वित्त मंत्री जी, दूसरों की भी सुनें ! .. बेरोजगारी की समस्या है ?

वित्त मंत्री जी, दूसरों की भी सुनें !…मंत्रालय के मुताबिक बेरोजगारी तेजी से घटी, तो उम्मीदवार इनते क्यों?
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार की नीति लोगों को सक्षम, स्वतंत्र और समर्थ बनाने की है। उनके मुताबिक बेरोजगारी तेजी से घट रही है तो फिर नौकरी में पदों और उम्मीदवारों का अनुपात इतना असमान क्यों है?

According to the ministry, unemployment has decreased rapidly, then why so few candidates?
निर्मला सीतारमण – फोटो : File Photo

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई व को साल 2024-25 का बजट पेश किया। उसके अगले दिन संसद के दोनों सदनों में इस पर चर्चा शुरू हुई, जबकि वित्त मंत्री ने लोकसभा में 30 जुलाई और राज्य सभा में 31 जुलाई को इसका जवाब दिया। वित्त मंत्री का जवाब तीन बड़े आधारों पर टिका था..

1. सरकार हर मद में अधिक पैसा खर्च कर रही है।
वित्त मंत्री के अनुसार, पैसे खर्च करना अच्छी शासन व्यवस्था का एक मापदंड है। इसके फलस्वरूप हर वर्ग के लोगों का विकास और कल्याण होता है। वित्त मंत्री ने अपनी बात को आंकड़ों के जरिये पुष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार द्वारा अपने शासन के अंतिम साल 2013-14 में कितना खर्च किया गया था और एनडीए सरकार के पहले और आखिरी साल यानी 2019-20 में कितना खर्च किया गया और 2024-25 में कितना खर्च किया जाएगा।

जाहिर तौर पर संख्या यह दर्शाती है कि साल दर साल बजट में इजाफा हुआ है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 2013-14 में कृषि के लिए मात्र 30 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जबकि आज यह 1.52 लाख करोड़ रुपये है। यहां तक कि यह पिछले साल 2023-24 से भी आठ हजार करोड़ रुपये अधिक है। पिछले साल की तुलना में हमने इसमें वृद्धि की है, न कि कोई कमी। परेशानी मौजूदा कीमतों को लेकर थी, न कि स्थिर कीमतों को लेकर। बढ़ा हुआ व्यय उसी सूरत में प्रासंगिक होगा, जब इसे कुल व्यय या सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के अनुपात में बताया जाएगा। इसके अलावा ऐसे अनेक मद हैं, जिनके लिए आवंटित राशि को 2023-24 में खर्च ही नहीं किया गया। इसके बारे में नहीं बताया गया, क्यों?आंकड़ों के आधार पर टेबल है:

विभाग बीई  आरई 
कृषि और अन्य 1,44,214 1,40,533
शिक्षा 1,16,417 1,08,878
स्वास्थ्य 88,956 79,221
समाज कल्याण 55,080 46,741
वैज्ञानिक विभाग 32,225 26,651

(सभी आंकड़े करोड़ रुपये में)

2. बेरोजगारी की समस्या है ही नहीं
 वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार की नीति लोगों को सक्षम, स्वतंत्र और समर्थ बनाने की है। उन्होंने आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हुए कहा कि बेरोजगारी में 3.2 प्रतिशत की गिरावट आई है। एसबीआई की शोध रिपोर्ट में पाया गया कि 2014 से लेकर 2023 तक 125 मिलियन रोजगार पैदा किए गए। ये दोनों सरकारी रिपोर्ट हैं। सीएमआईई ने सरकार की इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए कहा कि मौजूदा बेरोजगारी दर 9.2 प्रतिशत है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जितनी बेरोजगारी है, उसमें 83 प्रतिशत युवा हैं। वित्त मंत्री ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि सैकड़ों या हजारों नौकरियों के लिए लाखों उम्मीदवार क्यों हैं? उदाहरण के लिए यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा 60,244 पदों के लिए 48 लाख से ज्यादा उम्मीदवारों ने परीक्षा दी, जिनमें 16 लाख महिलाएं थीं।
 
अगर बेरोजगारी तेजी से घट रही है तो नौकरी में पदों और उम्मीदवारों का अनुपात इतना असमान क्यों है? ऊपर के दो उदाहरणों में पद और आवेदकों का अनुपात 1:80 और 1:329 था। इंजीनियर, मैनेजमेंट ग्रेजुएट, वकील और पीजी किए हुए छात्र एक कांस्टेबल या क्लर्क के पद के लिए क्यों आवेदन कर रहे हैं?

बेरोजगारी की सच्चाई को जानने के लिए मैं प्रधानमंत्री और दूसरे मंत्रियों को यह सुझाव देना चाहता हूं कि उन्हें भारत के शहरों और कस्बों की गलियों में घूमना चाहिए। वित्त मंत्री तो अपने जन्म स्थान मदुरई से अपनी यात्रा शुरू कर विल्लुपुरम, जहां उन्होंने स्कूल की पढ़ाई की, जा सकती हैं और तिरुचिरापल्ली, जहां उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की है, में अपनी यात्रा समाप्त कर सकती हैं।

3. हमारी मुद्रास्फीति दर आपसे बेहतर है!
वित्त मंत्री ने कहा, “यूपीए सरकार हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड से पढ़े नेताओं द्वारा चलाई जा रही थी। उन्हें इस बात का पता नहीं था कि प्रोत्साहन को कब और कैसे हटाना है, जिसकी वजह से 2009 से 2013 के बीच मुद्रास्फीति दोहरे अंकों तक पहुंच गई।” बड़ी ही चालाकी से उन्होंने किसी का नाम न लेते हुए अपनी सरकार को फजीहत से बचा लिया। वित्त मंत्री तकनीकी रूप से सही थीं, पर मुझे लगता है कि उनका वक्तव्य प्रासंगिक नहीं है। लोग अब यूपीए युग में नहीं, बल्कि मोदी 2.1 के समय में रह रहे हैं।

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार, वे ऐसे समय में रह रहे हैं, जहां टमाटर, प्याज और आलू के दाम साल दर साल 30, 46 और 59 प्रतिशत की दर से बढ़े हैं। वे ऐसे समय में रह रहे हैं, जब थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 3.4 प्रतिशत है; सीपीआई मुद्रास्फीति 5.1 प्रतिशत है और खाद्य मुद्रास्फीति 9.4 प्रतिशत है। वे एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जब सभी श्रेणियों की मजदूरी पिछले छह सालों में स्थिर हो गई है। जब लोगों ने अप्रैल-मई 2024 में वोट दिया था तो उन्होंने यूपीए सरकार के समय में रही मुद्रास्फीति के खिलाफ नहीं, बल्कि मोदी सरकार के काल की मुद्रास्फीति के खिलाफ वोट दिया था।

वित्त मंत्री ने ऐसा कोई विचार नहीं सुझाया, जिससे मुद्रास्फीति को कम किया जा सके। उन्होंने न तो कीमतों में कोई कमी की, न ही करों या उपकरों में, न न्यूनतम मजदूरी बढ़ाई और न ही आपूर्ति बढ़ाने के लिए कोई प्रोत्साहन दिए। उन्होंने मुद्रास्फीति पर मुख्य आर्थिक सलाहकार के 15 शब्दों का उदाहरण दिया, “भारत की मुद्रास्फीति लगातार कम, स्थिर और चार प्रतिशत के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है”, इतना कहकर विषय को खारिज कर दिया।

वित्त मंत्री ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि अगर मुद्रास्फीति प्रबंधन इतना प्रशंसनीय था तो रिजर्व बैंक ने पिछले 13 महीनों से बैंक दर को 6.5 प्रतिशत क्यों कर रखा है? और इस साल इसमें कोई कमी भी नहीं होने वाली है। बजट पर आम लोगों की प्रतिक्रिया भी उतनी अच्छी नहीं रही। यहां तक कि सरकार की बड़ाई करने वाले भी डरे और सशंकित थे। अंत में वित्त मंत्री के जवाब से अन्य लोगों की तरह मैं भी उसी तरह की स्थिति में था, जैसा कि हम उनके बजट पेश करने के समय थे।

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