यह स्वागतयोग्य है कि विधि मंत्रालय ने सभी केंद्रीय मंत्रालयों को अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचने और अनुचित अपीलों को न्यूनतम करने का निर्देश दिया। वैसे तो इन निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने को कहा गया है, लेकिन जब तक ऐसा हो न जाए, तब तक निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। यह सामान्य बात नहीं कि करीब सात लाख मुकदमे ऐसे हैं, जिनमें पक्षकार केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से लेकर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं। इसका अर्थ है कि सरकार अपने ही नागरिकों से मुकदमेबाजी में उलझी हुई है। विधि मंत्रालय ने मुकदमों की संख्या कम करने के लिए जो निर्देश दिया, उसमें इसका भी उल्लेख है कि सरकारी अधिसूचनाओं और आदेशों की विसंगतियां अदालती मामलों का एक बड़ा कारण बनती हैं।

इन विसंगतियों के लिए सीधे तौर पर नौकरशाह जिम्मेदार हैं। उनकी ओर से जारी अधिसूचनाएं और आदेश ऐसे होते हैं, जो कई बार आसानी से समझ नहीं आते अथवा उनकी सरल व्याख्या करना कठिन होता है। स्पष्ट है कि इससे भ्रम फैलता है। यही लोगों को मुकदमों में उलझाता है। जब तक सरकारी मुकदमों के लिए नौकरशाहों को जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा, स्थिति बदलने वाली नहीं है। नेताओं को समझना होगा कि नौकरशाहों के किए की सजा उन्हें और अदालतों में घसीटे गए लोगों को भुगतनी पड़ती है।

चिंताजनक केवल यही नहीं कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय सात लाख मुकदमों में पक्षकार हैं, बल्कि यह भी है कि इस मुकदमेबाजी में अच्छा-खासा धन भी खर्च हो रहा है। कुछ वर्ष पहले आए एक आंकड़े के अनुसार एक दशक में मुकदमेबाजी में चार सौ करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हुई। कोई भी समझ सकता है कि जिन मुकदमों में सरकार पक्षकार होती है, उनमें खर्च की चिंता नहीं की जाती। सरकारी विभागों की मुकदमेबाजी का एक अन्य कारण लोगों पर भरोसा न किया जाना है।

प्रधानमंत्री कई बार कह चुके हैं कि सरकारी तंत्र को लोगों पर भरोसा करना चाहिए, लेकिन लगता है कि नौकरशाह यह समझने को तैयार नहीं। लोगों पर अविश्वास के चलते ही वे छोटी-छोटी बातों पर उन्हें अदालतों में ले जाकर खड़ा कर देते हैं। उनके लिए ऐसा करना इसलिए भी आसान होता है, क्योंकि खुद उन्हें कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ता। वे इसकी भी परवाह नहीं करते कि अदालती मामलों का निपटारा यथाशीघ्र हो। रही-सही कसर तारीख पर तारीख के सिलसिले से पूरी हो जाती है। जैसे केंद्र सरकार मुकदमेबाजी में उलझी हुई है, वैसे ही राज्य सरकारें भी। एक अध्ययन के अनुसार देश में जो करोड़ों मामले लंबित हैं, उनमें 45 प्रतिशत में पक्षकार सरकारें ही हैं। इस समस्या के समाधान के लिए केवल विधि मंत्रालय का निर्देश पर्याप्त नहीं। केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को चाहिए कि वे मध्यस्थता के जरिये मुकदमों का निपटारा करने की भी कोई व्यवस्था करें।