1.6 करोड़ की एक नौकरी …!
खुलासा: रोजगार कार्यालयों का सालाना खर्च 16 करोड़ हकीकत
दो साल में रोजगार मिला सिर्फ 21 लोगों को
भोपाल. चुनावी साल में प्रदेश सरकार का फोकस रोजगार पर है। नौकरी की आस में प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में भी पंजीयन कराने वाले बेरोजगारों की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन हकीकत यह है कि जिस तेजी से पंजीयन कराने वाले की संख्या बढ़ी है, उस गति से रोजगार नहीं मिले हैं। पत्रिका ने रोजगार कार्यालयों की स्थिति और वहां से मिले रोजगार की पड़ताल की तो पता चला कि ज्यादातर युवाओं को सिर्फ ऑफर लेटर दिए जा रहे हैं। असल में दो साल में सिर्फ 21 लोगों को ही नौकरी मिली। जबकि इस बीच रोजगार कार्यालयों का सालाना खर्च 16.74 करोड़ पर पहुंच चुका है। इस हिसाब से देखा जाए तो एक नौकरी देने में सरकारी खर्च 1.6 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है।
बेरोजगारों की संख्या 38 लाख के पार
राज्य के रोजगार कार्यालयों में दर्ज बेरोजगारों की संख्या पर नजर डाली जाए तो इनकी संख्या 38 लाख के पार जा पहुंची है। इनमें 37 लाख 80 हजार 679 शिक्षित एवं 1 लाख 12 हजार 470 अशिक्षित बेरोजगार हैं।
फीस के नाम पर 4.29 करोड़ की वसूली
एक ओर बेरोजगार नौकरी और रोजगार के लिए भटक रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी जेब भी ढीली हो रही है। बेरोजगारों से आवेदन शुल्क और परीक्षा फीस के नाम पर वसूली भी हो रही है। स्कूल शिक्षा विभाग के शिक्षक पात्रता परीक्षा में अतिरिक्त शुल्क के रूप में 4.29 करोड़ वसूले।
2 लाख को ऑफर लेटर देने का दावा
वि धानसभा के चालू बजट सत्र में भी सरकार ने कुछ ऐसा ही सच स्वीकार किया है। कांग्रेस विधायक मेवाराम जाटव को खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने लिखित उत्तर में बताया कि एक अप्रेल 2020 से अभी तक 21 आवेदकों को शासकीय, अर्द्धशासकीय कार्यालयों में रोजगार उपलब्ध कराया गया। इसके अलावा रोजगार मेले के माध्यम से 2 लाख 51577 आवेदकों को ऑफर लेटर दिए गए। रोजगार कार्यालयों पर वर्ष 2021-22 में 16.74 करोड़ रुपए खर्च किए गए।