इंटरनेट के दौर में बच्चों से हेल्दी कम्युनिकेशन जरूरी !
इंटरनेट के दौर में बच्चों से हेल्दी कम्युनिकेशन जरूरी:जानिए, सोशल मीडिया के पॉजिटिव असर…कैसे बच्चों को सही रास्ता दिखाएं
इंटरनेट यूज करके बागी हो गया मेरा बच्चा – आजकल कई पेरेंट्स ऐसा सोचते दिखते हैं।
इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे किशोरों में अपनी स्वतंत्र पहचान की इच्छा, इस उम्र में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन, किशोरों में प्राइवेसी की दरकार, पियर प्रेशर इत्यादि।
पिछले पचास वर्षों की तो बात ही छोड़िए, पिछले बीस वर्षों में दुनिया काफी बदल गई है। सोशल मीडिया और इंटरनेट की अवेलेबिलिटी ने विश्व में किशोरों के व्यवहार को पॉजिटिवली और नेगेटेवली दोनों तरह से प्रभावित किया है। आज इसी पर चर्चा करेंगे।
सोशल मीडिया और इंटरनेट ने हमारे आपसी संवाद के तरीके में क्रांति ला दी है। टीनएजर्स, सोशल मीडिया और इंटरनेट के सबसे उत्साही उपयोगकर्ता हैं, जो फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे विभिन्न प्लेटफार्मों पर हर दिन घंटों बिताते हैं। आइए इससे उनके व्यवहार पर पड़ने वाले असर को देखें।
लूज कण्ट्रोल, बी ए रिबेल – परंपरागत मानदंडों को चुनौती
आज के दौर में किशोरों के पास किसी भी क्षेत्र में अवेयरनेस के पहले से अधिक साधन उपलब्ध हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट के कारण किशोरों की सूचना और संसाधनों तक सीधी पंहुच है। इस जानकारी और ज्ञान से भरे एनर्जेटिक युवा यथास्थिति को स्वीकारने से मना करें तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
यदि आप ध्यान से पॉजिटिव एटीट्यूड रखते हुए परिदृश्य पर नजर डालें तो प्रसिद्ध स्वीडिश एन्वायरमेंटल एक्टिविस्ट ग्रेटा थ्यूनबर्ग (Greta Thunberg) और हमारे पड़ोस की एजुकेशन एक्टिविस्ट मलाला यूसुफ़जई का उदय उनके सोशल मीडिया और इंटनेट तक पंहुच के कारण ही संभव हो सका है। वहीं इसी कारण किशोरों में LGBTQ+ समर्थक सामग्री तक भी पंहुच बनी है।
गुमनाम हैं कोई, अनजान है कोई – गोपनीयता के चलते, बिना कण्ट्रोल के राय रखने की स्वतंत्रता
यदि गोपनीयता और सुरक्षा का पूर्ण वादा किया जाए या भरोसा हो तो हम में से सभी कई मुद्दों पर अपनी बिलकुल अलग राय व्यक्त करेंगे। सोशल मीडिया और इंटरनेट पर नकली नामों से एक पूरी दुनिया बनाई जा सकती है, यह बात किशोरों में कुछ इसी तरह की भावना पैदा कर सकती हैं और किशोरों को उन तरीकों से अभिव्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं जिन्हें वे अन्यथा नहीं करते हैं।
इसे भी पॉजिटिवली और नेगेटवली दोनों तरह से देखा जा सकता हैं। जैसा 2010-11 के ‘अरब स्प्रिंग’ में हुआ जब हजारों युवा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे ट्विटर, फेसबुक के जरिये अरब देशों के तानाशाहों मुअम्मर गद्दाफी और होस्नी मुबारक के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल हुए। वहीं इससे साइबरबुलिंग, ऑनलाइन ट्रोलिंग, या यहां तक कि चरमपंथी विचारधाराओं की वकालत करना भी संभव है।
सिक्के का दूसरा पहलू – किशोरों की नेगेटिव कंटेंट तक पहुंच
सोशल मीडिया और इंटरनेट किशोरों को हानिकारक और नकारात्मक सामग्री के संपर्क में ला सकते हैं जो क्रोध, हताशा और विद्रोह की भावनाओं में योगदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया पर ‘ग्राफिक हिंसा’ या ‘अभद्र भाषा’ के संपर्क में आने वाले किशोर इसके प्रति उदासीन हो सकते हैं और समान व्यवहार अपनाना भी शुरू कर सकते हैं।
अकेलेपन का एहसास और अधिक इंडविजुअल सेंट्रिक लाइफ
परिवारों में भी अब सोशल लाइफ पहले जैसी नहीं रह गई – मम्मी, डैडी, बच्चे और दादा/दादी (भी) अपने-अपने मोबाइल फोन में बिजी हो जाते हैं। सभी के बीच पर्सनल कम्युनिकेशन कम हो गया है और इसी से किशोरों में अलगाव और अकेलेपन की भावनाएं आ सकती हैं, जिससे समाजीकरण के पारंपरिक रूपों के खिलाफ विद्रोह हो सकता है। सोशल मीडिया या इंटरनेट पर बहुत समय बिताने वाले किशोर वास्तविक जीवन में सार्थक संबंध बनाने के लिए संघर्ष कर सकते हैं और अपने साथियों या समुदाय से अलग महसूस कर सकते हैं। यह अधिक व्यक्तिवादी या वैकल्पिक जीवन शैली के पक्ष में पारंपरिक सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं के विरुद्ध विद्रोह का कारण बन सकता है।
पेरेंट्स इस स्थिति को कैसे संभालें
सोशल मीडिया और इंटरनेट पर कंटेंट की बाढ़ के इस माहौल में पेरेंट्स और बच्चों के बीच हेल्दी कम्युनिकेशन चीजों को सही दिशा में ले जा सकता है. इसके अलावा घर में स्क्रीन टाइम को कम करने के लिए स्क्रीन फ्री ‘टाइम’ और ‘जोन’ बनाए जा सकते हैं।