युद्धकाल में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सबाल …?
यही वजह है कि दोनों देशों के पक्ष-विपक्ष में जुटे दूसरे देश जब धमकियां देकर युद्ध की आग में घी डाल रहे थे, तब भारत, रूस और यूक्रेन दोनों के राष्ट्राध्यक्षों को शांति का पाठ पढ़ाने का जतन कर रहा था। भारत के इस रुख की बदौलत ही समूचा विश्व समुदाय भारत की ओर इस उम्मीद से देख रहा है कि वह शांति प्रयासों की पहल करे। कई देशों से इसके लिए आह्वान भी हुआ है। इससे पहले ही भारत शांति की पहल तो कर ही चुका है। अब इस दिशा में और तेजी से आगे बढ़ने का समय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 देशों के सम्मेलन में इस ओर इशारा किया भी है कि भारत नई भूमिका केे लिए भी तैयार है। भारत बड़ी अर्थव्यवस्था है, यहां का बाजार भी बहुत बड़ा है, राजनीतिक तौर पर बहुत शक्तिशाली है और उसके अंतरराष्ट्रीय संबंध भी प्रगाढ़ हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध कैसे प्रतिकूल से प्रतिकूल हालात में मधुर बनाए रखे जाते हैं, इसका उदाहरण भारत ने मौजूदा युद्ध के दौरान रूस से कच्चे तेल के आयात का सौदा करके दिया। इसमें दुनिया के विरोध को भी शांत किया। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है कि भारत से आवाज उठेगी तो वह दुनिया में सम्मान के साथ सुनी जाएगी। भारत अपनी भूमिका अभी भी निभा रहा है और आगे भी निभाएगा लेकिन सवाल फिर वही आ जाता है कि संयुक्त राष्ट्र का क्या? यह पहला युद्ध नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र इसे रोकने और शांति बहाली में नाकाम रहा है। अब तक हुए सारे युद्धों और संघर्षों में संयुक्त राष्ट्र की यही कहानी है।
संयुक्त राष्ट्र की भूमिका राहत पहुंचाने के मामले में जरूर संतोषजनक हो सकती है। लेकिन बुद्धिमानी इसमें ही है कि विध्वंस होने ही नहीं दिया जाए। संयुक्त राष्ट्र को इस बारे में सोचना ही होगा कि आखिर ऐसी क्या कमियां हैं जो उसे शांति बहाली में अक्षम बनाती हैं। इन कमियों को दूर भी करना चाहिए, क्योंकि दुनिया को शक्तिशाली व सक्षम संयुक्त राष्ट्र की जरूरत है।