मूर्तियां ही नहीं टूटीं,करोड़ों की भावनाएं भी टूटी हैं ..!
मूर्तियां ही नहीं टूटीं,करोड़ों की भावनाएं भी टूटी हैं ..!
उज्जैन के महाकाल लोक में एक हल्के से आंधी तूफान में मूर्तियों का गिरना इनके निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायतों को पुख्ता कर गया।
महाकाल लोक परिसर में स्थापित सप्तऋषियों की खंडित मूर्तियां पिनाकी द्वार से हटा ली गई हैं। इन्हें महाकाल की पार्किंग में रखा गया है। बेशक, मूर्तियां जल्द ही बन जाएंगी। सप्त ऋषि अपने-अपने स्थानों पर फिर से प्रतिष्ठित हो जाएंगे। निर्माण एजेंसी का तीन साल का अनुबंध है। इसीलिए फिर से मूर्तियां बनाना उसकी मजबूरी है। लेकिन, इसमें कोई संदेह नहीं कि मूर्तियों का ढांचा बेहद कमजोर था। इनमें प्रयुक्त सामग्री निम्न गुणवत्ता की थी। इसीलिए वे हवा का एक झोंका भी न सह सकीं। मूर्तियों का गिरना महाकाल लोक के निर्माण में भ्रष्टाचार की शिकायतों को पुख्ता कर गया। लोकायुक्त ने निर्माण में गड़बड़ी पर अफसराें पर कार्रवाई की संस्तुति की थी। इसे नहीं मानने के कारणों के साथ ही सरकार को कांग्रेस के इस आरोप का भी जवाब देना होगा कि उसने कांग्रेस के शासनकाल में 18 जून 2019 को दिए गए आर्ट वर्क और मूर्तियों को लगाने के आदेश को क्यों बदला। आरोप है इस बीच टेंडर की शर्तों और डीपीआर में बदलाव हो गया। अष्टधातु की जगह फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक की मूर्तियां लगीं। वह भी अंदर से खोखली। जांच तो निविदा की शर्तों में बदलाव की होनी चाहिए। आखिर किसे फायदा पहुंचाने के लिए यह खिलवाड़ हुआ? वह कौन था जो भगवान के काम में भी कमीशन खा गया? इसके बाद जांच मूर्तियों के गढ़ने की होनी चाहिए। क्योंकि, एफआरपी की मूर्तियां पहली बार किसी मंदिर में नहीं लगीं हैं। महाराष्ट्र के पंढरपुर, शेगांव, दिल्ली के किंगडम ऑफ ड्रीम, अक्षरधाम मंदिर और बाली, इंडोनेशिया समेत देश-दुनिया के कई धार्मिक स्थलों पर भी एफआरपी की मूर्तियां लगी हैं। लेकिन, अब तक कहीं कोई मूर्ति भंजन नहीं हुआ। वे हवा में नहीं उखड़ीं। मतलब महाकाल लोक में कोई चूक तो हुई ही है। प्रकृति का प्रकोप भ्रष्टाचार को झुठला नहीं सकता। असल में तो प्रकृति के प्रकोप ने ही भ्रष्टाचार की पोल खोली है, अन्यथा यह तो सामने ही नहीं आता कि प्रतिमाओं में इतनी पोल रखी गई है। वैसे भी सप्तऋषि सनातन धर्म के पोषक हैं। हर इंसान का इन सप्त ऋषियों से जुड़ाव है। हरेक के गोत्र का इन्हीं से संबंध है। इसलिए करोड़ों हिंदुओं की आहत और टूटी भावनाओं को जोड़ने के लिए सरकार को आगे आना होगा। पूरे पुख्ता बंदोबस्त और नेकनीयती के साथ। यह उसकी जिम्मेदारी भी है।