स्कूलों में नामांकन स्तर बनाए रखने की चुनौती

हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा। —वाल्तेयर ..

कोरोना के बाद लगातार दूसरे साल देश के सरकारी स्कूलों के लिए यह अच्छी खबर है कि उनमें छात्रों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। यह अब 72.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है, जो कोरोना के समय से लगभग सात फीसदी ज्यादा है। निश्चित तौर पर यह उत्साहजनक आंकड़ा है। इस आंकड़े को संभाल कर रखने और आने वाले सालों में इसे और बढ़ाने की जिम्मेदारी इन सरकारी स्कूलों और उनका संचालन कर रही सरकारों की है। जिम्मेदारी का भलीभांति निर्वहन करने के लिए उन्हें इन छात्रों व उनके अभिभावकों की अपेक्षाओं को समझना और उन्हें पूरा करना होगा।

इससे भी पहले उन्हें आकलन करना होगा कि ये छात्र सरकारी स्कूलों से विमुख क्यों हुए थे? स्वाभाविक तौर पर इसलिए कि उन्हें महसूस हो रहा था कि उनके भविष्य की नींव तैयार करने की सरकारी स्कूलों की प्रक्रिया अभावों व थोड़ी निष्क्रियता के भावों से जूझ रही है। बड़ी संख्या में शिक्षकों के रिक्त पद, अध्यापन के प्रति गंभीरता न होना, बिजली-पानी की कमी, उन्नत प्रयोगशालाओं की बात तो दूर शौचालयों तक का अकाल और समय के साथ कदमताल मिलाकर तकनीक व नवाचार के समावेश से दूरी जैसी कई वजहें इसके लिए जिम्मेदार रही हैं। यह भी कटु सत्य है कि इनमें से कोई वजह दूर नहीं हुई है। सभी यथावत बनी हुई हैं। विद्यार्थी सिर्फ कोरोना से उपजे तात्कालिक कारणों से ही सरकारी स्कूलों में लौटे हैं। इसलिए उन्हें संभाले रखना सरकारी स्कूलों और उनके संचालकों के लिए बड़ी चुनौती है। इस चुनौती के अनुरूप ध्येय और प्रतिष्ठा बनाकर कदम नहीं उठाए गए, तो इन छात्रों के मोहभंग की आशंका रहेगी। भविष्य उन्हें भी प्यारा है। वे इसे दांव पर नहीं लगाएंगे। केंद्र व सभी राज्यों को इसके लिए कमर कसनी चाहिए। एक बार में ही सारी कमियां भले दूर न की जाएं, पर इन्हें दूर करने की दिशा में कदम निरंतर उठने चाहिए। छात्रों के हित में दिल्ली या अन्य बेहतरीन काम कर रहे राज्यों के मॉडल को अपनाने से भी परहेज नहीं करना चाहिए।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के लिए तो लड़कियों के मामले में भी व्यापक स्तर पर काम करने की गुंजाइश की ओर सरकारी स्कूलों की इस ताजा रिपोर्ट ‘एएसईआर’ में ध्यान आकर्षित किया गया है। देश में जहां स्कूलों से वंचित लड़कियों की संख्या लगातार घटते हुए 2 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर आ गई है, वहीं इन तीन राज्यों में यह स्तर 10 फीसदी से ऊपर बना हुआ है। इतनी ज्यादा संख्या में लड़कियों को अशिक्षित रहने देना उनके और उनके माध्यम से आने वाली पीढ़ियों के साथ बड़ा अन्याय होगा।

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