हमें एआई को स्ट्रैटेजिक इंडस्ट्री के रूप में देखना होगा, क्योंकि आने वाला कल इसी का होगा

आज एआई से ज्यादा हॉट कोई दूसरा सेक्टर नहीं है। चैटजीपीटी की लॉन्चिंग के बाद से तो इस क्षेत्र में उत्साह और रोमांच नई ऊंचाइयों पर चला गया है। चैटजीपीटी एक क्वेरी-टूल है, जो किसी सर्च-इंजिन की तरह काम करता है। यह किसी भी क्वेरी का बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर दे सकता है।

यह कॉलेज असाइनमेंट्स कर सकता है, कम्प्यूटर कोड्स लिख सकता है, किसी पार्टी की प्लानिंग में आपकी मदद कर सकता है और यह भी बता सकता है कि आपको कहां छुटि्टयां बिताना चाहिए। हम यह कॉलम भी चैटजीपीटी से लिखवा सकते थे और शायद वह बेहतर लिखता।

चैटजीपीटी के 10 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हो चुके हैं। उसने गूगल को भी अपना एक एआई-क्वेरी टूल लॉन्च करने के लिए मजबूर कर दिया है। चिपमेकर्स, सॉफ्टवेयर प्रोवाइडर्स, इंटरनेट कम्पनियां सभी इस होड़ में शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है हम इतिहास के अहम मोड़ पर आ चुके हैं, क्योंकि एआई जल्द ही मनुष्य की बुद्धिमत्ता को पार कर जाएगी। इसके तीन खतरे हैं।

पहला, इसका नौकरियों पर असर पड़ेगा। सवाल है कि क्या एआई सभी नौकरियां खा जाएगी? आखिर जब एक वफादार और बुद्धिमान मशीन आपका काम अच्छे से कर सकती है तो कोई परेशानियां पैदा करने वाले मनुष्यों को क्यों नौकरी पर रखेगा?

दूसरा, क्या इससे असमानता बढ़ेगी, क्योंकि अमीर देश एआई में तरक्की करके दुनिया पर दबदबा कायम कर सकते हैं? तीसरे, क्या भविष्य में मशीनें मनुष्यों को नियंत्रित करने लगेंगी? यह बहुत साइंस फिक्शन किस्म का डर है कि क्या स्मार्ट कम्प्यूटर्स और एआई के द्वारा जनरेटेड एल्गोरिदम्स मनुष्यों को नुकसान पहुंचा सकते हैं?

सबसे पहले नौकरियों की बात करें। इसमें संदेह नहीं कि एआई मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले कुछ कार्यों को हथिया लेगी, जैसा कि कुछ दशक पूर्व कम्प्यूटरों और ऑटोमैटेड मशीनों ने किया था। अकाउंटिंग सॉफ्टवेयरों ने बही-खाते का काम करने वालों की नौकरियां छीन ली थीं।

सिलाई मशीनों ने हाथ से स्वेटर बुनने वालों को बेकार कर दिया। लेकिन एआई इनसे कहीं जटिल और बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यों को करने में सक्षम है। वह पर्यटन, कानूनी, वित्तीय और चिकित्सकीय परामर्श-सम्बंधी कार्यों को कर सकती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि बड़े पैमाने पर लोग नौकरियां गंवाएंगे, क्योंकि ह्यूमन-टच और इमोशनल-कनेक्ट की जरूरत हमेशा बनी रहेगी, खासतौर पर परामर्श-सम्बंधी भूमिकाओं में।

एआई जिम्मेदारियां भी नहीं ले सकती, जो कि मनुष्य ले सकते हैं। अगर कोई एआई जनरेटेड परामर्श गलत साबित हुआ तो इसके लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाएगा? अगर यह लेख एआई ने लिखा होता और यह आपको पसंद नहीं आता तो आप किसको ट्रोल करते?

दूसरे, यह डर जायज है कि अमीर देश एआई के इस्तेमाल से दबदबा कायम कर सकते हैं। चूंकि अधिकांश इंटरनेट अंग्रेजी में है, इसलिए पश्चिमी डाटाबेस के प्रति उसका स्पष्ट झुकाव रहेगा। अगर भारत इस क्षेत्र में कुछ करना चाहता है तो उसे अपने स्वयं के एआई मॉडल्स पर काम करना शुरू कर देना चाहिए। अगर पश्चिम हम पर एआई थोपेगा तो यह एक तरह का डिजिटल उपनिवेशवाद साबित होगा।

तीसरे, तकनीकी रूप से यह सम्भव है कि एआई भविष्य में विकसित होकर मनुष्यों को नियंत्रित करने लगे। क्योंकि खुद में निरंतर सुधार करने वाली इंटेलीजेंस पर थ्योरिटिकली कोई पाबंदी नहीं है। एआई उस सुपर-इंटेलीजेंस तक पहुंच सकती है, जो मनुष्यों की क्षमता से परे है।

अगर एआई-आधारित सिस्टम्स दुनिया को चलाने लगे तो सम्भव है वे हमें ओवरराइड करने वाले निर्णय लेने लगें। लेकिन निकट-भविष्य में इसके होने की सम्भावना नहीं है। क्योंकि मनुष्य का दिमाग बहुत जटिल होता है और उसमें बुद्धिमत्ता के अलावा भी दूसरी क्षमताएं हैं। हम महसूस कर सकते हैं और उनके आधार पर चीजों पर अनप्रेडिक्टेबल तरीके से प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं।

नींद पूरी होने या न होने से आपका व्यवहार बदल सकता है। यह मनुष्य होने की भावनात्मक अवस्था है, जो हमारी शारीरिक स्थिति से सम्बद्ध है। हमारे अनेक निर्णय इस पर आधारित होते हैं। मनुष्य भावनाओं में बहकर मूर्खतापूर्ण चीजें भी कर सकते हैं। साथ ही बुद्धिमत्ता का सम्बंध अनिवार्यत: ही सत्ता से नहीं होता। बहुत सम्भव है कि एआई का संचालन दूसरी इंटेलीजेंट मशीनों के बजाय अमीर और ताकतवर मनुष्यों के ही हाथ में रहे।

वर्तमान में हमारी एआई इंडस्ट्री बहुत छोटी है। इसे बढ़ाने के लिए हमें एडवांस्ड चिप डिज़ाइन और मैन्युफेक्चरिंग में निवेश करना होगा। आज यह सड़क और हवाई अड्‌डे बनाने जितना ही जरूरी हो गया है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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