आज के दौर में आम है आइडेंटिटी क्राइसिस .!

जानिए कैसे इंसान के तौर पर खुद को पहचान बच सकते हैं आइडेंटिटी क्राइसिस से ….

Identity is not the face, Identity is not the trait, Neither is it the success pace, Nor is it the personality grace. Let alone it being your cliché phrase, Or did you think, It’s some religious faith? My child, it’s alarming that it’s none, It’s even not tongue, Then how can it be, what problems you have overcome and the person you have become! This confused the little girl, and she was amidst a complex whirl, of thoughts, ideas and questions… What is it then, Father? You have declined already, all that mattered. I can think no more, of what makes an individual’s identity? Help me through, Help me carefully.

– Poem ‘Identity’ in book ‘Ginger and Honey’ by Jasleen Kaur Gumber

मेरे आस-पास ऐसे कई लोग हैं, जिनकी पहचान केवल उनका काम होती है।

एक मैथ्स टीचर की कहानी

मेरे एक परिचित ‘मैथ्स फेकल्टी’ हैं। कॉम्पिटिटिव एक्साम्स के लिए मैथ्स पढाते हैं। दिन में तीन क्लासेस लेते हैं। ऐसा वे सालों से कर रहे हैं। समाज में लोग उन्हें एक ‘मैथ्स टीचर’ के रूप में जानते और मानते हैं। वो खुद भी मैथ्स के अलावा किसी और विषय पर बात करना पसंद नहीं करते। फिर चाहे वो पॉलिटिक्स हो या सामाजिक समस्याएं। कहते हैं, अपना काम नहीं है!

तो समस्या क्या है? सब कुछ बढ़िया! अच्छी कम्पनी का फोर-व्हीलर चलाते हैं, पॉश कॉलोनी में घर है, बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं। एक परफेक्ट हैप्पिली मैरिड लाइफ।

फिर आया मार्च 24, 2020 का दिन. कोविड-19 से लड़ने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगा दिया गया। इसके पहले कि ऑनलाइन क्लासेस शुरू हो पातीं, 8-10 दिन के लिए सब कुछ ठप।

मेरे परिचित मैथ्स टीचर ने मुझे खुद बताया कि ‘ऐसे समय में मेरे मन में यह प्रश्न आया कि यदि में मैथ्स न पढ़ाऊं तो मेरा इस दुनिया में क्या अस्तित्व है?’

आइडेंटिटी क्राइसिस

किसी व्यक्ति के मन में अपने करिअर और जीवन को लेकर आए ऐसे संदेह और प्रश्नों को ‘आइडेंटिटी क्राइसिस’ कहते हैं। ऐसा किसी भी उम्र में कई कारणों, जैसे नौकरी चली जाने, कोई एक्सीडेंट हो जाने या यूं ही किसी व्यक्ति के मन में जीवन के अर्थ का प्रश्न उठने पर हो सकता है।

आज के दौर में जब दुनिया रोज एक नए बदलाव की ओर बढ़ जाती है, युवाओं में आइडेंटिटी क्राइसिस एक बड़ा इश्यू बन गया है। अपने जीवन के 15-20 साल किसी एक फील्ड में करिअर की तैयारी में बिताने के बाद जब वो वास्तव में अपना करिअर शुरू करते हैं तो अक्सर उन्हें ये महसूस होता है कि जो वो कर रहे हैं, उसमें वो खुश नहीं हैं।

समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि ‘You are what you do.’ से खुद को परिभाषित करने वाली पीढ़ी के लिए बहुत जरूरी है कि वो अपनी पहचान को सही ढंग से समझे। और इसके लिए सिर्फ करिअर, हाई सैलरी या ऐशो-आराम के साधन काफी नहीं हैं। उन्हें खुद को एक इंसान के तौर पर पहचानना होगा।

एक बेहतर इंसान कैसे बनें

सब जानते हैं। नहीं जानते तो गूगल पर सर्च करिए!

पचासों टिप्स मिलेंगी सभी लगभग एक जैसी – ग्रैटिट्यूड (कृतज्ञता रखें), धन्यवाद बोलें, डिजिटल डिटॉक्स करें, अपने आप से बात करें, माइंडफुलनेस की प्रैक्टिस करें, दूसरों और अपने आप को भी माफ करें, दयालु बनें, धैर्यवान बनें, दूसरों को दोष देना बंद करें, ईमानदार बनें, मददगार बनें, विनम्र बनें, दूसरों का छोटे और बड़े सभी का सम्मान करें, दूसरे व्यक्ति के नजरिये से चीजों को देखने की कोशिश करें आदि इत्यादि।

आज हम यह देखेंगे क्यों एक बेहतर इंसान होना दूसरों से अधिक हमारे खुद के लिए आवश्यक है।

हर व्यक्ति या समुदाय की एक फिलॉसोफी होती है, जिन पर उनका जीवन आधारित होता है। जैसे कुछ लोगों और समुदायों के लिए ‘कैसे भी करके’ व्यापार के लिए लाया गया सारा माल बेच देना ही जीवन का उद्धेश्य होता है किसी और व्यक्ति तथा समुदाय के लिए यह ‘कैसे भी करके’ कुछ धन बचा लेना हो सकता है। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में हमें ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलें हैं जब वास्तव में मनुष्य जीवन से ज्यादा धन को तवज्जो दी गई है।

लेकिन जरा सोच कर देखिए कि क्या आप जब अपने पूरे जीवन को केवल एक चीज – चाहे वह करिअर हो या सुरक्षा या फिर धन – से जोड़ देते हैं, तो आप उस को सीमित नहीं बना देते हैं?

आखिर करिअर क्या है? आपकी जीविका के लिए पैसे कमाने का जरिया, क्या उसे ही पूरे जीवन का उद्देश्य बना देना ठीक है?

मैं 3 उदाहरण देना चाहूंगा जहां लोगों ने अपने प्रोफेशन, एक्सपर्टाइज के एरिया, जन्म और परिवार से परे एक इंसान के रूप में पहचान बनाई – सचिन तेंदुलकर, लेडी डायना और एंजेलिना जोली।

दरअसल, बात यह है कि जिस दिन आप अपने आप को एक ‘करिअर’ के बजाय एक ‘इंसान’ के रूप में देखना शुरू कर देंगे. उस दिन से आपमें ‘जोर के झटके, धीरे से खाने की’ एक स्पेशल क्षमता आ जाएगी। फिर जीवन में आने वाली किसी मुसीबत से आपको उतना फर्क नहीं पड़ेगा। फिर वह किसी एक ‘करिअर का अंत’ ही क्यों न हो।

3 बातों का ध्यान रखें

1) अपनी पसंद के करिअर का चुनाव करें, अधिक धन के लालच में, उसके साथ कॉम्प्रोमाइज न करें। एक सीमा के ऊपर धन की उतनी वैल्यू नहीं रह जाती।

2) करिअर बनाने और धन कमाने के लिए कभी किसी मेहनतकश, ईमानदार लेकिन गरीब व्यक्ति के अधिकारों का हनन, या उसकी मजबूरियों को फायदा ना उठाएं। यदि आप ऐसा करेंगे तो वह आपको जीवन में किसी-न-किसी रूप में चुकाना ही पड़ेगा। यह भारतीय धर्म के ‘कर्म सिद्धांत’ के बजाय न्यूटन के ‘क्रिया-प्रतिक्रिया’ सिद्धांत के अधिक करीब है।

3) अपने करिअर में और अपने करिअर को बनाने के लिए हमेशा ‘मैक्सिमम गुड फॉर मैक्सिमम मासेस’ के प्रिंसिपल को अपनाएं।

 यह है कि न डॉक्टर, न इंजीनियर, न दरोगा, न एसडीएम, हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि आपके पद, ओहदों, प्रोफेशनल पहचान के परे आप कैसे इंसान हैं। और आपके जीवन और उसके बाद लोग आपको कैसे याद करते हैं।

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