अतीक अहमद. – तांगे वाले के बेटे के माफिया बनने की कहानी ..!
तांगे वाले के बेटे के माफिया बनने की कहानी:अतीक पर 17 की उम्र में हत्या की पहली FIR; अब तक 101 मुकदमे, 10 जज केस से हटे …
अतीक अहमद...UP का वो माफिया जिसने क्राइम के दम पर अपनी पहचान बनाई। फिर उसी पहचान के बलबूते राजनीति में एंट्री ली। 28 साल की उम्र में विधायक बना तो पावर दोगुनी हो गई। जो भी सामने आया वो मारा गया। हर हाई प्रोफाइल हत्याकांड में नाम अतीक का आया। एक के बाद एक 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन कभी किसी केस में सजा नहीं हुई। 44 साल बीते और वो दिन आखिर आ गया जब अतीक को पहली बार सजा सुनाई गई।
28 मार्च 2023 को 17 साल पुराने उमेश पाल किडनैपिंग केस में अतीक को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। साथ ही अगले 6 महीने में कई और मामलों में उसे सजा सुनाए जाने की भी संभावना है। आइए आज अतीक की क्राइम हिस्ट्री के कुछ किस्से बताते हैं। इन किस्सों में चांद बाबा, नस्सन, अशरफ और राजू पाल की हत्या समेत केस से 10 जजों के पीछे हट जाने का भी किस्सा शामिल है।
चलिए सब कुछ एक तरफ से जानते हैं…
44 साल पहले अतीक पर दर्ज हुआ था पहला मुकदमा
साल 1962. प्रयागराज का चकिया गांव। तांगा चलाने वाले फिरोज अहमद के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा अतीक अहमद। फिरोज घर में अकेले कमाने वाले थे। जैसे-तैसे पैसे का इंतजाम कर अतीक को पढ़ाते, लेकिन उसका पढ़ाई में एकदम मन नहीं लगता था। नतीजा ये हुआ कि वो 10वीं में फेल हो गया।
इसके बाद उसने पढ़ाई पूरी तरह छोड़ दी। अब उसे जल्द से जल्द अमीर बनने का चस्का लग गया। लेकिन पैसा कमाने के लिए उसने मेहनत करना नहीं, बल्कि एक शॉर्टकट को चुना। लूट और अपहरण करके पैसा वसूलने का शॉर्टकट। वो रंगदारी वसूलने के लिए लोगों की हत्या तक को अंजाम देने लगा। साल 1979 में अतीक पर पहली बार एक हत्या का केस दर्ज हुआ। यहीं से शुरू हुई अतीक के क्रिमिनल बनने की कहानी।
एक तरफ अतीक क्राइम की दुनिया में अपने कदम जमा रहा था, वहीं दूसरी तरफ शहर में चांद बाबा नाम के गुंडे का दबदबा बढ़ता जा रहा था। इसका खौफ ऐसा था कि चौक और रानीमंडी में पुलिस तक जाने से डरती थी। पुलिस और नेताओं समेत सभी उसके खौफ से छुटकारा पाना चाहते थे। अतीक ने इसी डर का फायदा उठाकर पुलिस और स्थानीय नेताओं से साठगांठ बना ली।
अतीक को आपराधिक दुनिया में पुलिस और स्थानीय नेताओं का पूरा साथ मिलता। सात साल बीते, अब अतीक चांद बाबा से ज्यादा खतरनाक हो चुका था। वो लगातार लूट, अपहरण और हत्या जैसी वारदातों को अंजाम देता। अतीक के गुर्गों का नेटवर्क बढ़ने लगा। अब अतीक पुलिस के लिए भी नासूर बन गया। जिस पुलिस ने उसे अब तक शह दे रखी थी वही उसे जगह-जगह तलाशने में जुट गई। आखिरकार पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी के बाद लोगों को लगा कि अतीक का खेल खत्म हो गया, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उन दिनों प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र में राजीव गांधी की। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, “अतीक की गिरफ्तारी के बाद उसे छुड़ाने के लिए दिल्ली से एक फोन आया।” एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया।
जेल से बचने के लिए राजनीति का लिया सहारा
अतीक को जेल से बाहर आते ही समझ आ गया कि अब जेल से बचने के लिए राजनीति ही उसके काम आ सकती है। इसलिए उसने राजनीति में कदम रखना तय किया। साल 1989 तक अतीक पर करीब 20 मामले दर्ज हो चुके थे। उसका प्रयागराज के पश्चिमी हिस्से पर दबदबा हो गया। 1989 में उसने पहली बार विधायकी लड़ने का फैसला किया। किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय खड़ा हो गया।
अतीक के सामने कांग्रेस के गोपालदास यादव प्रत्याशी थे। साथ ही अतीक का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को भी अखरने लगा इसलिए वो भी अतीक को हारने के लिए चुनाव में खड़ा हो गया। चुनाव हुआ। नतीजे आए तो अतीक को 25,906 वोट मिले। वह 8,102 वोट से जीतकर पहली बार विधायक बन गया।
दिनदहाड़े, बीच बाजार चांद बाबा की हत्या कर दी
विधायक बनने के करीब 3 महीने बाद अतीक अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग में चाय की टपरी पर बैठा था। अचानक चांद बाबा अपनी गैंग के साथ वहां आया और दोनों गैंग के बीच गैंगवार शुरू हो गया। पूरा बाजार गोलियों, बम और बारूद से पट गया। इसी गैंगवार में चांद बाबा की मौत हो गई।
कुछ महीनों में एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया। चांद बाबा के ज्यादातर गुर्गे मार दिए गए, बाकी वहां से भाग गए। चांद बाबा की हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा। लेकिन विधायक होने की वजह से उस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया। आज तक अतीक इस मामले में दोषी साबित नहीं हो पाया।
5 बार विधायक, 1 बार सांसद बना अतीक

1991 में UP में राम मंदिर की लहर थी। अतीक फिर से निर्दलीय ही खड़ा हुआ। इस बार उसने BJP के रामचंद्र जायसवाल को 15,743 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया। 1993 के चुनाव में BJP ने तीरथ राम कोहली को मैदान में उतारा, लेकिन नतीजा नहीं बदला। अतीक अहमद 9,317 वोटों से जीतकर लगातार तीसरी बार विधानसभा पहुंचा। कहा जाता है कि इलाके में हर बार बूथ कैप्चरिंग होती, लेकिन कोई भी इसकी शिकायत करने प्रशासन के पास नहीं जाता था।
लगातार तीन बार जीता तो मुलायम सिंह यादव ने उसे मिलने लखनऊ बुलाया और पार्टी में शामिल कर लिया। इस तरह से अतीक पहली बार किसी राजनीतिक पार्टी के बैनर तले 1996 में उसी इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से विधायक बना। इस बार जीत का अंतर 35,099 का रहा। ये उस वक्त जिले की सबसे बड़ी जीत थी, लेकिन इस जीत के बाद उसका सपा से विवाद हुआ और वह सोनेलाल पटेल की पार्टी अपना दल में शामिल हो गया।
2002 में विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार अतीक सपा के खिलाफ अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा। 11,808 वोटों के अंतर से लगातार पांचवी बार विधायक बन गया। उस वक्त सोनेलाल खुद चुनाव हार गए थे। पार्टी को दो सीटें मिली थीं। पहली शहर पश्चिमी की और दूसरी फाफामऊ की, जहां अंसार अहमद विधायक बने थे। इस जीत के बाद सपा को लग गया कि अतीक जहां भी रहेगा जीतता रहेगा इसलिए मुलायम सिंह ने उसे बुलाया और दोबारा पार्टी में शामिल करवा लिया। इस बार इनाम में विधायकी नहीं, बल्कि सांसदी मिली।
लगातार 5 बार विधायक रह चुके अतीक अहमद पर मुलायम सिंह ने भरोसा जताया और उसे फूलपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया। सामने बसपा की केसरी देवी पटेल थीं। अतीक को नहीं रोक पाईं। 64,347 वोटों से जीतकर अतीक सांसद बना। इसके बाद तो उसका रुतबा बढ़ गया। सांसद बना तो शहर पश्चिमी सीट खाली हो गई। 6 महीने बाद उपचुनाव की तारीख का ऐलान हुआ।

हारा अशरफ लेकिन अतीक को लगा जैसे वह हार गया हो
अतीक अहमद ने शहर पश्चिमी सीट पर हो रहे उपचुनाव में अपने छोटे भाई अशरफ को सपा से टिकट दिलवाया। कभी अतीक की टीम का हिस्सा रहे राजू पाल बसपा में शामिल हो गए। मायावती ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया। दोनों के बीच कड़ी टक्कर हुई, लेकिन बाजी राजू पाल के हाथ लगी। वह 4 हजार वोटों से चुनाव जीत गए। ये हार अशरफ की थी, लेकिन अतीक को लगा कि जैसे वह हार गया हो। इसके बाद जो हुआ वह UP के इतिहास में दर्ज हो गया।
आइए अब राजू पाल मर्डर केस को जानते हैं।
विधायक राजू की गाड़ी बांस-बल्ली से भिड़ गई
25 जनवरी 2005, दोपहर के 3 बजे थे। सुलेमसराय की सारी दुकानों पर तिरंगे बिक रहे थे। दुकानों पर ‘मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन, शांति का उन्नति का प्रेम का चमन’ गाना बज रहा था। तभी यहां अशांति फैल गई।
इलाहाबाद शहर पश्चिमी के बसपा विधायक राजू पाल दो गाड़ियों के काफिले के साथ एसआरएन हॉस्पिटल से वापस अपने घर नीवा जा रहे थे। रास्ते में उनके दोस्त सादिक की पत्नी रुखसाना मिली और उन्हें अपने गाड़ी की आगे वाली सीट पर बैठा लिया।
राजू पाल खुद क्वालिस ड्राइव कर रहे थे। पीछे वाली सीट पर संदीप यादव और देवीलाल बैठे थे। पीछे जो स्कॉर्पियो चल रही थी उसमें चार लोग बैठे थे। काफिला सुलेमसराय के जीटी रोड पर था तभी बगल से तेज रफ्तार मारुति वैन राजू पाल की गाड़ी को ओवर टेक करते हुए एकदम सामने आकर खड़ी हो गई। राजू की गाड़ी सड़क किनारे बांस-बल्ली की दुकान पर जाकर भिड़ गई।
मारुति वैन से बदमाश उतरे और गोलियों से भूनना शुरू कर दिया
धड़धड़ाते हुए सामने खड़ी मारुति वैन से पांच हमलावर उतरे। ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। तीन गुंडों ने राजू पाल की गाड़ी को घेरकर फायरिंग शुरू कर दी। दो हमलावर काफिले की दूसरी गाड़ी पर फायरिंग करने लगे। किसी को भी उतरने का मौका नहीं दिया। गोलियों की आवाज सुनकर लोग घटनास्थल की तरफ दौड़े। जो घटना स्थल पर थे वह दूसरी तरफ भागे। दो किलोमीटर के इलाके में अफरातफरी का माहौल बन गया।
चार मिनट तक गोलियां चलीं, राजू पाल की मौत हो गई
पहले चार मिनट तक गोलियां चलती रहीं। अगले चार मिनट तक ये इंतजार किया जाता रहा कि राजू की सांस थम जाए। हमलावरों को यकीन हो गया राजू मर गए तब वह भागे। धूमनगंज पुलिस आई। गाड़ियों की हालत ऐसी नहीं थी कि उससे हॉस्पिटल ले जाया जा सके। पुलिस ने टैक्सी पकड़ी और राजू को लेकर एसआरएन भागी। डॉक्टरों ने हाथ जोड़ लिया। रात में पोस्टमॉर्टम हुआ तो राजू की बॉडी से 19 गोलियां निकलीं। पीछे वाली सीट पर बैठे संदीप और देवीलाल की भी मौत हो गई।

हत्या के आरोप के बाद भी सत्ता में बना रहा अतीक
राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बना रहा। 2005 में उपचुनाव हुआ। बसपा ने पूजा पाल को उतारा और सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट दिया। पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी। उनकी शादी को मजह 9 दिन हुए थे और वो विधवा हो गई, लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला। अशरफ चुनाव जीत गया।
इस पूरी वारदात के दौरान राजू पाल के रिश्तेदार उमेश पाल भी पीछे की गाड़ी में मौजूद थे। वो इस पूरी घटना के मुख्य गवाह थे। हत्याकांड के बाद अतीक ने कई लोगों से कहलवाया कि उमेश इस केस से पीछे हट जाएं लेकिन वो नहीं माने। 28 फरवरी 2006 को अतीक ने उमेश का अपहरण करवा लिया। उसे करबला के एक कार्यालय ले जाकर रात भर पीटा। नतीजा ये हुआ कि अगले दिन उमेश ने कोर्ट में अतीक के पक्ष में गवाही दी।
विधायकी की आड़ में क्राइम करता रहा अतीक
अतीक धीरे-धीरे एक बड़ा नेता तो बन गया, लेकिन अपनी माफिया वाली छवि से वो कभी बाहर नहीं निकल पाया। बल्कि नेता बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार और तेज हो गई। यही वजह है कि उसके ऊपर दर्ज अधिकतर मुकदमे विधायक-सांसद रहते हुए दर्ज हुए।
साल 2005 में राजू पाल की हत्या से पहले अतीक पर साल 1989 में चांद बाबा की हत्या, साल 2002 में नस्सन की हत्या, साल 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या के आरोप लगे। ऐसा कहा जाता था कि जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाने की कोशिश करता, मारा दिया जाता। अतीक के खिलाफ अब तक 101 मुकदमे दर्ज हैं।
साल 2007 में जब बसपा की सरकार आई तो हालात बदले। अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई। 5 जुलाई 2007 को उमेश ने अतीक, अशरफ समेत कुल 11 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई। खुद इस केस की पैरवी हाई कोर्ट में करते रहे।
जब 10 जजों ने खुद को केस से अलग कर लिया
2012 में यूपी के अंदर विधानसभा चुनाव होना था। अतीक अहमद जेल में था इसलिए सपा ने टिकट देने से मना कर दिया। अतीक अपना दल से टिकट लेकर शहर पश्चिमी से प्रत्याशी बन गया। चुनाव प्रचार के लिए जमानत चाहिए थी। हाईकोर्ट में जमानत के लिए याचिका दायर की, हाईकोर्ट के 10 जजों ने खुद ही केस से खुद को अलग कर लिया।
11वें जज ने हिम्मत दिखाई और अतीक अहमद को जमानत दे दी। अतीक ने पूजा पाल के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाया। प्रदेश में सपा की सरकार बनी तो अतीक फिर से सपा में आ गया। अखिलेश के न चाहने पर भी मुलायम सिंह ने उसे सुलतानपुर से टिकट दे दिया।
पार्टी के अंदर विरोध हुआ तो अतीक की सीट बदलकर श्रावस्ती कर दी गई। चुनाव प्रचार करने वहां पहुंचा। मोदी लहर के बीच BJP के दद्दन मिश्रा ने अतीक को 85,913 वोटों से हरा दिया। हालांकि, दूसरे जिले में जाकर अतीक ने 2 लाख 60 हजार वोट हासिल करके एक छाप जरूर छोड़ दी। 2017 में विधानसभा चुनाव को लेकर सपा ने 2016 में ही तैयारी शुरू कर दी थी। सपा ने एक लिस्ट जारी की जिसमें अतीक को कानपुर कैंट सीट से उम्मीदवार बता दिया।
22 दिसंबर 2016 को अतीक करीब 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंच गया। पूरा शहर जाम हो गया। अतीक 8 करोड़ की गाड़ी ‘हमर’ पर सवार था। यह बात जब अखिलेश तक आई तो वह उखड़ गए। उन्होंने साफ कर दिया कि पार्टी के अंदर अतीक के लिए कोई जगह नहीं। इस एक फैसले के बाद अतीक का सियासी कैरियर मानों खत्म हो गया।
44 साल बाद अतीक को पहली बार सजा हुई
फिलहाल अतीक अहमद को उमेश पाल की किडनैपिंग मामले में उम्रकैद की सजा हुई है। उमेश पाल के मर्डर में भी वह आरोपी है। सजा के आधार पर अतीक अगले 14 साल तक जेल में ही रहेगा। उस वक्त उसकी उम्र 75 साल हो जाएगी। अगले 6 महीने में भी कुछ मामलों में फैसले आने हैं।

अतीक दोबारा चुनाव लड़ सकता है या नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शाश्वत आनंद ने बताया कि जब तक CrPc की धारा 389 या 482 के तहत हाईकोर्ट के द्वारा इस फैसले पर स्टे नहीं लगाया जाएगा तब तक वो चुनाव नहीं लड़ सकता। उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति को देखते हुए, कानूनी रूप से देखा जाए तो इस मामले में संगीन धाराओं और गंभीर आरोपों की वजह से स्टे मिलना लगभग नामुमकिन है।
ऐसे में तय है कि इस फैसले के बाद अतीक का राजनीतिक करियर पूरी तरह खत्म हो सकता है। उसके दो बेटे और भाई जेल में हैं। तीसरा बेटा फरार है। दो नाबालिग बेटे बाल सुधार गृह में हैं। पत्नी शाइस्ता परवीन फरार है, उसके ऊपर प्रशासन ने 25 हजार रुपए का इनाम रखा है। कुल मिलाकर पूरा परिवार इस वक्त तहस-नहस हो गया है।