राष्ट्रपति पुरस्कार ले चुके इंदौर के [ बीएस टोंगर उर्फ बेनसिंह टोंगर ] ‘फर्जी SP’ की कहानी …!
क्या कोई सरकारी कर्मचारी अपना सर्विस रिकॉर्ड अपने हिसाब से लिख सकता है? सुनने में अजीब लग सकता है, पर हुआ कुछ ऐसा ही है। कभी दिल्ली में रहे थर्ड ग्रेड के एक कर्मचारी ने अफसर बनने की ख्वाहिश में सरकारी सर्विस बुक ही ठिकाने लगा दी। फिर डुप्लीकेट सर्विस बुक बनाई और फर्जी डिग्रियां चढ़ा दीं। जिनके आधार पर उसने मध्यप्रदेश में नए पद पर नौकरी जॉइन की और इंदौर फायर का SP बन गया। दो बार राष्ट्रपति पुरस्कार भी हासिल किए। बरसों नौकरी कर रिटायर भी हो गया।
जानिए रिटायरमेंट के बाद कैसे पकड़ी गई उसकी चोरी …!
कैसे डिप्लोमा को डिग्री बताकर पाया था पद, आखिर क्यों पहले खुलासा नहीं हो सका… !
पूरी कहानी अदालत के फैसले और शिकायतकर्ता की जुबानी…!
आरोपी शख्स का पूरा नाम बीएस टोंगर उर्फ बेनसिंह टोंगर है। उम्र 70 साल। मूलत: दिल्ली का रहने वाला बेनसिंह सबसे पहले रक्षा अग्नि अनुसंधान संस्थान दिल्ली में पोस्टेड हुआ था। यह 1976 की बात है। इसके लिए योग्यता मैट्रिक पास थी और पद मिला फायर सुपरवाइजर वर्ग-3 का। यह पद नॉन गजेटेड होता है।
आठ साल बाद वह दिल्ली में ही इलेक्ट्रिक सप्लाई अंडरटैकिंग (डेसू) में डेपुटेशन पर चला गया, जहां उसे फायर ऑफिसर पद का चार्ज दे दिया गया। मार्च 1985 तक वो वहीं काम करता रहा। इस पद के लिए भी योग्यता मैट्रिक पास के साथ-साथ स्टेशन अफसर कोर्स, फायर अफसर कोर्स और तीन साल अनुभव मांगा गया था। यह पद भी नॉन गजेटेड होकर वर्ग-B का था।
इसी पोस्टिंग के बाद उसके दिमाग में अफसर बनने का ख्वाब आया और वह डेपुटेशन से वापस अपने मूल विभाग रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन (डीआरडीओ), रक्षा अग्नि अनुसंधान संस्थान में लौट आया। यह तारीख 11 मार्च 1985 की थी।
24 घंटे के भीतर ही उसका नया आदेश तैयार हो गया और 12 मार्च 1985 को वह एक साल के लिए नए डेपुटेशन पर मध्यप्रदेश सरकार के प्रमुख अधीक्षक (फायर) के पद पर चला गया। कुछ समय बाद उसका यहीं पर संविलियन हो गया और वह मध्यप्रदेश सरकार की सेवा में ही अधिकृत तौर पर आ गया।
दिल्ली से मध्यप्रदेश आने के पांच साल बाद भी उसका सर्विस रिकॉर्ड ही नहीं लगाया गया था। इसके बावजूद वह नौकरी करता रहा। उसने अपने सर्विस रिकॉर्ड को ठिकाने लगा दिया और फर्जी रिकॉर्ड तैयार कर पेश कर दिया। इसमें उसने ऐसे डिग्रियां चढ़ा दीं, जिसकी उसने न परीक्षा दी, न कभी उस संस्था में पढ़ाई की। इतना ही नहीं, जो असल में डिप्लोमा सर्टिफिकेट थे, उसे भी डिग्री की तरह दर्शा दिया और उस आधार पर बड़ा पद हासिल कर लिया।
वो 3 करतूत, जिससे बड़ा पद हासिल किया
- डिप्लोमा सर्टिफिकेट को बताया डिग्री : मैट्रिक पास बेन सिंह ने मध्यप्रदेश की सेवा में आने पर जो डुप्लीकेट सर्विस रिकॉर्ड लिखा, उसमें खुद को ग्रेजुएट फायर इंजीनियर बताया। जबकि असल में यह एक डिप्लोमा कोर्स है, न कि कोई डिग्री। साथ ही उसने दिल्ली के जिस इंस्टीट्यूट से उसे मिलना बताया, वहां वह कभी पढ़ा ही नहीं। इसके आधार पर उसने फायर सुपरवाइजर ग्रेड 1 दर्शाया, जबकि यह पोस्ट ग्रेड 3 की होती है। बीई फायर डिग्री के लिए विज्ञान विषय से ग्रेजुएट होना चाहिए, जबकि वह मैट्रिक पास ही है।
- सर्विस रिकॉर्ड से दिल्ली की पोस्टिंग छुपाई : दिल्ली में फायर सुपरवाइजर रहते हुए जब वह पहली बार डेपुटेशन पर गया था, तब डेसू नाम की संस्था में उसे अस्थायी रूप से फायर अफसर का चार्ज मिला था, लेकिन यह पद भी गजेटेड नहीं होता है। डेपुटेशन खत्म होने पर अपने मूल विभाग में लौटते ही उसका पद वापस फायर सुपरवाइजर हो गया था, इसलिए उसने वापसी की जानकारी छुपाई। क्योंकि उसके मूल विभाग में फायर ऑफिसर के नाम से कोई पद ही नहीं है। केवल सुपरवाइजर होता है।
- चिट्ठी में क्लास 2 अफसर नहीं, पर सर्विस रिकॉर्ड में चढ़ाया : मध्यप्रदेश में जॉइनिंग के बाद जब उसे पोस्टिंग ऑर्डर दिया गया था तो उसमें कहीं पर भी गजेटेड अफसर क्लास 2 नहीं लिखा था। इसके बावजूद उसने सर्विस रिकॉर्ड में खुद को मध्यप्रदेश सरकार का गजेटेड अफसर लिख लिया और क्लास 2 अफसर दर्शाया।
कैसे हुआ इस पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा?
इंदौर में फायर एसपी के पद पर पदस्थ होने के बाद बेन सिंह अपने अधीनस्थों पर हुक्म चलाने लगा। इस दौरान उसके अंडर में काम करने वाले सब इंस्पेक्टर रामसिंह निगवाल से उसकी अनबन हो गई। इस पर निगवाल ने पड़ताल की। 4 महीने तक निगवाल दस्तावेज जुटाने में लगे रहे। शैक्षणिक योग्यता से लेकर बेन सिंह के बारे में अन्य जानकारी इकट्ठा कर ली। इसमें पता चला कि वो सिर्फ 10वीं पास है और फर्जी डिग्री से एसपी बना है। इसके बाद निगवाल ने विभाग सहित करीब 25 जगह लिखित शपथ पत्र के साथ उसकी शिकायत कर दी। शिकायतकर्ता आरएस निगवाल वर्तमान में फायर SP हैं।
ईओडब्ल्यू में केस दर्ज हो गया
शिकायतकर्ता रामसिंह निगवाल ने 20 फरवरी 2002 को बेनसिंह की शिकायत करते हुए मध्यप्रदेश शासन को लिखा कि बीएस टोंगर फायर सुपरवाइजर ने बेईमानी से खुद को फायर ऑफिसर बताकर गलत व झूठी जानकारी देकर मध्यप्रदेश शासन की सेवाएं ली हैं। अधिक वेतन लेने के साथ ही क्लास 2 गजेटेड ऑफिसर नहीं होते हुए भी धोखा देकर उच्च श्रेणी की नौकरी और वेतनमान प्राप्त किया है। शिकायत की जांच तत्कालीन डीआईजी मैथिली शरण गुप्त द्वारा की गई और जांच प्रतिवेदन सौंपा गया। उस आधार पर 2003 में राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) मुख्यालय भोपाल ने बीएस टोंगर के खिलाफ धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का केस दर्ज कर लिया। इसके लिए 420, 476, 468 और 471 एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)डी(1) एवं 13(2) जैसी धाराएं लगाईं।
बेन सिंह को बचाने के लिए दिए गए तर्कों का ऐसे हुआ खंडन
सजा से बचने के लिए सफाई नं. 1 : राज्य शासन ने उसकी नियुक्ति, शैक्षणिक योग्यता तथा वेतनमान के संबंध में कोई आक्षेप नहीं उठाया और सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्त किया।
अदालत में ऐसे हुई खारिज : मध्यप्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर आने के पूर्व की सेवा पुस्तिका 2001 से पहले मध्यप्रदेश के किसी विभाग को प्राप्त नहीं हुई। जो डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका जब्त की गई वो बिना किसी आदेश के बनी। किस कारण बनी, ऐसा भी कोई रिकॉर्ड नहीं है। सेवा पुस्तिका नहीं होने से शैक्षणिक रिकॉर्ड का सत्यापन नहीं हो सका व नॉन गजेटेड अधिकारी के वेतन का भी सत्यापन नहीं हो सका, जिसके लिए बेन सिंह खुद जिम्मेदार है।
सजा से बचने के लिए सफाई नं. 2 : अग्नि से संबंधित सर्वोच्च शैक्षणिक योग्यता डिप्लोमा इन फायर इंजीनियरिंग एंड डिवीजनल ऑफिसर्स कोर्स था। मप्र सरकार द्वारा वर्ष 1984-86 तक चीफ सुप्रिंटेंडेंट फायर के पद के संबंध में ऐसी शैक्षणिक योग्यता संबंधी कोई भर्ती नियम निर्मित नहीं किए गए।
अदालत में ऐसे हुई खारिज : यह एक सर्टिफिकेट है डिग्री नहीं। यह संस्था द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र है, इससे ग्रेजुएट शख्स को फायर इंजीनियर लिखने का हक प्राप्त नहीं होता है। बेन सिंह ने फायर इंजीनियर का भ्रम पैदा करने के लिए छलपूर्वक ये सब लिखा।
सजा से बचने के लिए सफाई नं. 3 : डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका का प्रमाणीकरण समय-समय पर विभाग के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा किया गया है व वेतनमान में वृद्धि करते हुए नवीन वेतनवृद्धि स्वीकृत की गई।
अदालत में ऐसे हुई खारिज : गलत जानकारी शासन को प्रस्तुत की। महामहिम राज्यपाल को भी गुमराह किया। बेन सिंह राज्यपाल कार्यालय की नोटशीट में फायर ऑफिसर वर्ग-2 गजेटेड स्केल 870-1425 अंकित है। जबकि असल में वह शुरुआत में नॉन गजेटेड पद पर पदस्थ हुआ था।
2008 में लगा कि बच जाएगा बेन सिंह
आरएस निगवाल की शिकायत पर मामले में बेन सिंह टोंगर के खिलाफ केस दर्ज हो चुका था। जांच चल रही थी। इस बीच ईओडब्ल्यू की तरफ से मामले में सबूतों के अभाव में 2008 में खात्मा रिपोर्ट लगा दी गई। तब लगा कि केस बंद हो जाएगा और बेन सिंह बच जाएगा।
मगर कोर्ट ने ये माना कि किसकी अनुमति से डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका तैयार की गई, ये बिंदु स्पष्ट नहीं है। ऐसे में इस बिंदु पर आगे और जांच होनी चाहिए इसलिए खात्मा रिपोर्ट मंजूर नहीं होगी। साथ ही ईओडब्ल्यू से कहा कि इस बिंदु पर जांच कर रिपोर्ट पेश करें। इसके बाद जब जांच शुरू हुई तो पूरा सच सामने आ गया। सिर्फ सर्विस रिकॉर्ड ही डुप्लीकेट नहीं बनाया गया था, बल्कि पदनाम और डिग्रियां भी फर्जी तरीके से दिखा दीं।
जब दोष साबित हुआ तो बोला– राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हूं, मी लॉर्ड नरमी बरतें
बेन सिंह टोंगर को सजा में नरमी के लिए उनके वकील ने दलील दी कि वे 70 साल के वृद्ध होकर बीमारियों से ग्रसित हैं। वह रिटायर हो चुके हैं। शासकीय सेवाकाल में राष्ट्रपति पुरस्कार एवं अनेक सम्मान मिले हैं। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सजा में नरमी बरती जाए।
ये मिला जवाब– दोषी बेन सिंह टोंगर के वकील द्वारा सजा में नरमी बरतने की बात पर विशेष लोक अभियोजक लतिका अलावा ने कहा- बेन सिंह टोंगर को गंभीर अपराध धाराओं में दोषी पाया गया है। ऐसे में सेवाकाल के दौरान उसे प्राप्त पुरस्कारों एवं सम्मानों से दंड में नरमी दिए जाने संबंधी कोई आधार उत्पन्न नहीं होता। ऐसे में बेन सिंह को अधिकतम और कठोरतम सजा मिलनी चाहिए।
राष्ट्रपति पुरस्कार की वजह भी सवालों के घेरे में
शिकायतकर्ता और मौजूदा एसपी फायर आरएस निगवाल का आरोप है कि बात 1995 की है। इंदौर में एक निर्माणाधीन भवन गिर गया था, जिसमें दो मजदूर दब गए थे। तब फायर विभाग के जवानों ने एक मजदूर की जान बचाई थी और उसे जिंदा निकाला था, लेकिन बेन सिंह ने खुद क्रेडिट ले लिया। जवानों को तो नकद पुरस्कार दे दिया मगर राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए अपना नाम आगे बढ़ा दिया। इस तरह उसे राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है। हालांकि, दैनिक भास्कर इस आरोप की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।
20 साल पहले हुई थी शिकायत, अब मिली सजा
2003 में केस दर्ज होने के 10 साल के बाद चालान पेश हुआ। प्रकरण के सबूत जुटाने के बाद ईओडब्ल्यू ने 2013 में टोंगर का चालान पेश किया। जिसके बाद पिछले महीने 16 फरवरी को प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश संजय कुमार गुप्ता की कोर्ट नंबर 2 से टोंगर को धारा 467 में 4 साल, जबकि अन्य धाराओं में 3-3 साल की सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही टोंगर पर प्रति धारा 2000 रुपए के अनुसार कुल 12 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। रिटायर हो चुका टोंगर अब जिला जेल में हैं। शिकायतकर्ता निगवाल का कहना है कि टोंगर से वेतन वसूली और उसकी संपत्ति की जांच भी होना चाहिए। इसके लिए भी वे एक पत्र लिखेंगे।