प्राइवेट सीबीएसई स्कूल पैरेंट्स से लूट रहे ..!
प्राइवेट सीबीएसई स्कूल पैरेंट्स से लूट रहे ……. सौ करोड़
सीबीएसई स्कूलों में पहली से दसवीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के पैरेंट्स को लगभग 1595 करोड़ रुपए बेवजह चुकाने पड़े।

इंदौर। पहले भारी-भरकम फीस, फिर किताबों समेत पढ़ाई से जुड़े अन्य सामानों की कीमत का बोझ। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के माता-पिता के सपने का स्कूल संचालक फायदा उठाने में लगे हुए हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि केवल मध्यप्रदेश के ही सीबीएसई स्कूलों में पहली से दसवीं तक पढ़ने वाले करीब 50 लाख छात्र-छात्राओं के पैरेंट्स को लगभग 1595 करोड़ रुपए बेवजह चुकाने पड़े। अगर कमीशनखोरी और कमाई का यह खेल नहीं रुका तो इस साल भी यही स्थिति बनेगी।
…….. ने स्कूल संचालक बनकर बुक डीलर्स और उनके एजेंट से बात की तो सारी परतें खुलती चली गईं। सीबीएसई पैटर्न का सिलेबस एक समान है, लेकिन निजी स्कूलों में पब्लिशर्स राइटर्स की संख्या सैंकड़ों में है। यानी जितने स्कूल, उतने प्रकाशकों की किताबें। एक ही कक्षा, लेकिन स्कूल अलग तो किताब भी अलग।
केंद्रीय विद्यालय में सीबीएसई पैटर्न का एनसीईआरटी का पहली क्लास का कोर्स 217 रु. का तो प्रायवेट स्कूल का 1500 रुपए का। जबकि खुद सीबीएसई स्कूल ग्रुप (सहोदय) के डिप्टी सेक्रेटरी कहते हैं कि कोर्स 800 रु. में आना चाहिए। बुक डीलर्स के अनुसार स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबें इसलिए लेते हैं, क्योंकि उन्हें डीलर्स से 40-50 फीसदी कमीशन मिलता है।
इसमें स्कूल प्रबंधन बीच में कहीं नहीं आता और डीलर पूरी कमीशन का खेल सेट कर देते हैं। सत्र शुरू होने से पहले यानी दिसंबर से फरवरी के बीच डीलर के एजेंट सब तय कर चुके होते हैं। इतना ही नहीं, जब स्कूल की मोनो वाली डायरी, ड्रेस, ब्लेजर, स्वेटर, प्रोजेक्ट, टाई बेल्ट का वास्तविक दाम जाना तो इनमें भी स्कूल की कमाई औसत 50 फीसदी से ज्यादा है। यह स्थिति पूरे देश में है।
कुछ पुराने और कुछ नए पब्लिशर्स: गणित का पब्लिकेशन गोयल होगा तो इंग्लिश का लॉगमन और हिंदी का ऑक्सफोर्ड। इस तरह स्कूल और डीलर्स मिलकर सेट बनाते हैं। इसमें कुछ बुक्स फेमस पब्लिशर्स की तो कुछ नए पब्लिशर्स की ली जाती हैं। कारण, नए पब्लिशर्स की बुक में सीबीएसई से रिलेटेड कुछ नहीं होता। उनमें जीके, मोरल साइंस, करंट अफेयर्स, कम्प्यूटर जैसी बुक्स होती हैं। इनकी कीमत बहुत ज्यादा और कमीशन भी 50 फीसदी से ज्यादा होती है। हर बुक स्टोर्स के पास दर्जनों स्कूलों का ठेका होता है। इसी तरह मोनो लगी ड्रेस, प्रोजेक्ट वर्क का सामान, जूते-मोजे, मोनो सहित ब्लेजर या स्वेटर अन्य दुकान पर नहीं मिलेगा।
एनसीईआरटी तय करती है सिलेबस
एक केंद्रीय विद्यालय के पीआरओ मो. जलालुद्दीन अंसारी बताते हैं कि सिलेबस डिसाइड करना एनसीईआरटी का काम है और एक्जॉम लेना सीबीएसई का। एनसीईआरटी खुद भी बुक पब्लिश करती है लेकिन निजी स्कूल को इनकी बुक लेने की बाध्यता नहीं होती। शिक्षाविद् घनश्याम सोनी बताते हैं कि वास्तव में सीबीएसई का सिलेबस 10वीं बोर्ड से शुरू होता है। क्योंकि सीबीएसई निर्धारित प्रोफार्मा में सबसे पहली परीक्षा 10वीं की ही लेता है। ऐसे में पहली से लेकर 9वीं क्लास तक स्कूल इस व्यवस्था का फायदा उठाते हैं।
न हो एक्स्ट्रा बुक तो दाम होंगे आधे
अगर बुक सेट से बिना काम की किताबों को हटा दिया जाए तो इनके दाम आधे हो जाएंगे। और अगर स्कूल सिर्फ कमीशन लेना बंद कर दें तो दो हजार रुपए वाला सेट 1200 स्र्पए में आएगा। सहोदय के डिप्टी सेक्रेटरी मनोज बाजपेयी भी मानते हैं कि जीके, मोरल वैल्यू, करंट अफेयर्स जैसी किताबें नहीं लेना चाहिए, बल्कि स्कूल को इनकी नोट बुक्स बनवाना चाहिए।
निर्धारित दुकान से नहीं खरीदेंगे तब..
स्कूल, एडमिशन के समय पैरेंट्स को बुक स्टोर्स और ड्रेस की दुकान का विजीटिंग कार्ड देता है। बुक डीलर्स और स्कूल मिलकर हर क्लास का ऐसा सेट तैयार करते हैं जो केवल निर्धारित बुक स्टोर्स पर मिल सके। डीलर्स भी शहर की दुकानों में सप्लाई करने में ये ध्यान रखते हैं कि जिस दुकान से कमीशन सेटिंग नहीं है, उसे किताब न मिल सके।
हर साल क्यों बदलते हैं प्रकाशक
सीबीएसई हर साल सिलेबस नहीं बदलती, लेकिन स्कूल संचालक एक ही क्लास की किताब हर साल बदलते हैं। प्रकाशक भी एक-दूसरे का बखूबी साथ देते हैं। सिलेबस वही रहता है लेकिन एक प्रकाशक की किताब में जो चेप्टर आगे रहता है, दूसरा उसे बीच में कर देता है। सवाल यह है कि क्या एक साल में ही प्रकाशक और किताबों का स्तर निम्न हो जाता है?
प्रिंसिपल अपने हिसाब से चुनते हैं किताबें
हम केवल एनसीईआरटी की किताबें प्रमोट और रिकमंड करते हैं। ये प्रिंसिपल का नजरिया है कि वो किन किताबों का इस्तेमाल करते हैं। किताब प्रकाशक से स्कूल प्रबंधन कमीशन लेता है या नहीं, इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। हमने किताबों की लिस्ट एनसीईआरटी की बेबसाइट पर दे रखी है। एजुकेशन ऑफिसर, सीबीएसई, नई दिल्ली
फालतू किताबों से बढ़ती है कीमत
अच्छे स्कूल क्वालिटी से समझौता नहीं करते। मेरी नजर में कमीशन जैसी बात नहीं आई है। हर स्कूल को जीके, मोरल साइंस, करंट अफेयर्स जैसी किताबें बंद कर देना चाहिए। केवल मैथ्स, हिंदी और अंग्रेजी की किताब सहित पांच किताबों में सिलेबस पूरा हो जाता है। एक्स्ट्रा बुक्स हटाने से कोर्स 800 रु. में मिल जाएगा। इंदौर
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अब पैरेंट्स से मनमानी फीस नहीं वसूल पाएंगे सीबीएसई स्कूल
- केंद्रीय शिक्षा बोर्ड ने मान्यता और फीस संबंधी नियमों में किया बदलाव
- एडमिशन से पहले स्कूलों को अभिभावकों को देनी होगी पूरी जानकारी
…… अब सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) से संबद्धता प्राप्त स्कूलों में छात्रों का एडमिशन एक निर्धारित फीस पर हो सकेगा। इसके लिए स्कूल कोई अतिरिक्त फीस नहीं ले सकेंगे। सीबीएसई ने फीस को लेकर हो रही मनमानी पर लगाम लगाने के लिए मान्यता प्राप्त स्कूलों के लिए नए नियमों की घोषणा की है।
नए नियमों के अनुसार, स्कूलों को एडमिशन से पहले पैरेंट्स को फीस संबंधी पूरी जानकारी देनी होगी। जिससे पैरेंट्स को एडमिशन के बाद स्कूलों में लगने वाले हिडन चार्जेस से मुक्ति मिलेगी। यही नहीं स्कूलों को यह जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी से भी साझा करनी होगी।
वैसे तो छग शासन ने इस नियम को तीन साल पहले लागू कर दिए हैं। वहीं सीबीएसई ने इसे रिमाइंड किया है। सीबीएसई ने इस प्रक्रिया को मॉनीटर करने के लिए डीईओ को जिम्मेदारी सौंपी है। नए नियमों के अनुसार कोई भी स्कूल फीस बढ़ाता है, तो उसे डीईओ से परमिशन लेनी होगी।
बनाई जाएगी मैनेजमेंट कमेटी : सीबीएसई की ओर से स्कूलों में एक मैनेजमेंट कमेटी का गठन किया जाएगा। इसमें पैरेंट्स को भी शामिल किया जाएगा। जब भी कोई स्कूल अपने यहां फीस में वृद्धि करना चाहेगा, उसे पहले इस मैनेजमेंट कमेटी से एप्रूवल लेना होगा।
लर्निंग आउटकम पर होगा फोकस : नए नियमों के तहत सीबीएसई अब सिर्फ स्कूलों के लर्निंग आउटकम पर ही फोकस करेगी। इससे पता चलेगा कि छात्र जो स्कूल में पढ़ रहे हैं, वह उसे आता भी है या नहीं। प्रैक्टिकल पर जोर दिया जाएगा।
जिला शिक्षा अधिकारी आरएन हिराधर का कहना है कि अभी तक इस संबंध में कोई सर्कुलर नहीं आया है।
फीस नियामक आयोग के लिए कर रहे मांग : मनमानी फीस नियंत्रण के लिए प्रदेश में फीस नियामक आयोग का गठन करने की मांग पिछले छह साल से हो रही है। मामला हाईकोर्ट भी गया। जहां शिक्षा सचिव से इसके गठन के लिए शपथ पत्र भी मांगा गया। बावजूद नियामक आयोग का गठन नहीं हो सका।
अभी नहीं आया है सर्कुलर : जिला शिक्षा अधिकारी आरएन हीराभर का कहना है कि अभी इस संबंध में उनके पास कोई सकुर्लर नहीं आया है।