भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को भले ही ‘देवदुर्लभ’ की संज्ञा देती है लेकिन लंबे समय से उपेक्षित महसूस कर रहे कार्यकर्ता चुनावी माहौल में ‘दर्शन दुर्लभ’ का मन बनाकर घर बैठ गए हैं। कार्यकर्ताओं की इसी नाराजगी को भांपकर संगठन ने वरिष्ठ नेताओं को कार्यकर्ताओं को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी। केंद्रीय पदाधिकारियों ने पहुंचकर संवाद भी शुरू किया लेकिन यहां भी आंतरिक गुटबाजी आड़े आ गई। हुआ यूं कि इंदौर में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कार्यकर्ताओं से संवाद करने पहुंचे थे। शहर और ग्रामीण क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई गई लेकिन इसके लिए आमंत्रण चुनिंदा कार्यकर्ताओं को ही दिया गया। कुछ ऐसे पदाधिकारियों को भी न्योता भेजा गया जिन्होंने बैठक में ही कह दिया कि मैं कहां नाराज हूं मैं तो पूरे समय काम कर रहा था। वरिष्ठ नेताओं ने स्थानीय पदाधिकारियों की ओर देखा तो वे बगले झांकने लगे। अब इस बात की पड़ताल की जा रही है कि पुराने कार्यकर्ताओं को न्योता देने वाली सूची तैयार किसने की थी।
संघ ने दिखाया आईना… 32 की उलझन में भाजपा
मालवा-निमाड़ क्षेत्र में पूरी ताकत झोंक रही भाजपा यहां की 66 विधानसभा सीटों को लेकर पुख्ता रणनीति तैयार करने की कवायद में जुटी है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी मालवा-निमाड़ की सीटें हारने से भाजपा को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। इस बार भाजपाई प्रभाव वाले क्षेत्रों के साथ ही कांग्रेस के प्रभाव वाले क्षेत्रों पर सक्रियता के दावे भाजपा पदाधिकारी कर रहे हैं, लेकिन बीते दिनों संघ पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में जो तस्वीर नजर आई उसने जिम्मेदारों के पैरों तले जमीन हिला दी। 66 में से 32 सीटों की स्थिति डांवाडोल बताई गई है और इनमें से भी 14 सीटें डेंजर झोन में हैं। अपने मजबूत गढ़ इंदौर में भी क्षेत्र क्रमांक एक, राऊ और देपालपुर क्षेत्र जो फिलहाल कांग्रेस के पास है वहां जिस मजबूती की दरकार थी वह भाजपा हासिल नहीं कर सकी। अब संघ के इस आईने के बाद कितनों की नींद टूटती है और कितनों के सपने ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
सेवा के सहारे मेवा पाने का जतन
इंदौर मददगारों और सेवाभावियों का शहर है। यहां दर्जनों सामाजिक और धार्मिक संगठन और व्यक्ति सेवाकार्य में जुटे रहते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद की जा सके। लेकिन कुछ ‘सेवाभावी’ बहुत हुई सेवा अब हमें भी मिले कुछ मेवा की तर्ज पर इन दिनों शहर के गलियारों में सक्रिय हैं। इंदौर विकास प्राधिकरण सहित उद्योग विभाग की योजनाओं से जुड़े कार्यों के लिए ये सेवाभावी प्रचारित भी कर रहे हैं कि ‘हमारे संपर्क बहुत मजबूत हैं आप तो काम बताइए’। जब इसी तरह के सेवा प्रस्तावों की गूंज इंदौर से भोपाल तक पहुंची तो इंदौर में पदस्थ रहे और अब भोपाल में काबिज अफसरों के कान खड़े हो गए। अब सेवाभावियों की अनुशंसा से आने वाली फाइलों पर बारीकी से नजर रखी जा रही है ताकि पता चल सके कि फाइल सेवा के लिए ही भेजी गई है या मेवा के लिए।
शिविर साधना से जीत का स्वप्न
कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दो तरफा चुनौती है। पहली संगठन में चल रही खींचतान से पार पाना और दूसरी ऐसी सीटों के लिए नई रणनीति बनाना जहां बीते दो या तीन चुनाव से लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। संगठनात्मक दृष्टि से भाजपा जितनी मजबूती नहीं होने की बात तो कांग्रेसी सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी कर चुके हैं लेकिन संगठन मजबूत किया कैसे जाए इस पर मंथन के बाद भी नतीजा नहीं निकलता। इस बार कांग्रेस पदाधिकारियों ने युवा कार्यकर्ताओं की फौज को मैदान में उतारा है। सेवा दल को जिम्मेदारी दी गई है कि वे लगातार हार वाली सीटों पर तीन से पांच दिन के शिविर लगाएं और कार्यकर्ताओं को तैयार कर जिम्मेदारी सौंपे। इंदौर में भी अप्रैल के आखिरी सप्ताह में शिविर लगाया जा रहा है लेकिन यहां क्षेत्र क्रमांक दो और चार की पहेली सुलझेगी कैसे यह किसी को पता नहीं है।