अतीक को सजा…
अतीक को सजा…142 पन्नों के आदेश की इनसाइड स्टोरी:अशरफ को मिला सबूतों की कमी का लाभ, किडनैपिंग में इस्तेमाल पिस्टल पुलिस बरामद नहीं कर सकी
उमेश पाल अपहरण केस में MP/MLA कोर्ट ने माफिया अतीक अहमद और उसके दो साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। वहीं, उसके भाई समेत 7 लोगों को बरी कर दिया। आखिर हर कदम पर भाई का साथ देने वाले अशरफ के खिलाफ दोष सिद्ध क्यों नहीं हो सका? कोर्ट के 142 पन्नों के आदेश में इसका जवाब है।
दरअसल, उमेश अपहरण केस में अशरफ के साथ शूटर आबिद का भी नाम शामिल था। 142 पन्नों के आदेश के अनुसार, उमेश पाल ने विवेचक को बताया था कि जेल से आबिद के फोन से अशरफ ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी। लेकिन विवेचक ने न तो CDR निकलवाया और न ही जेल में जाकर पूछताछ की। बयानों में विरोधाभास और सबूतों के अभाव में अशरफ को फायदा मिला। वह उमेश पाल अपहरण केस से बरी कर दिया गया।
आदेश में लेखक एडवर्ड जी बुअर और राजनीति शास्त्री बेंथम को कोट किया
अपने 142 पन्नों के आदेश में विशेष न्यायाधीश एमपी एमएलए कोर्ट डॉ. दिनेश चंद्र शुक्ल ने महान लेखक एडवर्ड जी बुअर और महान राजनीति शास्त्री बेंथम को कोट किया। डॉ. दिनेश चंद्र शुक्ल ने कहा कि बेंथम ने कहा है कि साक्षी न्याय की आंख और कान होते हैं।
इसी तरह उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के श्रवण सिंह बनाम पंजाब केस का हवाला दिया। कहा कि आपराधिक वाद विधि की दृष्टि में स्वीकार योग्य साक्ष्य पर निर्भर करता है। कोई गवाह कोर्ट में साक्ष्य देकर अपने लोक कर्तव्य का निर्वहन करता है, जिसके आधार पर कोर्ट निर्णय करता है।
विशेष न्यायाधीश ने कहा- गवाह को प्रभावित किया गया
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट जाहिदा बेगम केस का भी हवाला दिया। कहा कि इस मामले में उमेश पाल का अपहरण करके उससे राजू पाल हत्याकांड में अभियुक्त द्वारा अपने पक्ष में बयान करवाया गया। अभियुक्त खान शौलत हनीफ के हाथ में यह पर्चा मौजूद था, जिसके आधार पर बयान हुआ।
यह समस्त परिस्थितियां प्रकट करती हैं कि गवाह को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया गया और अपने पक्ष में उसका बयान कराया गया। इससे पूरी न्यायिक व्यवस्था आहत होती है और जनता का विश्वास न्याय व्यवस्था पर डगमगाता है। इसके बाद विशेष न्यायाधीश डॉ. दिनेश चंद्र शुक्ल ने माफिया अतीक अहमद, खान शौलत हनीफ और दिनेश पासी को सजा सुनाई।
अपहरण में इस्तेमाल पिस्टल बरामद ही नहीं हो सकी
उमेश पाल 28 फरवरी 2006 में हुए अपहरण में जो पिस्टल इस्तेमाल हुई थी, वह अतीक अहमद के भाई अशरफ की बताई गई थी। धूमनगंज थाना प्रभारी ने अशरफ को 11 मई 2011 में कस्टडी रिमांड पर लेकर पिस्टल के बारे में पूछताछ की थी। लेकिन उसकी बरामदगी नहीं करा पाए।
बाद में अशरफ के खिलाफ आर्म्स एक्ट का एक केस दर्ज किया गया। चार्जशीट भी दाखिल की गई, लेकिन पुलिस कोर्ट में यह साबित करने में नाकाम रही कि अशरफ ने जान-बूझकर जेल से आरोपियों को अपनी पिस्टल दी थी। इसके कोई साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किए जा सके। अशरफ को इसका फायदा मिला।
5 सह अभियुक्तों के खिलाफ भी कोई साक्ष्य नहीं दे पाई पुलिस
उमेश पाल के अपहरण केस में पांच सह अभियुक्तों जावेद, फरहान, एजाज अख्तर उर्फ कटरा, इसरार और आसिफ उर्फ मल्ली के नाम सामने आए। इन पांचों के नाम 5 जुलाई 2007 को दर्ज की गई FIR में भी शामिल नहीं थे। इन पांचों के नाम घटना के चश्मदीद गवाह रहे दिलीप पाल ने अपने बयान में लिया था।
दिलीप ने कहा था कि ये पांचों आरोपी चैलेंजर गाड़ी में मौजूद थे। हालांकि पुलिस इस गाड़ी को ही बरामद नहीं कर पाई थी। उमेश पाल ने इन पांचों नामों को नहीं लिया था। दिलीप ने पहले उमेश पाल को इनके नाम नहीं बताए थे। यही कारण रहा कि ये पांचों आरोपी घटना में शामिल थे, यह साबित नहीं हो सका और सभी बरी हो गए।