हरियाली को बढ़ावा दें, ताकि न बनें जोशीमठ जैसे हालात

घाना के जिन खाली क्षेत्रों में खेती की गई, वहां बाढ़ और भूस्खलन के मामलों में कमी का दावा किया गया है …

दुनियाभर में समस्या एक ही दिखाई देती है, प्रकृति को नुकसान और हल भी एक ही दिखाई देता है, क्षेत्र को फिर हरा-भरा किया जाए
इंसान ने नदी-नालों को पाटकर अपने घर बना लिए या दूसरे निर्माण कर लिए। इस लालच की कीमत चुकानी पड़ रही है
अफ्रीकी देश घाना का एक फिल्मी हीरो है जॉन डुमेलो, वह पूरे पश्चिम अफ्रीका में सबसे सफल अभिनेताओं में से एक माना जाता है। उसने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया है। डुमेलो अब किसान बन गया है। इसलिए नहीं कि घाना की फिल्म इंडस्ट्री अब सिमटती जा रही है, बल्कि इसलिए कि वर्ष 2012 में डुमेलो ने काफी यात्रा की। एक बात जो उसे घाना में नजर आई, वह यह थी कि वहां लाखों एकड़ कृषि योग्य भूमि खाली पड़ी है और घाना खाद्य पदार्थ आयात कर रहा है। इसके बाद डुमेलो ने फिल्मी सेट से ज्यादा समय खेतों में बिताना शुरू किया। आज उसके पास दो हजार एकड़ से अधिक जमीन है, जिस पर वह मक्का, चावल, अदरक, मशरूम आदि की खेती करता है। साथ ही सोशल मीडिया पर अपने 8 मिलियन फॉलोअर्स को खेती के लिए प्रोत्साहित करता है। डुमेलो का मानना है कि हर कोई किसान नहीं हो सकता, लेकिन हर कोई कृषि व्यवसाय के क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है। डुमेलो कहता है कि उसके पास इसके पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, पर जिन खाली क्षेत्रों में उसने खेती की, वहां बाढ़ और भूस्खलन के मामलों में कमी आई है। ऐसा ही उदाहरण हमें मॉरीशस में मिलता है। क्षेत्र का नाम है चित्रकूट और वहां भूस्खलन के मामले आने के बाद गांव वालों ने और सरकार ने क्षेत्र में ड्रेनेज सिस्टम यानी जल निकासी की व्यवस्था पर जोर दिया।

मॉरीशस भर में नदियों का जाल है, जो इस टापू में शरीर की धमनियों की तरह फैला है। कोई इन नदियों से पानी लेकर अपने खेत सींचता है, कोई गाड़ियां धोता है, तो कुछ महिलाएं आज भी कपड़े धोते नजर आ जाती हैं। वैसे तो टापू भर में सदानीरा नदियां हैं, पर गन्ने के खेतों में छिपी छोटी-छोटी बरसाती नदियां और नाले भी अपने आप में कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। ये नदियां वर्ष भर सूखी ही रहती हैं, लेकिन साइक्लोन के मौसम में ये फिर जी उठती हैं। वह पानी जो घरों में बाढ़ के रूप में उतर सकता था, उसे ये क्षणिक नदियां और नाले अपने अंदर स्थान देते हैं, पर यह तभी संभव हो पाता है जब ये नदियां अपनी गहराई न खोएं। आजकल लोभ वश और दूरदर्शिता की कमी के कारण इंसान ने नालों को भरकर अपने घर को, खेतों को बड़ा कर लिया है। इस लालच की कीमत चुकानी पड़ रही है। बारिश में मॉरीशस के इस गांव के हालात कुछ-कुछ जोशीमठ जैसे हो जाते हैं। घर में दरारें पड़ने लगती हैं, लोगों को विलेज हॉल में शिफ्ट किया जाता है। केवल जोशीमठ ही नहीं, पूरे विश्व के कई इलाके बाढ़, भूस्खलन और घरों में दरारों की समस्या से जूझ रहे हैं। और हल शायद इन कब्जे कर लिए गए नदी-नालों और खाली पड़े खेतों में ही कहीं छुपा है।

मेडागास्कर बहुत सारी जमीन और बहुत कम आबादी वाला क्षेत्र है। सरकार ने कई वर्ष पहले एक स्कीम के तहत विदेशियों को खेती के लिए लाखों बीघा जमीन लीज पर देना शुरू किया था। सोचा था अनाज होगा, तो देश में सम्पन्नता आएगी, पर लीज के पैसे चुकाने के लिए कई लोगों ने पेड़ काटकर बेच डाले। खेती से ज्यादा फायदा लकड़ी में मिला, तो इंसान के लालच ने जंगल के जंगल साफ कर दिए। क्षेत्र में बाढ़ के हालात हुए तो प्रशासन ने सुध ली और सारी लीज कैंसिल कर दी और इस योजना में संशोधन किए गए। ऐसी कहानियां पूरे विश्व में बिखरी पड़ी हैं। समस्या एक ही दिखाई देती है, प्रकृति को नुकसान और हल भी एक ही दिखाई देता है, क्षेत्र को फिर हरा-भरा किया जाए। इसका एक उपाय खेती भी है। मॉरीशस में हमारे पड़ोसी चाचा सहदेव ने खेती करके अपने चारों बच्चों को फ्रांस भेज दिया। आज 84 वर्ष में भी उनके घर के पीछे केले की फसल लहलहा रही है। पहाड़ी पर बसा गांव होने के बावजूद न यहां कभी बाढ़ आती है, न भूस्खलन होता है, क्योंकि यहां हमेशा खेती होती है।

(मॉरीशस से पत्रिका के लिए विशेष)

 

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