एक पार्षद मनोनीत करने में केंद्र सरकार को इतनी दिलचस्पी क्यों है?
‘एक पार्षद मनोनीत करने में केंद्र सरकार को इतनी दिलचस्पी क्यों है?’, जब MCD एल्डरमैन मामले में SC ने पूछा
MCD Alderman Case: साल 1992 से पहले जब दिल्ली पूरी तरह केंद्र शासित क्षेत्र था, तब केंद्र की तरफ से नियुक्त प्रशासक ही एमसीडी में एल्डरमैन नियुक्त करते थे.अब प्रशासक की जगह यह अधिकार एलजी के पास है.
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कही ये बात
उपराज्यपाल कार्यालय के लिए पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कहा कि दिल्ली में विधानसभा का गठन संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत की गई विशेष व्यवस्था से हुआ है. दिल्ली सरकार का भी गठन इसी के तहत हुआ है, लेकिन नगर निगम का कामकाज संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत चलता है.
1992 से पहले जब दिल्ली पूरी तरह केंद्र शासित क्षेत्र था, तब केंद्र की तरफ से नियुक्त प्रशासक ही एमसीडी में एल्डरमैन नियुक्त करते थे. अब प्रशासक की जगह यह अधिकार उपराज्यपाल के पास है. इसलिए, उन्होंने 10 पार्षद मनोनीत किए हैं.
क्या उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार गलत थे
दिल्ली सरकार के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “पिछले 30 साल से दिल्ली सरकार की सलाह से ही अलग-अलग उपराज्यपाल एल्डरमैन की नियुक्ति करते रहे हैं. अचानक एलजी कह रहे हैं कि कानूनन यह अधिकार सीधे उनके पास है. इसका मतलब यह हुआ कि इससे पहले के सभी उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार गलत थे.
जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान यह कह चुकी है कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता से काम करना है तो यह एमसीडी के मामले में भी लागू होता है.” सिंघवी ने कहा कि 12 वार्ड कमेटी से एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों का चुनाव होता है. एल्डरमैन वार्ड कमेटी के सदस्य होते हैं और चुनाव में वोट करते हैं. इस तरह उपराज्यपाल की तरफ से मनोनीत पार्षद चुनाव के दौरान बहुमत को प्रभावित करेंगे.
पार्षद मनोनीत करने में केंद्र सरकार को क्यों दिलचस्पी है?
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुरक्षित रखते समय यह कहा कि एक नगर निगम में पार्षद मनोनीत करने में केंद्र सरकार को क्यों दिलचस्पी है? निगम के कामकाज को समझने वाले 12 विशेषज्ञ सदस्यों के मनोनयन का अधिकार अगर उपराज्यपाल को दिया गया, तो यह लोगों की तरफ से चुनी गई सरकार के काम में दिक्कत पैदा कर सकता है.