नोएडा : रेस्तरां संचालक उठा रहे फायदा .. नियम न कायदा ..?

 नियम न कायदा…रेस्तरां संचालक उठा रहे फायदा …

– रेस्तरां में खाने के शौकीन हर साल 100 करोड़ रुपये चुका रहे सर्विस चार्ज
नंबर1000 से ज्यादा छोटे-बड़े रेस्तरां हैं जिले में– 1800 करोड़ का है सालाना कारोबार

नोएडा। स्पेक्ट्रम मॉल स्थित रेस्तरां में रविवार रात सर्विस चार्ज को लेकर जमकर हंगामा हुआ। रेस्तरां के बाउंसरों ने पार्टी करने आई महिला और परिजनों से मारपीट तक कर डाली। घटना के बाद एक बार फिर सर्विस चार्ज के मुद्दे पर बहस छिड़ गई है। सच्चाई यह है कि पब, बार और रेस्तरां में खाने के शौकीन निवासी कर्मचारी कल्याण फंड के नाम पर हर साल 100 करोड़ रुपये से ज्यादा सर्विस चार्ज का भुगतान करते हैं। इस बाबत स्पष्ट नियम नहीं होने के कारण रेस्तरां संचालक मन मुताबिक पांच से दस फीसदी तक सर्विस चार्ज वसूल रहे हैं।

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशा-निर्देशानुसार कोई भी होटल या रेस्तरां बिल में स्वेच्छा से सर्विस चार्ज नहीं जोड़ सकता और इसका भुगतान करने के लिए ग्राहक को बाध्य भी नहीं कर सकता। ग्राहक को स्पष्ट रूप से सूचित करना होगा कि सर्विस चार्ज स्वैच्छिक, वैकल्पिक और उपभोक्ता के विवेक पर निर्भर करता है। खाने के बिल के साथ सर्विस चार्ज जोड़कर और कुल राशि पर वस्तु एवं सेवा कर लगाए जाने पर भी भ्रम की स्थिति है, लेकिन रेस्तरां संचालक कुल बिल पर पांच प्रतिशत जीएसटी भी वसूल रहे हैं। स्पष्ट नियम नहीं होने के कारण अक्सर रेस्तरां में ग्राहकों और स्टाफ के बीच विवाद की नौबत आती है।

नेशनल एसोसिएशन रेस्टोरेंट ऑफ इंडिया नोएडा चैप्टर के चेयरमैन वरुण खेड़ा बताते हैं कि नोएडा-ग्रेनो में छोटे-बड़े रेस्तरां की संख्या लगभग एक हजार है। जिनका अनुमानित सालाना कारोबार 1800 करोड़ रुपये के आसपास है। औसत सात प्रतिशत सर्विस चार्ज जोड़ा जाए तो यह सालाना 100 करोड़ रुपये से ज्यादा बैठता है।

डिस्काउंट ने बिगाड़ा गणित ..

दरअसल, कई फूड एप और बड़े ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिये रेस्तरां में बिल का भुगतान करने पर 50 प्रतिशत तक की छूट मिलती है। अब ज्यादातर लोग इस तरह के एप और पेमेंट विकल्प का इस्तेमाल करने लगे हैं। इससे रेस्तरां संचालकों की आमदनी पर विपरीत असर पड़ा है। इसमें सर्विस चार्ज का कोई विकल्प नहीं होता। रेस्तरां से खाना खरीदकर ले जाने पर भी सर्विस चार्ज देय नहीं होता।

रेस्तरां संचालकों ने कहा सरकार भी लेती है सर्विस चार्ज

रेस्तरां संचालकों का कहना है कि सरकार तत्काल सेवाओं के नाम पर सर्विस चार्ज लेती है। एयरपोर्ट पर कंविनियंस फीस के नाम पर यह चार्ज लिया जाता है। ऐसे में कोरोना संकट के बाद बुरे दौर से गुजर रहे रेस्तरां कारोबार में इसको लेकर विवाद नहीं होना चाहिए। यह शुल्क कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने में मदद करता है। कई देशों में तो यह अनिवार्य है। अगर यह गैरकानूनी है तो सरकारी इस पर जीएसटी क्यों ले रही है।

जहां महंगा खाना वहां कम टैक्स

बड़े रेस्तरां में खाने के आइटम महंगे होते हैं। वहां आमतौर पर पांच से सात प्रतिशत तक सर्विस चार्ज लिया जाता है। वहीं छोटे और मध्यम श्रेणी के रेस्तरां में खाना सस्ता होने की स्थिति में कई जगह आठ से दस प्रतिशत तक सर्विस चार्ज वसूला जा रहा है।

कोर्ट के भी स्पष्ट निर्देशरेस्तरां में सर्विस चार्ज से संबंधित मामला दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इस मामले में 24 जुलाई को सुनवाई भी होनी है। हालांकि, रेस्तरां एसोसिएशन की ओर कोर्ट के अंतरिम आदेश से संबंधित स्पष्ट हिदायतें भी दी गई हैं कि डिस्प्ले बोर्ड और मेन्यू कार्ड पर सर्विस चार्ज दिखाकर गुमराह नहीं किया जाए। जिससे उपभोक्ताओं को लगे कि यह कोर्ट के द्वारा अनुमोदित है। सर्विस चार्ज की जगह उपभोक्ता की स्वेच्छा से कर्मचारी कल्याण कोष, कर्मचारी कल्याण योगदान और कर्मचारी कल्याण शुल्क जैसी शब्दावली पर विचार करने को कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होनी है।

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