ग्रामीण पाठ्यक्रम में लचीलापन भी सिखाया जाए

ल 1970 की बात है। मैंने ग्लैमर की दुनिया, बॉम्बे (अब मुंबई) में कदम रखा था। तब यह किसी सपने की तरह था। मैंने पहले कभी हर मिनट भागती लोकल ट्रेन, चलते-चलते खाते हुए लोग और सभी हाथों में घड़ी नहीं देखी थी, जिसे लोग हर तीन मिनट में चेक करते थे। ये लोग मंज़िल की तरफ़ ऐसे भागते थे, जैसे समय के साथ होड़ हो और उनके बिना कोई बड़ा इवेंट रुका हुआ हो। पैसे की कमी, रहने की खराब जगह, परिवार से दूरी, खाने में अचानक बदलाव और बहुत ज़्यादा भीड़ से मैं डर गया था।

इसलिए मैंने तय किया, मैं रात में घूमूंगा, जब भीड़ कम होती है। इस तरह मुझे अचानक मनोज कुमार, धर्मेंद्र , केष्टो मुखर्जी जैसे अभिनेताओं ने मिलने का मौका मिला, जो अपना पसंदीदा स्ट्रीट फूड खाने रात में निकलते थे। ऐसी ही एक जगह थी, ‘पंचम पुरीवाला’, जो वीटी स्टेशन (अब सीएसटी) से 700 मीटर दूर, फ़ोर्ट की एक गली में है। यहां 6 पुरी और दो सब्ज़ी मिलती हैं और यह आज भी मशहूर है। ताज और ओबरॉय होटल में रुकने वाले भी ‘पंचम’ के पास खाने आते हैं।

मैंने हाई-प्रोफ़ाइल लोगों से मिलना-जुलना शुरू किया और समझा कि वे क्या खाते हैं। इस तरह मेरा स्वाद भी बदल गया और दही-चावल खाने वाले तमिल व्यक्ति से, मैं वड़ा पाव और पुरी खाने वाला पक्का बॉम्बेवाला (अब मुंबईकर) बन गया, वह भी घूमते-घूमते। मैं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को ऐसी जगहों पर ले जाने लगा जो कम चर्चित थीं लेकिन हाई-सोसायटी में मशहूर थीं। मेरे इस किरदार ने मुझे हर उस जगह आसानी से रहने में मदद की, जहां मेरे संस्थान ने मुझे भेजा। खुद भास्कर में रहते हुए मैं देश में 15 जगहों पर रहा।

यह उस वाकये से छोटी बात है, जो इस शुक्रवार मेरे साथ बीता। मैं दैनिक भास्कर के ‘एजुकेशन फेयर’ के लिए औरंगाबाद में था। यहां एक 23 वर्षीय लड़के से मेरी दूसरी बार मुलाकात हुई। उसके पिता एक फ़ाइव स्टार होटल, रामा इंटरनेशनल से जुड़े एक ब्यूटी पार्लर में हेयर ड्रेसर हैं। जब 2019 में मेरी उस लड़के से मुलाकात हुई थी तो वह अपने पिता के पेशे से जुड़ चुका था।

मैंने उससे पूछा था कि वह पढ़-लिखकर किसी नए पेशे में क्यों नहीं जाता, तो उसने गर्व से बताया था कि वह केमिस्ट्री और कंप्यूटर साइंस से बीएससी कर रहा है। मैंने उसे सलाह दी थी कि पढ़ाई पर ध्यान दे और पांच सितारा होटल में मिलने वाली टिप के लोभ में न फंसे।

फिर साल 2023 की शुरुआत में उसकी पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट के क्वालिटी कंट्रोल विभाग में बतौर असिस्टेंट नौकरी लग गई। वेतन 16,000 रुपए महीने था। उसे बताया गया था कि लिखित परीक्षा में अच्छे अंक आने पर हर साल प्रमोशन मिल सकता है। हालांकि उसने तीन महीने में ही नौकरी छोड़ दी और फिर हेयर-ड्रेसिंग के बिज़नेस में आ गया। इसलिए शुक्रवार को मेरी उससे फिर मुलाकात हुई।

उसका नौकरी छोड़ने का कारण हैरान करने वाला था। उसे खाना पंसद नहीं आया और वह पुणे की तेज़ भागती ज़िंदगी में सहज नहीं था। कोविड के बाद के दौर में बॉस की मांगों और काम के दबाव से उसे खीझ होती थी। शुक्रवार को एजुकेशन फेयर में मैंने लोगों से यही निवेदन किया कि वे ग्रामीण छात्रों को, जीवन में परिस्थिति के हिसाब से लचीलापन लाना सिखाएं। बड़े होते हुए उनकी जो कामकाज और खाने की आदतें रही हैं, वे उसमें न अटके रहें।

मन की शांति पाने के लिए, युवाओं को परिस्थिति को स्वीकार करना, उसके हिसाब से बदलाव करना और उसकी सराहना करना सीखना ही पड़ेगा।

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