MP में चेहरा देखकर तय होती है ‘मौत’ की कीमत …?

राजनीतिक रैली से लौट रहे हैं तो 10 लाख, परीक्षा देने जा रहे हैं तो केवल 5 लाख …

मध्यप्रदेश में बड़े सड़क हादसों में सरकार दोहरे मापदंड अपनाती रही है। हादसों में जान गंवाने वालों के परिजन को यह देखकर मुआवजा दिया जाता है कि वह किस मकसद से यात्रा कर रहे थे। यदि सत्ताधारी पार्टी की राजनीतिक रैली में शामिल होने आए हैं और हादसे का शिकार हो गए तो 10 लाख रुपए के साथ परिजन को सरकारी नौकरी भी दी जाती है। यदि कोई स्टूडेंट है और परीक्षा देने जाते वक्त हादसे का शिकार होता है तो उसकी मौत पर 5 लाख रुपए ही मिलेंगे।

यह तथ्य दैनिक भास्कर की पड़ताल में निकलकर आया है। हमने ऐसे हादसे निकाले, उनके कारण समझे। मुआवजा कम-ज्यादा देने की वजह को भी जाना। सरकार के नुमाइंदों से भी बात की कि आखिर चेहरा देखकर मौत का मुआवजा क्यों तय किया जा रहा है।

पहली नजर में आम व्यक्ति को ऐसा लगता है कि जितना बड़ा हादसा, उतना ज्यादा मुआवजा मिलना चाहिए। पिछले दिनों हुए हादसों पर दी गई राशि को जब हमने देखा तो यह बात स्पष्ट हो गई कि हादसे के बड़े होने से बड़ी राशि दी गई हो, ऐसा कतई नहीं है। इसकी वजहों में सियासत, अप्रोच, दबाव और प्रभाव जैसे कारण निकलकर आए। सबसे पहले देखिए सरकार ने किस तरह किया भेदभाव।

हाल ही में सीधी-रीवा रोड पर हुए हादसे में मृतकों के परिजन को 10-10 लाख का मुआवजा देने का ऐलान हुआ। साथ में मृतक परिजन को योग्यता के अनुरूप सरकारी नौकरी की घोषणा भी की गई। मरने वाले सभी 15 लोग सतना में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के कार्यक्रम में शामिल होकर लौट रहे थे। 10 लाख का मुआवजा देने पर किसी को क्यों ऐतराज होना चाहिए, लेकिन इसी तरह के दूसरे हादसों में जब 2 और 4 लाख रुपए दिए गए तो सवाल उठना लाजमी है कि सरकार ने इसके लिए क्या मापदंड बनाए हैं।

 

पहली बार सरकारी नौकरी की भी घोषणा

सीधी बस हादसे में मरने वालों के आश्रितों को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी। इसे लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मृतकों के आश्रितों में कोई ऐसा है जो सरकारी सेवा में लिया जा सकता है तो उसकी योग्यता अनुसार उसे सरकारी नौकरी देने का काम भी करेंगे। इससे पहले हुए कई हादसों में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई थी। इस तरह की घोषणा संभवत: पहली बार हुई है।

इसलिए किया जा रहा है भेदभाव

पिछले दिनों हुए हादसों में दिए मुआवजे के ट्रेंड के आधार पर बताते हैं कि दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जा रहे हैं। इसके 3 कारण निकले…

राजनीतिक चश्मे से देखिए…

हादसे को कई बार राजनीति के चश्मे से देखा जाता है। इसके चलते मुआवजे की राशि में दोहरे मापदंड अपनाए गए। सतना में आयोजित शबरी जयंती महोत्सव में मुख्य अतिथि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह थे। इसमें शामिल आदिवासियों की बस दुर्घटनाग्रस्त हुई। 15 लोगों की मौत की खबर पूरे देश में फैल गई, इसलिए सरकार ने बिना देरी किए 10-10 लाख के मुआवजे की घोषणा कर दी। मृतकों के आश्रितों को नौकरी का आश्वासन भी दे दिया। हादसे के तत्काल बाद पूरा शासन-प्रशासन तंत्र सक्रिय हो गया था, ताकि लापरवाही का आरोप न लग सके। हादसे को विपक्ष मुद्दा ना बना पाए, यह भी कोशिश हुई।

लोकल दबाव, चक्काजाम कर दिया, सरकार की इमेज बिगड़ने का डर

2015 में पेटलावद ब्लास्ट कांड में 90 लोगों की मौत के बाद स्थानीय लोगों का सरकार के खिलाफ आक्रोश था। इसकी वजह थी कि मृतकों के परिजन को 2-2 लाख रुपए का मुआवजे का ऐलान किया गया था। लोग सड़क पर उतर आए थे। इस गुस्से को खत्म करने के लिए मुख्यमंत्री को मौके पर पहुंचकर मुआवजा राशि 2 से बढ़ाकर 10-10 लाख रुपए का ऐलान करना पड़ा था।

प्रभाव… वोट बैंक या सामाजिक दबाव

हादसा कहां हुआ, वहां का सामाजिक तानाबाना क्या है… यह भी कई बार मुआवजे की राशि तय करने का मापदंड बनता है। सरकार के हर कदम के पीछे चुनाव और वोटबैंक होता ही है, इसलिए हादसे से जो वर्ग प्रभावित हुआ, उसका राजनीतिक असर देखकर भी मुआवजे की राशि तय होती रही है। मध्यप्रदेश में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। शायद इसलिए भी 10 लाख रुपए के साथ सरकारी नौकरी ऑफर की गई।

वैसे मौत पर 4 लाख रुपए देने का है नियम

रिटायर्ड आईएएस अफसर वीके बाथम बताते हैं कि सड़क दुर्घटना में मरने वालों के आश्रितों को अधिकतम 4 लाख रुपए मुआवजा देने का नियम है। यह नियम केंद्र सरकार ने बनाया है। इसके लिए बाकायदा प्रक्रिया है, लेकिन सरकार मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान फंड से आर्थिक सहायता देती है। यह राशि कितनी होगी, यह मुख्यमंत्री के विवेकाधिकार पर निर्भर है। वे यह भी कहते हैं कि ऐसे हादसों में मृतक के आश्रित को सरकारी नौकरी देने का कोई प्रावधान नहीं है।

54 मौतें हुईं, मुआवजा 5-5 लाख दिया

नैतिकता तो यही कहती है, लेकिन देखने में नहीं आया। पिछले दो साल के हादसे में दिए मुआवजे को देखें तो सबसे बड़ा एक्सीडेंट सीधी बस हादसा रहा। इसमें 54 मौत हुईं। इस हादसे में मरने वाले अधिकतर नर्सिंग के छात्र-छात्राएं थे। कायदे से यहां सबसे ज्यादा मुआवजा मिलना था, लेकिन नहीं मिला। राज्य सरकार ने मृतक के परिजन को 5-5 लाख रुपए ही दिए। प्रधानमंत्री राहत कोष के 2 लाख रुपए भी मिला लें तो यह राशि 7 लाख होती हैं। इससे उलट, छोटे हादसों में मुआवजा राशि 10 लाख रुपए तक रही।

हर मौत की अलग कीमत क्यों…? मंत्री का नो कमेंट!

प्रदेश के राजस्व व परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने स्वीकार किया कि सड़क हादसे में मौत पर 4 लाख रुपए तक मुआवजा देने का नियम है। वे यह भी मानते हैं कि हर मौत की कीमत अलग-अलग है। जब उनसे पूछा कि ऐसा क्यों…? तो उन्होंने कोई कमेंट नहीं किया। बस इतना कहा- आर्थिक सहायता देना, मुख्यमंत्री का विवेकाधिकार है। क्या यह नियम सरकार बदलेगी..? इस पर भी उन्होंने कोई कमेंट नहीं किया।

‘हिट एंड रन’ मामले में केंद्र ने 2 लाख का नियम बनाया

हिट एंड रन हादसों में मुआवजे के नियमों को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इसी साल बदला। इसके तहत हिट एंड रन केस में मौत होने पर परिजन को 2 लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा। पहले यह राशि 25 हजार रुपए थी। गंभीर रूप से घायल होने पर 12,500 की जगह 5 हजार रुपए का मुआवजा मिलेगा।

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