चुनावी मौसम में राजनीतिक पार्टियों के लिए कुछ टिप्स

 राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए आने वाला समय बहुत रोमांचक साबित होगा…

लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व यानी आम चुनावों में अब एक साल से भी कम समय है। 50 सप्ताह से भी कम समय में भारतीय वयस्क पोलिंग बूथ पर मताधिकार का प्रयोग कर रहे होंगे। जो भी सत्ता में आने को लेकर गम्भीर है, उसे अब चुनावी मोड में आ जाना चाहिए। देखें तो भारत में चुनावी मौसम सदाबहार है। टीवी डिबेट व सोशल मीडिया राजनीति के अखाड़े बने रहते हैं। हमारी बहसों के मूल में यह रहता है कि देश का राज-काज किसे सम्भालना चाहिए, यह नहीं कि राज-काज किस तरह से सम्भाला जाए।

बहरहाल, इस बार के आम चुनावों से हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए? हमेशा की तरह, तीखे, अमर्यादित बयान और फर्जी खबरें? एआई की बढ़ती भूमिका के चलते आपको फेक स्पीच, तस्वीरों, वीडियो आदि की भी अपेक्षा करनी चाहिए, जो असली-नकली के भ्रम को बढ़ाने वाले हैं। आज हम जिस दौर में रह रहे हैं, उसमें अधिकतर लोग या तो पहले ही मन बना चुके हैं या ज्यादा सोचकर दिमाग को कष्ट नहीं देना चाहते हैं। अधिकतर वोटर स्वाभाविक भावनाओं से संचालित होंगे। ऐसे में राजनीतिक दलों को क्या करना चाहिए, इस बारे में कुछ टिप्स :

भाजपा या एनडीए के लिए टिप्स : वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियन को फीदरवेट से लड़ने के बारे में क्या बताया जाए? भाजपा चुनावों में मजबूती से जा रही है और प्रधानमंत्री की लोकप्रियता हमेशा की तरह कायम है। कांग्रेस और विपक्ष कमजोर हैं। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि टिप्स की क्या जरूरत, आराम करें और चुनाव जीतकर फिर से सत्ता में आ जाएं। लेकिन भाजपा आराम ही तो नहीं करती है और इसीलिए वह जीतती रहती है। क्योंकि चैम्पियन को भी फिटनेस बनाए रखने के लिए नियमित प्रैक्टिस करना होती है।

भाजपा का चुनाव अभियान जाहिराना तौर पर प्रधानमंत्री पर केंद्रित रहेगा, लेकिन उसे अपने विगत दस सालों की उपलब्धियां गिनाने के साथ ही आने वाले पांच सालों की योजनाएं भी बताना होंगी। यह भी ध्यान रखना होगा कि वह अपनी ताकत की आजमाइश इतनी न कर बैठे कि प्रतिपक्ष को विक्टिम कहलाने का फायदा मिल जाए। कुछ और शानदार आयोजन भाजपा के वोट-शेयर को बढ़ाने में मददगार साबित होंगे।

अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन, दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस-वे और मुम्बई में कुछ और मेट्रो लाइनों का शुभारम्भ होने जा रहा है। कुछ नई नीतियां और बुनियादी ढांचे की घोषणाएं वोट जीतने में सहायक होंगी। चूंकि हिंदुत्व की राजनीति वोटरों के बड़े तबके को अपील करती है, इसलिए उसे भी चुनाव अभियान का हिस्सा होना चाहिए। पर हिंदुत्व के मुद्दे पर ज्यादा तल्ख होना भी जरूरी नहीं, क्योंकि इससे कुछ वोटर उससे दूर छिटक सकते हैं। जब हिंदुत्व वोटर पहले ही आपके पास हैं तो अतिरिक्त प्रयास क्यों करना?

कांग्रेस और विपक्ष के लिए टिप्स : कोशिशें ज्यादा करें और उम्मीदें कम रखें। भाजपा को हराना कठिन है क्योंकि उसके पास भरपूर संसाधन और बंधे हुए वोटर हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि प्रयास नहीं किए जाने चाहिए। कांग्रेस के लिए फिलहाल सबसे जरूरी है राहुल गांधी की संसद सदस्यता को बहाल करवाना। उसे एक बैक-अप प्लान भी तैयार रखना चाहिए कि अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो नेता कौन होगा?

विपक्षी दलों को एकजुटता दिखाना होगी, अलबत्ता यह इतना सरल नहीं। हर पार्टी का अपना नेता है, जो कि अपने आप में एक स्टार है। सामंजस्य बनाना यानी अपनी स्टारडम और सम्भावित सत्ता से समझौता करना। लेकिन इसके बिना भाजपा को हराना सम्भव नहीं। विपक्ष कांग्रेस प्लस अपोज़िशन के यूपीए शैली वाले बंदोबस्त पर भी विचार कर सकता है। आज राहुल गांधी ही इकलौते ऐसे विपक्षी नेता हैं, जिनकी राष्ट्रीय छवि है।

लेकिन विपक्ष के लिए सामंजस्य बिठाने से भी बड़ी चुनौती यह होगी कि मतदाताओं के सामने क्या संदेश लेकर जाएं? वोटर भाजपा के बजाय विपक्ष को वोट क्यों दे? जब तक विपक्ष के पास इसका जवाब नहीं होगा, तब तक लोगों की भावनाएं उसके साथ नहीं जुड़ेंगी और भाजपा को हराने के लिए बनाया गया महागठबंधन अवसरवादी ही कहलाएगा। चूंकि विपक्ष के पास सीमित संसाधन हैं, इसलिए उसे गुरिल्ला शैली में प्रचार अभियान चलाना होगा। उसे सोशल मीडिया पर निर्भर रहना होगा और लोकप्रिय, भावनात्मक, प्रासंगिक कंटेंट देना होगा।

राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए आने वाला समय रोमांचक साबित होगा। आम चुनावों की रोमांचकता का मुकाबला कोई आईपीएल या वर्ल्ड कप नहीं कर सकता। लोकतंत्र में चुनावों का होना अद्भुत घटना है। चूंकि चुनावी मौसम शुरू हो गया है, इसलिए सभी पार्टियों को ऑल द बेस्ट!

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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