ग्वालियर-चंबल अंचल पर हमें गर्व था ..!

अंचल…..अंचल पर हमें गर्व था, अब भी है और आगे भी गर्व करना चाहते हैं। इसके लिए अब थोड़ा सा बदलिए तो, छोटा सा प्रयास कीजिए, एक संकल्प लीजिए और ठान लीजिए कि अमृतकाल से स्वर्णकाल का सफर हमें अपने अंचल को संवारकर पूरा करना है। आप सोच रहे होंगे कि थोड़ा सा क्या बदलना है तो आपको बता दें कि अंचल में पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन उनको स्वहित की बजाय जनहित में उपयोग करना होगा। हर समय श्रेय का नहीं, समर्पण का भाव हो इसके लिए दल और व्यक्तिवादी राजनीति को बदलना होगा। विकास की नीतियों और योजनाओं में सर्वोच्च स्थान जन-गण का हो, इसके लिए प्रशासनित तंत्र को नतमस्तक होने का स्वभाव बदलना होगा। बात जब हमारे गौरव की हो तो अहंकार परे रखना होगा। तंत्र की सकारात्मक सोच के साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति रखनी होगी। इस बहुउद्देश्यीय पविर्तन के साथ अंचल की महान विभूतियों को याद करना होगा, जिन्होंने हमारी धरा को इस तरह गढ़ा कि आज हम उसपर गर्व करते हैं। इन्होंने जो उपलब्धि और प्रसिद्धि पाई वे अविस्मरणीय है। हमारे गौरव को बढ़ाने वाली इन विभूतियों ने धरोहर के रूप में बहुत कुछ दिया जो इस धरा को हर प्रकार से समृद्ध बना रहा है। अमृतकाल में वक्त हैै उन विभूतियों को स्मृतियों से बाहर लाने का। विचार करने का कि उन महान व्यक्तियों ने जो भी जिस भी क्षेत्र में रचा क्या वह मात्र उनके लिए था। चेतना जाग्रत करेंगे तो पाएंगे कि उन्होंने इस धरा के लिए अपना सर्वस्व और सर्वोच्च दिया, यहां रहने वालों के हित में काम किया, तभी आज कोई व्यक्ति या वर्ग नहीं अपितु सभी उनका सम्मान करते हैं और उनके योगदान को गर्व के साथ याद करते हैं। जब इतना सब सोचेंगे तो मस्तिष्क में कौंधेंगा कि जब पूर्व काल में विकास और उपलब्धियों का हमारा भरापूरा इतिहास है तो आज हम किसी भी तरह से पीछे क्यों? वो कौन सी बातें, आदतें या गलतियां हैं जो हमें पीछे धकेल रही हैं? आप इस पर विचार करेंगे तो पाएंगे कि वो महान व्यक्ति श्रेय की होड़ में नहीं पड़े। उनका भाव जनकल्याण का था बिना अपना कोई व्यक्तिगत स्वार्थ देखे। तो आज अलग-अलग विधाओं और क्षेत्रों में अंचल की अगुवाई करने वाले भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? बड़े-बड़े विकास कार्य हो रहे हैं पर सभी में श्रेय लूटने का काम अधिक दिखाई दे रहा है। रोप-वे बनता ही नहीं, स्वच्छता रैंकिंग सुधरती नहीं, अवैध निर्माण ढह नहीं पा रहे, अतिक्रमण का दौर जारी है, अनुशासन दिखता नहीं, भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं। यह प्रश्न आप स्वयं से पूछिए कि निवेशकों का आकर्षण ग्वालियर-चंबल क्यों न हो, क्यों हमारे राजनेता अन्य शहरों में निवेशकों की सभाओं में तालियां पीटते हैं, वे उन्हें अपने अंचल तक लाने का मानस क्यों नहीं बना पाते। इसके पीछे के कारणों को पहचानना होगा, राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना यह संभव नहीं। अंचल का नेतृत्व करने वालों से प्रश्न पूछिए। जो समृद्ध विरासत है उसे आगे ले जाने में श्रेय को महत्व क्यों देना? समझ लीजिए, श्रेय छोड़ेंगे तभी श्री प्राप्त होगा।

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