ग्वालियर : दहेज हत्या के 48 फीसदी मामलों में हुई सजा, दोषियों में 93% सिर्फ पति शामिल
दहेज हत्या के अधिकांश मामलों में पति को ही सजा मिलती है। जबकि अन्य परिजन सजा से बच जाते हैं। इसका खुलासा वर्ष 2022 में 29 मामलों के फैसलों से हुआ है। पिछले वर्ष दहेज हत्या के इन मामलों में 15 में आरोपी बरी हो गए, जबकि 14 केस में दोषियों को सजा हुई। इनमें से 13 प्रकरण में पति को सजा हुई। यानी जिन मामलों में सजा सुनाई गई उनमें 93 प्रतिशत में सिर्फ पति ही दोषी पाए गए। केवल एक मामले में पति को बरी किया गया और ससुर को हत्या का दोषी माना।
इस मामले में ससुर को आजीवन कारावास की सजा दी गई। जबकि एक मामले में पति के साथ सास-ससुर और दो मामलों में पति के साथ सास को भी दहेज हत्या के लिए दोषी मानकर सजा दी गई। गौर करने वाली बात ये है कुछ महिला दहेज प्रताड़ना से केवल सात माह में ही तंग आ गईं और आत्महत्या जैसे कदम उठा लिया। वहीं कुछ महिलाएं ऐसी भी रहीं, जिन्होंने एक दशक तक प्रताड़ना को झेला, सहा और फिर भी हालत सुधरते नहीं दिखे तब जाकर आत्महत्या की।
जानिए… किन कारणों से बरी हो जाते हैं आरोपी
फरियादी पक्ष ही अपने बयान से मुकर जाता है
ऐसे मामलों में फरियादी पक्ष जब आरोप से मुकर जाता है तो इसका लाभ आरोपियों को मिलता है। मुकरने का एक प्रमुख कारण बच्चों की परवरिश का होता है। परिजनों को ये लगता है कि मां की मृत्यु हो गई, ऐसे में यदि पिता को सजा हो गई तो इनकी परवरिश कौन करेगा?
सामाजिक दबाव- बयान बदलने से मिलता लाभ
कई बार सामाजिक दबाव के चलते भी फरियादी पक्ष कोर्ट में खुलकर बयान नहीं दे पाते। इसके साथ ही उस समय परिजन काफी परेशान होते हैं। इसके चलते ना तो वे पुलिस को मुख्य दस्तावेज दे पाते हैं और ना ही सही तरीके से बयान। बयान में अंतर का लाभ भी आरोपियों को मिलता है।