अगली जनवरी तक नौ राज्यों में चुनाव, पर हलचल सिर्फ़ राजस्थान में

चुनावी वर्ष:अगली जनवरी तक नौ राज्यों में चुनाव, पर हलचल सिर्फ़ राजस्थान में …

ठण्ड बड़ी है। लोग देर तक बिस्तर से नहीं उठते और ट्रेनें पटरियों पर सोई पड़ी रहती हैं। ज़्यादातर ट्रेनें तीन से तेरह घंटे लेट चल रही हैं। सब कुछ तीन-तेरह है। ठण्ड वैसे रचनाओं का काल है। सृजनात्मक मौसम है। उत्तराखण्ड के जोशी मठ में मानवीय भूलों के कारण दुख-दर्द के नए आयाम गढ़े जा रहे हैं। सरकार लीपापोती में लगी हुई है।

राजस्थान कुछ अलग ही सृजन में लगा हुआ है। जनवरी का महीना है और जयपुर में लिट फ़ेस्ट होने जा रहा है। साहित्य का मेला लगेगा। हर साल की तरह। ऐन इसी वक्त जब जयपुर में गीतों के घाट सजेंगे और साहित्यकारों का जमघट लगेगा, तभी राजनीतिक अखाड़े भी सजने वाले हैं।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के कारण लम्बे समय से चुप बैठे कांग्रेसी नेता अपनी भृकुटियाँ तानने को तैयार बैठे हैं। अशोक गहलोत बजट बनाने में जुटे रहेंगे और सचिन पायलट राजनीतिक बजट को गड़बड़ाने की ठानेंगे। कहा जा रहा है कि बजट सत्र के दौरान ही सचिन अपने समर्थक विधायकों के पक्ष में पूरे प्रदेश में सभाएं और किसान सम्मेलन करने वाले हैं।

इन सम्मेलनों, इन सभाओं को कांग्रेस की चुनावी रणनीति कहा जाए या गहलोत ख़ेमे के लिए चुनौती या पार्टी आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन, यह फ़िलहाल तो पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि यह सब थोड़ा-थोड़ा सब कुछ है। सामने वाला ख़ेमा इस पर क्या रणनीति अपनाता है, यह भविष्य ही बताएगा।

इसके पहले जब राहुल गांधी की यात्रा राजस्थान आने वाली थी, तभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के खिलाफ ख़म ठोक दिया था। कह दिया था कि वे किसी हाल में सचिन को कुर्सी देने वाले नहीं हैं। तनातनी वहीं से बढ़ गई थी। हालाँकि यात्रा के कारण तब क्रिया की प्रतिक्रिया ज़्यादा नहीं हुई थी। मान लीजिए कि एक तरह का युद्ध विराम घोषित हो गया था।

कहने को मार्च 23 से जनवरी 24 तक नौ राज्यों में चुनाव की बारी है, लेकिन राजस्थान के अलावा कहीं भी ज़्यादा हलचल दिखाई नहीं दे रही है। इन नौ राज्यों में मेघालय, नगालैण्ड, त्रिपुरा, कर्नाटक, मिज़ोरम, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना शामिल हैं।

अगर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की चर्चा करें तो मप्र में स्थिति स्पष्ट नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही तरफ़ बिखराव दिखाई दे रहा है। एक छत्तीसगढ़ ही है जहां कांग्रेस दोबारा सत्ता में आने का दावा ठोक रही है और इस दावे में दम भी दिखाई दे रहा है।

वजह साफ़ है। पिछले पाँच साल से छत्तीसगढ़ में भाजपा सोई पड़ी है। उसे कोई चिंता ही नहीं है। शायद यहाँ भाजपा सोच रही है कि उसे कुछ नहीं करना पड़ेगा और राज्य की सत्ता पके चावल की तरह उसके मुँह में आ जाएगी, लेकिन ऐसा लगता नहीं क्योंकि चावल खाने के लिए भी उसे थाली से मुँह तक लाने का परिश्रम तो करना ही पड़ता है।

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