नई शिक्षा नीति का लक्ष्य शिक्षा प्रणाली को बदलकर उसे परिपाटी से बाहर लाना है

भारत के शिक्षा तंत्र की लम्बे समय से यह कहकर आलोचना की जाती रही है कि वह तोता-रटंत की प्रणाली का पालन करता है, उसका पाठ्यक्रम आउटडेटेड है और उसमें शोध व इनोवेशन के ज्यादा अवसर नहीं हैं। इस पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2022 एक स्वागतयोग्य कदम है।

शिक्षा मंत्री डॉ. धर्मेंद्र प्रधान कहते हैं, नई शिक्षा नीति का ध्यान इस पर केंद्रित है कि स्कूलों में विद्यार्थियों को इस तरह से प्रशिक्षण दें कि उनके रोजगार पाने की सम्भावनाओं में वृद्धि हो। साथ ही भारतीय भाषाओं को भी महत्व दिया जाए। तो देखते हैं मौजूदा परिदृश्य में नई शिक्षा नीति क्या प्रभाव डाल सकती है।

शिक्षा प्रणाली को रीस्ट्रक्चर करना

नई शिक्षा नीति का लक्ष्य भारत की शिक्षा प्रणाली को सिरे से बदलकर उसे उसकी पुरानी परिपाटी से बाहर लाना है। इसके लिए उसे मौजूदा पाठ्यक्रमों में अहम बदलाव करना होंगे, शिक्षा की परम्परागत रीतियों को बदलना होगा और छात्रों में क्रिटिकल-थिंकिंग और समस्याओं को सुलझाने वाले कौशल का विकास करना होगा।

डिजिटल एजुकेशन व स्किल्स पर फोकस: कोविड के दौरान डिजिटल शिक्षा की जरूरत पर सबका ध्यान गया था। यही कारण है कि नई शिक्षा नीति में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को महत्व दिया गया है। यह नीति उच्च-गुणवत्ता के डिजिटल संसाधनों- जिनमें ई-बुक्स, ई-कंटेंट और ऑनलाइन कोर्स शामिल हैं- तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करती है।

वह राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम नामक एक स्वायत्त संस्था के विकास पर भी जोर देती है। साथ ही उसका फोकस नए जमाने की डिजिटल स्किल्स पर भी है, जिससे विद्यार्थी जॉब-रेडी बन सकें। व्हीबॉक्स के सीईओ निर्मल सिंह के मुताबिक डिजिटल स्किल्स पर फोकस से टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में माइक्रो-आंत्रप्रेन्योर्स के सृजन में मदद मिलेगी, जिससे 2030 तक पांच करोड़ अतिरिक्त नौकरियां निर्मित हो सकती हैं।

कौशल-आधारित पाठ्यक्रम

नई शिक्षा नीति उद्योग और शिक्षा के सहयोग के महत्व को समझती है और उनके बीच के अंतराल को पाटने के लिए ऐसे कौशल-आधारित पाठ्यक्रम का विकास करना चाहती है, जो उद्योग-केंद्रित हो। इससे उच्च शिक्षा संस्थान विद्यार्थियों को नौकरियों के लिए तैयार बना सकेंगे। शिक्षा नीति का सुझाव है कि प्रोफेसरों के रूप में इंडस्ट्री-प्रोफेशनल्स और विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाए, ताकि कक्षाओं में उनके वास्तविक अनुभवों का लाभ विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सके।

विविधतापूर्ण शिक्षा

नई शिक्षा नीति यह भी प्रस्ताव रखती है कि विद्यार्थियों को वैसी विविधतापूर्ण शिक्षा दी जाए, जिसमें कला, मानविकी, विज्ञान और कौशल-आधारित पाठ्यक्रमों का समावेश हो। सनस्टोर यूनिवर्सिटी के सीईओ आशीष मुंजाल ने एक चर्चा में कहा था कि क्रिटिकल थिंकिंग स्किल्स 21वीं सदी के जॉब-मार्केट में सफल होने के लिए बहुत जरूरी हैं।

नई शिक्षा नीति का विज़न यह है कि पेशेवर संस्थानों को 2030 तक उच्च शिक्षा के मल्टीडिसिप्लिनरी संस्थानों में परिवर्तित कर दिया जाए। स्टेम प्रोग्राम्स के अंडरग्रैजुएट्स व पोस्ट-ग्रैजुएट्स को सलाह दी जाती है कि वे अपनी पढ़ाई में 8 से 18 प्रतिशत तक सामाजिक विज्ञानों और मानविकी अध्ययन की शाखाओं का भी समावेश करें, ताकि उन्हें बुनियादी महत्व के विषयों की जानकारी मिले।

चयन-आधारित क्रेडिट प्रणालियां और प्रवेश व निर्गम के एकाधिक विकल्प

नई शिक्षा नीति ने जो चयन-आधारित क्रेडिट प्रणाली और प्रवेश व निर्गम के एकाधिक विकल्पों को सामने रखा है, उससे एक लचीली प्रणाली का विकास हुआ, जो क्रेडिट के ट्रांसफर की सुविधा दे सके और कुछ अनिवार्य व कुछ चयनित विषयों के सामंजस्य से अधिक विकल्प प्रस्तुत करे। मुंजाल कहते हैं, इससे विद्यार्थी अपनी पसंद के कोर्स चुन सकेंगे और अपने कॅरियर के लक्ष्य तय कर सकेंगे। इससे हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली अधिक प्रगतिशील बन सकेगी।

रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा

सरकार एक ऐसा इकोसिस्टम बनाना चाह रही है, जो शिक्षा में उद्यमिता, रचनात्मकता और इनोवेशन को बढ़ावा दे। नई शिक्षा नीति ने एक राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन के गठन का प्रस्ताव रखा है, जिसे आगामी पांच वर्षों में 50 हजार करोड़ की वित्तीय मदद दी जाएगी, ताकि भारतीय शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में रिसर्च को बढ़ावा दिया जा सके।

हमें अपने मौजूदा पाठ्यक्रमों में अहम बदलाव करना होंगे, शिक्षा की परम्परागत रीतियों को बदलना होगा और छात्रों में क्रिटिकल-थिंकिंग और समस्याओं को सुलझाने वाले कौशल का विकास करना होगा।

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