फेक न्यूज-फोटो पहचानने के लिए अब पारखी नजरों की जरूरत

गत वर्ष ब्राजील चुनावों के दौरान फॉरवर्ड फीचर के चलते वॉट्सएप पर खूब फर्जी खबरें वायरल हुईं। टिकटॉक भी बहुत जल्दी फर्जी वीडियो प्रसारित करने वाले मंचों में से एक हो सकता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: फेक न्यूज फैलने से रोकने के लिए टेक कम्पनियों को और बेहतर काम करना होगा

ट्विटर पर पिछले सप्ताह की शुरुआत में एक फोटो वायरल हुई, जिसमें दिखाया गया कि पेंटागन के पास एक विस्फोट हो गया है। नतीजा यह हुआ कि शेयर बाजार गिर गए। इस घटना ने उस आशंका पर मुहर लगा दी जो महीनों से लोग कह रहे थे कि भ्रामक जानकारियां अधिक प्रभावकारी साबित हो सकती हैं, क्योंकि फोटो को मनगढ़ंत रूप देने वाले नए एआइ टूल्स को इस्तेमाल करना आसान है।

इस समस्या को तकनीक से हल करना ठीक वैसा ही है जैसे कभी न खत्म होने वाला खेल ‘व्हैक-ए-मोल’। इसके लिए फोटो सबसे पहले कहां ‘जन्मी’, यह देखना निश्चित रूप से कारगर है। एडोबी अपने कंटेंट ऑथेन्सिटी इनिशिएटिव (सामग्री प्रामाणिकता पहल) के तहत यही कर रहा है। आजकल आएदिन नित नई सामग्री कृत्रिम रूप से गढ़ी जा रही है, ऐसे में हमें ऑनलाइन सामग्री को और अधिक शक की नजर से देखने की जरूरत है। पेंटागन की फोटो के साथ फैली गड़बड़ी का कारण रहा द्ग ट्विटर की कमजोर वैधता प्रणाली। एलन मस्क ने ट्विटर के ब्लू टिक नियम बदले ताकि इन पर सिर्फ ‘विशिष्ट’ वर्ग का एकाधिकार न रहे, जैसे कि सेलिब्रिटीज का और ज्यादा से ज्यादा लोग एक तय शुल्क देकर इसका उपयोग कर सकें। अफसोस कि उनकी इस नई प्रणाली का उपयोग नकलची अपने फायदे के लिए कर रहे हैं। फर्जी एआइ फोटो की समस्या केवल ट्विटर तक ही सीमित नहीं है। पेंटागन के निकट विस्फोट की यह फोटो मूलत: सबसे पहले फेसबुक पर सामने आई और अब इसके जैसी और भी कई फोटो वॉट्सएप समेत दूसरे अनेक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी देखी जा सकती हैं। पूर्व में आए एआइ टूल्स की सहायता से बने वीडियो के शुरुआती उदाहरण अब भी त्रुटिपूर्ण हैं लेकिन संभावना है कि अगले एक या दो साल में ये और भी अधिक वास्तविक लगने लगेंगे। डीपफेक तकनीक संबंधी स्टार्टअप्स में मिलियन डॉलर का पूंजी निवेश जो होने जा रहा है (निस्संदेह वैध उद्देश्यों के लिए)! जहां वास्तविक फर्जी वीडियो का दौर आने में अभी एक-दो साल का समय लगेगा, वहीं फोटो बनाना सदा से ही आसान रहा है। एडोबी ने हाल ही अपना फोटोशॉप सॉफ्टवेयर जनरेटिव एआइ टूल्स से लैस कर अपडेट किया है। इससे यूजर्स इमेज एडिटिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर फोटो के साथ काफी हद तक छेड़छाड़ कर सकते हैं। और बहुत से मोबाइल एप उपलब्ध हैं जो अच्छे इमेज जनरेटिंग टूल्स हैं, जिन्हें इस्तेमाल करना आसान है। एडोबी का मिडजर्नी या ओपनएआइ का डीएएलएल-ई 2 हस्तियों, राजनेताओं, हिंसा और युद्ध की तस्वीरें नहीं बनाएगा, जैसा कि ‘स्टेबल डिफ्यूजन’ सरीखा अन्य ओपन-सोर्स विकल्प करेगा। इंटरनेट शब्दावली याद कीजिए द्ग ‘ पिक्स ऑर इट डिडन्ट हैपन?’ जल्द ही पिक्स भी प्रमाण के लिए इतनी उपयोगी नहीं होंगी और हम खुद को वैध तस्वीरों पर भी सवाल उठाते हुए देखेंगे। ट्विटर यूजर्स इससे पहले मार्च माह में भी फर्जी खबर फैलाने की एआइ की क्षमता का आस्वादन कर चुके हैं, जब पोप बेनेडिक्ट की एक फोटो वायरल हो गई थी, जिसमें उन्हें पफर जैकेट पहने हुए दिखाया गया था। तभी भविष्य का अनुमान लग गया था कि फर्जीवाड़े की क्षमता स्याह रूप ले सकती है। ट्विटर पर भ्रामक जानकारियों के फलने-फूलने के लिए जनरेटिव एआइ व धोखा देने वाले ब्लू टिक का मिश्रण शानदार है और वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, जैसे कि मेटा प्लेटफॉर्म्स आने वाले सप्ताहों में कर्मचारियों की छंटनी करने वाले हैं, कर्मचारियों को चिंता है कि कंटेंट संतुलन टीम के सदस्यों को भी नौकरी गंवानी पड़ सकती है।

गत वर्ष इसी समय के आस-पास ट्विटर व फेसबुक ने भ्रामक जानकारी खत्म करने की क्षमताओं में सुधार किया था। आज हालात बदले नजर आते हैं। फेक न्यूज फैलने से रोकने के लिए टेक कम्पनियों को और बेहतर काम करना होगा। पर हमें भी उन्हें और संशय की नजर से देखना होगा। ऐसे समय में जब आंखों-देखी पर विश्वास करना जरूरी नहीं, हमें भी अपनी नजरें और पारखी करनी होंगी और शक करने की आदत डालनी होगी।

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