राजधानी : कोचिंग संस्थानों में लापरवाही, कदम-कदम पर खतरा, संकरी सीढि़यां, ठसाठस छात्रों से भरे कमरे

मुखर्जी नगर हादसा : कोचिंग संस्थानों में लापरवाही, कदम-कदम पर खतरा, संकरी सीढि़यां, ठसाठस छात्रों से भरे कमरे ..

राजधानी के ज्यादातर निजी कोचिंग संस्थान भविष्य संवारने के नाम पर छात्रों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। बहुमंजिला इमारतों में घुसने के लिए संकरी सीढि़यां, प्रवेश व निकासी के छोटे रास्ते, छोटे कमरों में ठसाठस भरे छात्र ये हालात इन कोचिंग संस्थानों में आम हैं। ऐसे में छोटी से चिंगारी बड़े हादसे में तब्दील हो सकती है। मुखर्जी नगर का हादसा इसकी नजीर भी है। कोचिंग क्लास में सिर्फ धुंआ भरने से इस कदर अफरातफरी मची कि जान बचाने के लिए बच्चे रस्सी के सहारे पांचवीं मंजिल से नीचे उतरने को मजबूर हुए।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि हादसा बेशक ज्ञान बिल्डिंग में हुआ, लेकिन यहां चार-पांच मंजिला कई इमारतें हैं, जिनमें प्रवेश और निकास के लिए सिर्फ एक द्वार है। प्रवेश मार्ग पर ही बिजली मीटर व तारों के जाल और सैकड़ों की संख्या में लगे एसी-कूलर खतरे की घंटी बजाते रहते हैं।

1000 छात्रों को एक साथ पढ़ाया जा रहा

कोचिंग सेंटरों के ज्यादातर क्लास रूम छोटे हैं। इसमें 200-400 बच्चों के बैठने लायक ही जगह है, लेकिन 1000 से अधिक बच्चों को एक साथ पढ़ाया जा रहा है। पैसों के लालच में संचालक एक बैच में ज्यादा से ज्यादा बच्चों को पढ़ाते हैं। इसकी एक शिकायत पिछले दिनों अजब एकेडमी ने क्रिस्टोफर फोनेक्स कोचिंग इंस्टीट्यूट के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी की थी। शिकायत पत्र में कहा गया है कि हर बैच में दो-दो हजार बच्चे को एक साथ पढ़ाया जाता है। ऐसी स्थिति में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। शॉर्ट सर्किट ही नहीं, अगर भूकंप आ गया तो हालात खराब हो सकते हैं।

मोटी फीस वसूलने के बावजूद, सुरक्षा इंतजाम नहीं

बत्रा कांप्लेक्स में कई बिल्डिंग हैं, जहां बड़ी संख्या में कोचिंग सेंटर चलाए जा रहे हैं। कई कोचिंग सेंटर छोटे-छोटे कमरे में चल रहे हैं। इतना ही नहीं बेसमेंट में कक्षाएं लगती हैं। मोटी फीस वसूलने के बावजूद सुरक्षा के नाम पर संचालक हाथ खड़े कर देते हैं। बत्रा कैंपस स्थित जैना हाउस, अंसल बिल्डिंग, मनुश्री बिल्डिंग की पड़ताल में सामने आया कि प्रवेश द्वार पर ही एक साथ दर्जनों बिजली मीटर और तारें उलझी हुई हैं। इसी तरह बेसमेंट का हाल है, जहां हल्की सी बारिश होने पर जलभराव हो जाता है। ऐसे में बच्चों को करंट लगने की आशंका रहती हैं।

जर्जर स्थिति में है बचाव वाले उपकरण

ज्यादातर कोचिंग सेंटर में आग से बचाव वाले उपकरण तो हैं, लेकिन स्थिति जर्जर है। फायर एक्सटींग्यूशर की जांच तक नियमित नहीं होती है। इतना ही नहीं आग लगने की स्थिति में क्या करें और क्या नहीं करें इसकी भी जानकारी नहीं रहती है। संचालक का ध्यान सिर्फ बच्चों की संख्या पर रहता है। ऐसे में सूरत हादसे से सरकार व स्थानीय निकाय को सबक लेना चाहिए।

प्रचार बोर्ड से ढकी रहती है खिड़कियां

कोचिंग सेंटरों की खिड़कियां प्रचार बोर्ड से छिपी रहती हैं। एमसीडी से मिलीभगत की वजह से प्रचार बोर्ड बेतरतीब लगा दिए जाते हैं। हादसे के समय सेंटर में जब धुंआ भर गया और छात्र खिड़कियां तोड़कर नीचे उतरने लगे तो उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती कोचिंग संस्थान के प्रचार के लिए लगे बोर्ड को हटाना था। कुछ बच्चे इसे फाड़कर बीच से रस्सी से लटकते दिखे।

बिजली कंपनी ने एसी से धुआं निकलने की बात कही

प्रवेश द्वार और संकरे रास्ते में बिजली मीटर लगाने के संबंध में कंपनी का कहना है कि आपूर्ति करना कंपनियों की मजबूरी है। स्थानीय निकाय की जहां स्वीकृति होती है। वहीं मीटर लगाए जाते हैं। टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड का कहना है कि मुखर्जी नगर में कोचिंग सेंटर में आग लगने का कारण फिलहाल अज्ञात है। ऑन-ग्राउंड टीम के निरीक्षण और प्रथमदृष्टया जांच में चौथी मंजिल पर एसी यूनिट में धुआं शुरू हुआ, न कि बिजली मीटर के आसपास।

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