्टम में पुलिस को मजिस्ट्रियल पॉवर भी मिले, फिर भी अपराधियों के खिलाफ बीते सालों के मुकाबले आधे से भी कम एक्शन हुए हैं।

कमिश्नरी का सबसे सक्सेसफुल मॉडल मुंबई

रिटायर्ड एडीजी संजय राणा कहते हैं- पुलिस कमिश्नर सिस्टम का सबसे भरोसेमंद मॉडल मुंबई और चेन्नई का है। अंग्रेजो ने यहां सबसे पहले ये सिस्टम बनाया था। इस सिस्टम की सबसे खास बात ये है कि पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रियल पॉवर के लिए डीएम पर निर्भर नहीं होते। मुंबई पुलिस के डर से अंडरवर्ल्ड भी डरता है। कमिश्नर सिस्टम में फंक्शनल ऑटोनेमी सबसे ज्यादा जरूरी है। सिर्फ नाम बदलने से काम नहीं चलेगा। रिसोर्स बढ़ाने होंगे। इसमें गलती करने पर श्योरिटी ऑफ पनिशमेंट होता है। अभी इसमें काफी सुधार की गुंजाइश है

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