ओल्ड पेंशन स्कीम पर स्टडी कराएगी भाजपा …!

राजस्थान आएगी कमेटी, 20-22 करोड़ वोटर टारगेट पर …

सरकारी कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम देने के मुद्दे ने आखिर भाजपा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। कर्नाटक की भाजपा सरकार ने ओपीएस के अध्ययन के लिए एक कमेटी बनाई है। यह कमेटी इसी महीने राजस्थान आएगी।

कर्नाटक में दो महीने बाद होने वाले चुनावों के पांच-छह महीने बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं।

ऐसे में लगता है कि ओपीएस पर इन राज्यों में भी भाजपा जल्द ही अपना रुख स्पष्ट करेगी। अगर ऐसा हुआ तो ओल्ड पेंशन स्कीम 13 महीनों के बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बनेगी।

सीएम गहलोत ने बजट-2022 और बजट-2023 से ठीक पहले कर्मचारी संगठनों से बात की थी। गहलोत ने विभिन्न बोर्ड व आयोग के कर्मचारियों के लिए भी ओपीएस लागू करने की घोषणा की है।
सीएम गहलोत ने बजट-2022 और बजट-2023 से ठीक पहले कर्मचारी संगठनों से बात की थी। गहलोत ने विभिन्न बोर्ड व आयोग के कर्मचारियों के लिए भी ओपीएस लागू करने की घोषणा की है।

राजस्थान में मार्च-2022 में सीएम अशोक गहलोत ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की थी। गहलोत कई बार भाजपा को चुनौती देते हुए यह कहते रहे हैं कि आज नहीं तो कल, भाजपा की राज्य सरकारों और केन्द्र में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ओपीएस लागू करनी ही पड़ेगी।

देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित विभिन्न जानकारों ने ओपीएस को अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया है। अब चुनाव नजदीक आने पर भाजपा भी इस मुद्दे को अछूता नहीं रख पा रही है।

कर्नाटक के सीएम बी. बोम्मई ने प्रदेश में ओपीएस की स्टडी के लिए एक हाईलेवल कमेटी बना दी है।
कर्नाटक के सीएम बी. बोम्मई ने प्रदेश में ओपीएस की स्टडी के लिए एक हाईलेवल कमेटी बना दी है।

राजस्थान भाजपा के प्रवक्ता आशीष चतुर्वेदी ने बताया कि अभी तक प्रदेश में पार्टी ने ओपीएस पर कोई विचार नहीं किया है, लेकिन विभिन्न राजनीतिक विषयों पर पार्टी समय आने पर विचार करती ही है। कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में वहां की सरकार ने जरूरत के हिसाब से फैसला किया है।

राजस्थान के तीन आईएएस अफसरों से मिलेगी कमेटी

कर्नाटक में पिछले दिनों सरकारी कर्मचारी ओपीएस सहित विभिन्र् मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। उनका धरना-प्रदर्शन खत्म कराने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने यह कमेटी बनाई है, अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के एक आईएएस को सौंपी गई है।

उनके साथ तीन आईएएस अफसरों को सदस्य बनाया गया है। यह कमेटी राजस्थान का दौरा सबसे पहले करेगी क्योंकि राजस्थान ने ओपीएस सबसे पहले लागू की। राजस्थान के बाद यह कमेटी छत्तीसगढ़ का दौरा करेगी, क्योंकि वहां भी कांग्रेस की सरकार है। इन दोनों राज्यों के बाद यह कमेटी पंजाब, हिमाचल प्रदेश और झारखंड का दौरा करेगी।

कमेटी राजस्थान में मुख्य सचिव उषा शर्मा, वित्त विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अखिल अरोड़ा, सीएम के प्रमुख सचिव कुलदीप रांका से मुलाकात करेगी। कमेटी को 30 अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट कर्नाटक सरकार को सौंपनी है।

भाजपा के राज्यसभा सांसद अरुण सिंह राजस्थान और कर्नाटक दोनों प्रदेशों के प्रभारी हैं।
भाजपा के राज्यसभा सांसद अरुण सिंह राजस्थान और कर्नाटक दोनों प्रदेशों के प्रभारी हैं।

राजस्थान में भी भाजपा जल्द ही ओपीएस पर अपना पक्ष स्पष्ट करेगी

राजस्थान भाजपा के प्रभारी अरुण सिंह हैं, जो कर्नाटक भाजपा के भी प्रभारी हैं। सूत्रों का कहना है कि ओपीएस पर कमेटी बनाने में सिंह की राय-सलाह रही है।

वे राजस्थान में इस स्कीम पर कांग्रेस के उत्साह को निरंतर देख रहे हैं। राजस्थान में भाजपा विपक्ष में है, ऐसे में पार्टी के स्तर पर कोई कमेटी गठित की जा सकती है, जो यहां चुनावों से पहले ही ओपीएस के प्रभावों के बारे में स्टडी कर भाजपा नेतृत्व को रिपोर्ट सौंपे, ताकि पार्टी जनता के समक्ष ओपीएस को लागू करने या नहीं करने को लेकर अपना स्पष्ट मत रख सके।

20-22 करोड़ वोटर से जुड़ा है मुद्दा

राजस्थान सहित देश के सभी राज्यों में कर्मचारी वर्ग सबसे बड़ा मतदाता समुदाय माना जाता है। कर्मचारी अपनी कार्यप्रणाली, मौखिक प्रचार, सेवा प्रदान करने और अपने संगठनों के धरनों-प्रदर्शन के जरिए सरकारों के पक्ष या विपक्ष में माहौल बनाते रहे हैं।

जब चुनाव होते हैं, तो किसी भी अन्य वोटर समुदाय की तुलना में उनका मतदान प्रतिशत हमेशा ज्यादा होता है। कर्मचारी मतदाताओं में से लगभग 95 प्रतिशत लोग वोट करते हैं। देश भर में इस वोटर समुदाय की संख्या लगभग 20-22 करोड़ (परिजनों सहित) मानी जाती है।

  • केन्द्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश भर में लगभग 4 करोड़ 70 लाख सरकारी कर्मचारी हैं।
  • अकेले राजस्थान में करीब 8 लाख कर्मचारी हैं।
  • मध्यप्रदेश में लगभग 9 लाख कर्मचारी हैं।
  • कर्नाटक में लगभग 10 लाख कर्मचारी हैं।
  • छत्तीसगढ़ में करीब 2 लाख कर्मचारी हैं।
  • सरकारी कर्मचारियों का सबसे बड़ा संगठन भारत में सेना है, जिसमें कार्मिकों की संख्या लगभग 14 लाख हैं। इसके बाद रेलवे है जहां करीब 12 लाख 54 हजार कार्मिक काम करते हैं और फिर पैरा मिलिट्री फोर्सेज (अर्द्ध सैन्य बल) हैं जहां लगभग 8 लाख 86 हजार कार्मिक कार्यरत हैं।
  • आम तौर पर कर्मचारियों के वोट बैंक को सरकारें व राजनीतिक पार्टियों बहुत गंभीरता से लेती हैं, राजनीतिक पार्टियां कर्मचारियों के साथ उनके परिजनों को भी उसी वर्ग में गिनती हैं।
  • दिल्ली में 100 से अधिक कर्मचारी संगठनों ने देश भर में ओपीएस लागू करने की मांग को लेकर 8 दिसंबर-2022 को प्रदर्शन भी किया था।

हिमाचल की हार और महाराष्ट्र के सीएम शिंदे ने चेताया

भाजपा लगातार इस पर चुप्पी साधे हुई थी। केन्द्रीय वित्त मंत्रालय, नीति आयोग, वित्त आयोग और अर्थ-वित्त विशेषज्ञ तो इसे खतरनाक तक बता रहे थे।

हाल ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तो जयपुर में प्रेस कांफ्रेंस करने इसे लागू करने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया था।

लेकिन हिमाचल प्रदेश में भाजपा को चुनावों में हार मिली। हाल ही 30 जनवरी को महाराष्ट्र में विधान परिषद (काउंसिल) के 5 सीटों पर हुए उप चुनावों में भाजपा-शिवसेना के गठबंधन को तीन सीटों पर हार मिली।

इन सीटों पर सरकारी शिक्षकों व कर्मचारियों की संख्या अधिक थे। इस हार के बाद महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने 17 फरवरी को कोंकण क्षेत्र में एक सभा में ओपीएस के मुद्दे पर पॉजिटिव सोच रखने की बात कही।

शिंदे ने कहा कि महाराष्ट्र में ओपीएस देने पर विचार किया जाएगा। इसके लिए शिक्षकों-कर्मचारियों के संगठनों से बात की जाएगी।

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हारने के बाद हुई समीक्षा में पार्टी ने ओपीएस को भी एक कारण बताया। ऐसे में अब भाजपा किसी और राज्य में इस पर चुप्पी नहीं बरतना चाहती।

इन चुनावों पर नजर

कर्नाटक में 28 लोकसभा सीटें हैं, जो केन्द्र में सरकार बनाने के लिए बेहद अहम हैं। वहीं, यहां 224 विधानसभा की सीटें हैं। 10 लाख कर्मचारियों के कारण इस प्रदेश में कर्मचारियों के इस सबसे बड़े मुद्दे पर आश्वासन दिया जाना बेहद जरूरी है।

कर्नाटक के बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव हैं, जहां लोकसभा की 65 सीटें (क्रमश: 25, 29 व 11) हैं। लगभग 19-20 लाख कर्मचारी हैं तीनों राज्यों में। केन्द्रीय विभागों के कर्मचारियों की संख्या जोड़ो तो यह संख्या लगभग 25 लाख होती है। इन तीन में से दो राज्यों में वर्तमान में कांग्रेस सरकार है और वे ओपीएस लागू कर चुकी हैं।

राजस्थान की 30 विधानसभा सीटों पर असर

राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा करीब 30 विधानसभा सीटों पर कर्मचारी वर्ग को दमदार वोटर मानती हैं। वैसे तो सभी 200 सीटों पर कर्मचारियों की बड़ी संख्या है। इन सीटों में सिविल लाइंस, मालवीय नगर, सांगानेर, अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, किशनगढ़, भीलवाड़ा, भरतपुर, बीकानेर पश्चिम, श्रीगंगानगर, उदयपुर, कोटा उत्तर, सीकर, अलवर, सूरसागर, बालोतरा, केकड़ी, बाड़मेर, फुलेरा, टोंक, ब्यावर, देवली-उनियारा, लक्ष्मणगढ़, दौसा, बूंदी, डीडवाना, चूरू, बीकानेर पूर्व, सूरतगढ़ और कोटा दक्षिण शामिल हैं।

केजरीवाल, सोरेन और अखिलेश भी जुड़े

सीएम गहलोत ने मार्च-2022 में सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस देने के बाद 10 फरवरी-2023 को बोर्ड, निगम, मंडल, आयोग के करीब एक लाख कर्मचारियों को भी ओपीएस देने की घोषणा बजट में की। गहलोत ने ओपीएस के मामले में पूरे देश में शुरुआत की।

बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्कु और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उनकी इस घोषणा को दोहराया है।

सीएम गहलोत ने जब से कर्मचारियों के लिए ओपीएस लागू की है, तब से विभिन्न कर्मचारी संगठन उनके प्रति आभार जताने अक्सर उनके पास आते रहते हैं।
सीएम गहलोत ने जब से कर्मचारियों के लिए ओपीएस लागू की है, तब से विभिन्न कर्मचारी संगठन उनके प्रति आभार जताने अक्सर उनके पास आते रहते हैं।

भाजपा, कांग्रेस की फॉलोअर बन सकती है

बीते 8-10 वर्षों में यह पहला राजनीतिक मुद्दा है, जहां भाजपा, कांग्रेस की फॉलोअर बनती दिखाई दे रही है। कांग्रेस के रिसर्च विभाग के प्रदेशाध्यक्ष प्रोफेसर वेदप्रकाश शर्मा ने भास्कर को बताया कि ओपीएस एक क्रांतिकारी कदम है। कांग्रेस इसे लागू करने में अव्वल रही है।

सीएम अशोक गहलोत द्वारा इसे लागू करने के बाद पार्टी ने गुजरात, हिमाचल व कर्नाटक में भी इसे लागू करने का वादा किया है। हिमाचल में पार्टी को सफलता भी मिली। कर्नाटक में भी ऐसा ही होगा। आगे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश में इस मुद्दे को भुनाया जाना तय है।

राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व सामाजिक-राजनीतिक विषयों के लेखक प्रो. के. एल. शर्मा का कहना है कि कोई भी प्रमुख राजनीतिक पार्टी किसी बड़े विषय को अनुत्तरित नहीं छोड़ सकती। भाजपा पूरे देश में इस समय एक ताकतवर पार्टी है। ऐसे में उसे इसे नकारने या स्वीकारने के मुद्दे पर अपना पक्ष बताना ही होगा।

अब तक किया है ओपीएस का विरोध

सीएम अशोक गहलोत ने विधानसभा में बजट के दौरान ओपीएस लागू करते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारी अपने भविष्य के चिंता से मुक्त होकर काम करें। इसके लिए ओपीएस जरूरी है।

  • नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने दिल्ली में 26 नवंबर-22 को बयान दिया था कि राज्यों में ओपीएस का लौटना देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा।
  • केन्द्रीय वित्त आयोग के वाइस चेयरमैन एन. के. सिंह ने 10 दिसंबर-2022 को दिल्ली में कहा था कि अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाली स्कीम है ओपीएस।
  • रिजर्व बैंक के गवर्नर एन. रघुरामन ने जनवरी-2023 में एक लेख लिख कर बताया कि ओपीएस अर्थव्यवस्था के लिए उचित कदम नहीं है।
  • योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने दिसंबर-2022 में दिल्ली में कहा था कि ओपीएस किसी भी सूरत में लागू नहीं की जानी चाहिए।
  • केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने जयपुर में 20 फरवरी 2023 को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि राज्यों को ओपीएस के लिए केन्द्र से कोई सहायता राशि नहीं मिलेगी। राज्य सरकार को इसे अपने बल पर ही लागू करना चाहिए। ओपीएस अर्थव्यवस्था के लिए उचित नहीं है।

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