इसलिए सीएम बनने से चूके थे शिवराज…..!
.जब CM बनते-बनते रह गए शिवराज:पार्टी ने तय किया फिर कैंसिल; MP के सियासी टर्निंग पॉइंट की कहानी
खूब पदयात्राएं कीं तो ‘पांव-पांव वाले भैया’ कहलाए। बेटियों के लिए ‘लाडली लक्ष्मी’ समेत कई योजनाएं लाए तो ‘मामा’ बन गए। अपराधियों के ठिकानों पर बुलडोजर चलाए तो ‘बुलडोजर मामा’ हो गए। अब ‘भाई’ बनने जा रहे हैं। जी हां, शिवराज सिंह चौहान। नर्मदा किनारे के एक छोटे से जैत गांव में किसान परिवार में जन्मे शिवराज सिंह अपना 64वां जन्मदिन मना रहे हैं। इसी अवसर पर ‘लाडली बहना’ का मास्टर स्ट्रोक खेल रहे हैं। जाहिर है सत्ता की 5वीं पारी के लिए नजर आधी आबादी पर है।
5 बार सांसद रह चुके शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के चौथी बार के मुख्यमंत्री हैं। सबसे लंबे समय तक (करीब 16 साल) सूबे के मुखिया रहने का रिकॉर्ड इन्हीं के नाम है। 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बने तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि, 2018 के चुनाव में सत्ता से बेदखल होना पड़ा, लेकिन कांग्रेस की आपसी कलह ने उन्हें 15 महीने के ब्रेक के बाद फिर से सत्ता के सिंहासन पर बैठने का मौका दे दिया।
2003 में बीजेपी ने जब उमा भारती के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा तो 10 साल की दिग्विजय सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। बीजेपी सत्तारूढ़ हो गई, उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन शिवराज चुनाव हार गए थे। फिर कुछ ऐसे हालात बने कि उमा भारती को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह बाबूलाल गौर ने कुर्सी संभाली। उस समय शिवराज सिंह का CM बनना तय हो गया था, लेकिन ऐन मौके पर गौर के नाम पर मुहर लगी।
उस वक्त आखिर ऐसा क्या हुआ कि शिवराज सीएम नहीं बन पाए, फिर कैसे एमपी की सियासत में टर्निंग पॉइंट आया? कैसे शिवराज रिकॉर्डधारी मुख्यमंत्री बन गए? उनके सीएम बनने की कहानी उनके छात्र जीवन के साथी शिवकुमार चौबे ने सुनाई। चौबे वर्तमान में सामान्य वर्ग कल्याण आयोग के अध्यक्ष हैं।
शिवराज के सांसद से सीएम बनने की पूरी कहानी, उनके दोस्ती की जुबानी
शिवराज के बचपन के दोस्त शिवकुमार चौबे बताते हैं – बात 2004 की है। तारीख तो ठीक से याद नहीं। शिवराज के पास सीएम बनने का अवसर आया था। प्रदेश में उमा भारती का सत्ता पलट होना था। हुबली कांड के बाद उमा भारती का इस्तीफा हो गया था। तब शिवराज सांसद थे। पार्टी ने उन्हें दिल्ली बुलाया। कहा कि आपको मध्यप्रदेश का सीएम बनाया जा रहा है। इसके बाद शिवराज दिल्ली से भोपाल के लिए विमान में बैठे। उन्होंने मुझे बताया तो बहुत खुशी हुई, लेकिन भोपाल में जैसे ही बैठक हुई तो बाबूलाल गौर के नाम पर मुहर लग गई। यह सुनकर धक्का सा लगा। मैंने पूछा- यह कैसे हो गया। शिवराज ने कहा- पार्टी का जो आदेश है… (इतना कहते हुए शिव चौबे का गला रुंध गया)।
शिवराज सहज भाव से दिल्ली चले गए। मन में एक विश्वास था। उन्होंने कहा- पार्टी चाहेगी तो मुख्यमंत्री बन सकते हैं। 23 अगस्त 2004 को बाबूलाल गौर ने सीएम पद की शपथ ली। फिर कुछ महीनों बाद ऐसी परिस्थितियां बनीं और गौर को सीएम पद छोड़ना पड़ा। शिवराज से फिर कहा गया कि आपको मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। वे भोपाल आए। यहां के सभी वरिष्ठ नेताओं से मिले। कहा- पार्टी मुझे मुख्यमंत्री का दायित्व दे रही है।
इसके बाद 29 नवंबर 2005 में पहली बार शिवराज ने सीएम पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी समेत भाजपा के सभी नेता उपस्थित थे। इतने वरिष्ठ नेताओं का मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण में आना आजादी के बाद पहली घटना थी।
हमारी और शिवराज जी की दोस्ती 1977 में हुई थी। मैं छात्र जीवन में उनका सीनियर था, लेकिन विद्यार्थी परिषद में साथ काम किया। इसी दौरान दोस्ती प्रगाढ़ होती गई। वे विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री थे। मैं भोपाल का नगर अध्यक्ष था। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं सरकारी सेवा में चला गया। साल 2000 में सरकारी नौकरी छोड़कर भाजपा जॉइन कर ली। तब से शिवराज जी के साथ राजनीतिक क्षेत्र में काम करने लगा। मुझे कैबिनेट मंत्री के तौर पर सरकार के साथ काम करने का मौका दिया। मैं खनिज विकास निगम, मप्र गौ संवर्धन एवं गोपालन बोर्ड का अध्यक्ष रहा हूं। वर्तमान में सामान्य वर्ग कल्याण आयोग का अध्यक्ष हूं।
इसलिए सीएम बनने से चूके थे शिवराज…
पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने बताया- उमा भारती एक न्यायालय के प्रकरण में वांछित थीं, वो आंदोलनात्मक काम था, लेकिन नैतिकता के आधार पर उमा भारती ने कहा कि मैं न्यायालय जाऊंगी तो त्यागपत्र देकर जाऊंगी। केन्द्रीय नेतृत्व को जब उन्होंने अपना इस्तीफा देने के बारे में बताया तो उनसे पूछा गया कि आपके बाद किसे प्रदेश की बागडोर देनी चाहिए। केन्द्र के कुछ नेता चाहते थे कि कोई युवा मुख्यमंत्री बने, लेकिन उमा भारती के प्रस्ताव को प्राथमिकता देनी थी, इसलिए बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया।
गौर साहब ने जितने समय काम किया, सरलता और सादगी से सरकार चलाई, लेकिन जैसा कि केन्द्र के भाजपा के कुछ नेता किसी युवा को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे उस विचार को सफलता मिली और शिवराज सिंह जैसे युवा को मुख्यमंत्री बनाया गया। बाबूलाल गौर पार्टी के समर्पित सिपाही थे, उनसे जब कहा गया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके पीछे कोई राजनीति नहीं थी, बाबूलाल गौर के बाद शिवराज सिंह का नाम आया और वे मुख्यमंत्री बने।
चार बार मुख्यमंत्री बने शिवराज
शिवराज सिंह चौहान 29 नवंबर 2005 को पहली बार मुख्यमंत्री बने। 12 दिसंबर 2008 को उन्होंने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली। 8 दिसंबर 2013 को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। 2018 के चुनाव में बीजेपी बहुमत से दूर रह गई और कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 विधायकों की बगावत के चलते मार्च 2020 में कमलनाथ सरकार गिर गई। जिसके बाद 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए।
CM पद के लिए नाम तय हुआ, उस वक्त सो रहे थे शिवराज
वरिष्ठ पत्रकार अजय त्रिपाठी बताते हैं कि बीजेपी ने जब मुख्यमंत्री पद के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम फाइनल किया था, उस दौरान वे सांसद थे और दिल्ली स्थित अपने आवास पर सो रहे थे। टीवी पर शिवराज सिंह चौहान का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए तय होने की खबर उनकी पत्नी साधना सिंह ने देखी। जिसके बाद उन्होंने शिवराज सिंह को जगाया और जानकारी दी। इसके बाद शिवराज इस ऊहापोह में थे कि किसे फोन करके इस खबर को पुष्ट किया जाए।
शिवराज उधेड़बुन में लगे थे कि पंजाब के सीनियर कांग्रेस लीडर और उस वक्त के सांसद कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पत्नी के साथ उनके आवास पर फूलों का गुलदस्ता लेकर पहुंचे और उन्हें मप्र के अगले मुख्यमंत्री बनने की बधाई दी। शिवराज को सीएम बनने से पहले बधाई देने वालों में अमरिंदर सबसे पहले व्यक्ति थे।
जब दिग्विजय से हार गए थे शिवराज
शिवराज सिंह चौहान को एक बार दिग्विजय सिंह के सामने चुनावी हार का सामना करना पड़ा था। बात 2003 के विधानसभा चुनाव की है। उस वक्त दिग्विजय के शासन को उखाड़ फेंकने का जिम्मा बीजेपी ने उमा भारती को दिया था, लेकिन दिग्विजय को उनके ही गढ़ में घेरने के लिए शिवराज सिंह को मैदान में उतारा गया था। शिवराज सिंह ने दो बार के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय के खिलाफ उनके गढ़ राघौगढ़ सीट से चुनाव लड़ा। वे इस चुनाव में 21,164 वोटों से हार गए। उन्हें 37069 वोट हासिल हुए थे। जबकि दिग्विजय सिंह को 58,233 वोट पाकर जीत मिली थी। यह शिवराज सिंह की राजनीतिक करियर की पहली हार थी।
शादी नहीं करने की ठानी, परिवार के दबाव में झुके
शिवराज सिंह 13 साल की उम्र में ही संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। संघ से जुड़ने के कारण उन्होंने ठान लिया था कि शादी नहीं करना है। वे लगातार संघ और बीजेपी के काम में जुटे रहे। बाद में जब वो सांसद चुने गए तो घर वालों ने शादी के लिए दबाव बनाया। आखिरकार शिवराज को घर वालों की जिद के आगे झुकना पड़ा। 6 मई 1992 को उनकी शादी महाराष्ट्र की गोंदिया की साधना सिंह से हुई।
मजदूरों के लिए परिवार के खिलाफ हो गए
पांव में चक्कर, मुंह में शक्कर, सीने में आग और माथे पर बर्फ हो… मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अकसर कई मंच पर ये कहते सुनाई देते हैं। वे कहते हैं कि वे बचपन से इसी मूल मंत्र पर चल रहे हैं। उन्होंने मजदूरों के हक में आंदोलन छेड़ दिया। मजदूरी बढ़ाने के लिए हुए इस आंदोलन में उनकी जीत हुई।
2008 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह
29 नवंबर 2005 को शिवराज सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। उन्हें 3 साल ही काम करने का मौका मिला। इस दौरान पांव-पांव वाले भैया नाम से जाने जाने वाले शिवराज सिंह ‘मामा’ बन गए। उन्होंने लाडली लक्ष्मी योजना शुरू की। शिवराज सिंह की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि बीजेपी ने 2008 का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ने का फैसला किया। जब परिणाम आए तो बीजेपी को 143 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस 71 सीटों पर सिमट गई। जबकि उमा भारती ने नई पार्टी बनाकर अपने प्रत्याशी उतारे थे, उमा की पार्टी को 5 सीटें मिली थीं।
2013 में मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज की हैट्रिक
2013 के चुनाव आए तो बीजेपी ने फिर शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को ही आगे किया। उनके नेतृत्व में इस चुनाव में बीजेपी को 165 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस महज 58 सीटें ही हासिल कर सकी। शिवराज सिंह ने तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
2018 में गंवाई सत्ता, 15 महीने बाद फिर मिली कुर्सी
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से ज्यादा वोट बीजेपी को मिले थे, लेकिन सीटों के आंकड़ों में कांग्रेस आगे निकल गई और 3 बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी कुर्सी खोनी पड़ी। तब किसी को अंदाजा नहीं था कि डेढ़ साल बाद ही शिव’राज’ रिटर्न होगा। शिवराज सिंह प्रदेश में ही सक्रिय रहे, जनता के बीच बने रहे। जबकि बीजेपी ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। शायद शिवराज सिंह भांप गए कि कमलनाथ सरकार कभी भी लड़खड़ा सकती है। इसीलिए वो बिजली बिल से लेकर किसानों की कर्ज माफी समेत कई मुद्दों पर कमलनाथ सरकार के खिलाफ डटे रहे। यही वजह रही कि जब साल 2020 में जब कमलनाथ सरकार गिरी तो शिवराज सिंह को चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।