2050 में भी इसी तरह डूबेगी दिल्ली ..!

2050 में भी इसी तरह डूबेगी दिल्ली, नए मास्टर प्लान में बाढ़ से बचने के पर्याप्त उपाय नहीं!

दिल्ली के कई इलाकों में इस समय बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। इस बाढ़ का कारण ज्यादा बारिश का होना नहीं, बल्कि बारिश के पानी का सही तरीके से बाहर न निकल पाना है। शहरी मामलों के विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि दिल्ली में बाढ़ की स्थिति से कोई सीख नहीं ली गई है और नए मास्टर प्लान में भी इस तरह की परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए हैं। ऐसे में आने वाले समय में भी राजधानी को बाढ़ की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

इस समय दिल्ली के लिए नए मास्टर प्लान 2041 पर विचार किया जा रहा है। विचार को एक ड्राफ्ट के माध्यम से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की सदस्यता वाली जीओएम को सौंपा जा चुका है, जो इसके विविध आयामों पर विचार कर रही है। शहरी मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि 2041 में दिल्ली की संभावित आबादी का सही आकलन कर इसमें जल निकासी और जल प्रबंधन का सही तरीका पेश किया जाना चाहिए। लेकिन नए ड्राफ्ट में इसके लिए उचित व्यवस्था नहीं की गई है। विशेषज्ञों ने इसे भविष्य में दिल्ली को अपने ही पानी में डुबाने का प्लान बताते हुए जल निकासी और जल प्रबंधन किए जाने का सुझाव दिया है।

विशेषज्ञों का सुझाव है कि वर्षा जल के समुचित प्रबंधन के लिए हर नई कॉलोनी, नए पार्क, हर नए निर्मित भवन में वर्षा जल संग्रहण को अनिवार्य किया जाना चाहिए। बड़े होटलों, मॉल, बाजार और सार्वजनिक भवनों में भी वर्षा जल संग्रहण को अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसी तरह बड़े मार्गों के किनारे सही स्थान पर बड़े जल संग्रह केंद्र विकसित किए जाने चाहिए। इससे जितनी एरिया में उक्त भवन बने होंगे, उतने एरिया में बरस रहे पानी का संग्रहण किया जा सकता है। इससे एक तरफ तो बाढ़ से बचने में मदद मिलेगी, वहीं गर्मी के समय इसी पानी को दूसरे कार्यों में इस्तेमाल कर पानी की निर्भरता भी कम की जा सकेगी।

इस समय भी 100 मीटर एरिया से बड़े भवनों के लिए वर्षा जल संग्रहण केंद्र बनाना अनिवार्य है, लेकिन आरोप है कि इस तरह के भवनों में वर्षा जल संग्रहण केंद्र विकसित नहीं किए जा रहे हैं। ऊपर से बड़े भवनों में भूगर्भीय जल को खींचकर जलस्तर को गिराने का काम हो रहा है। इस पर अविलंब रोक लगनी चाहिए।

नोडल एजेंसी बने

दिल्ली जैसे क्षेत्र में अलग-अलग इलाके में काम करने वाली अलग-अलग एजेंसियां हैं। केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, डीडीए, एनडीएमसी और दिल्ली नगर निगम अपने-अपने क्षेत्र में भूमि, निर्माण और अन्य कार्यों के लिए काम करते हैं। एक नोडल एजेंसी के न होने के कारण सभी एजेंसियों का आपस में तालमेल नहीं हो पाता। विशेषज्ञों की राय है कि यदि सभी एजेंसियां एक नोडल एजेंसी के अंदर कार्य करें और किसी योजना के लिए सबकी जवाबदेही तय हो तो इस तरह की बाढ़ से निपटा जा सकता है।

प्रगति मैदान टनल ने खोली पोल

सिविल कार्यों में हमारी तैयारी कितनी निचले स्तर की है, इसकी पोल प्रगति मैदान में बनी सुरंग ने खोल दी है। प्रगति मैदान में लगभग 1.3 किलोमीटर लंबी सुरंग का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं लोकार्पण किया था। इसके लोकार्पण के समय भी दावा किया गया था कि इसमें सुरक्षा, जल निकासी और आपात सहायता से निपटने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की गई है। लेकिन बारिश के पानी ने इन सभी दावों की पोल खोल दी है। प्रगति मैदान टनल में भारी पानी जमा होने के कारण वह झील जैसा बन गया है और उसे अस्थाई तौर पर बंद कर दिया गया है।

अपने ही पानी में डूबने को मजबूर दिल्ली

शहरी मामलों के विशेषज्ञ जगदीश ममगांई ने अमर उजाला से कहा कि राजधानी में जल निकास की व्यवस्था 1976 की है, जबकि तब से शहर की आबादी न्यूनतम पांच गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है। इस दौरान हर गली में भारी संख्या में मकान बने हैं और हर मकान में रहने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है। लेकिन जल निकासी की व्यवस्था पर्याप्त नहीं हुई है जिसके कारण वर्षा का जल नहीं निकल पा रहा है। यही बारिश का पानी दिल्ली में बाढ़ का कारण बन रहा है।

नई कच्ची कॉलोनियों में भी जल निकासी-जल प्रबंधन की व्यवस्था नहीं

लुटियन दिल्ली जैसे इलाके में तो जल निकासी प्रबंधन अंग्रेजों के जमाने तक के हैं। लेकिन जो नई कच्ची कॉलोनियां विकसित की जा रही हैं, उनमें भी आबादी के अनुसार जल निकासी की सही व्यवस्था नहीं की जा रही है। यही कारण है कि भजनपुरा, सोनिया विहार, गोकलपुरी और ओखला जैसे इलाके थोड़ी सी बारिश में ही डूबने लगते हैं और लोगों को जान-माल का नुकसान उठाना पड़ता है।

फ्लड अलर्ट बेहतर हों- विशेषज्ञ

दि एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (teri) में बाढ़ नियंत्रण रिसर्च से जुड़े फेलो प्रसून सिंह ने कहा कि बारिश का जल एक संपदा की तरह है, जिसका भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सही तरीके से उपयोग न किए जाने पर यही संपदा दिल्ली जैसे शहरों के लिए खतरा बनकर उभर रहा है। उन्होंने कहा कि शहरी प्लानिंग में हर घर को अपनी क्षमता के अनुसार जल संचयन के लिए स्पॉट विकसित करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इससे वर्षा जल का संग्रहण कर बाढ़ को रोकने में मदद मिल सकती है।

किसी शहर का ढांचा इस तरह विकसित नहीं किया जा सकता, जो 50 साल बाद भी होने वाली वर्षा को संभालने में पूरी तरह सक्षम हो सके। इसके लिए पर्याप्त भूमि और धन की कमी हो सकती है। लेकिन 20-25 साल के लिए भी जो व्यावहारिक सिस्टम बनाया जाना संभव है, उसे बनाया जाना चाहिए।

प्रसून सिंह के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में बाढ़ को कंट्रोल करने के लिए मानसून के उचित पूर्वानुमान पर बाढ़ से प्रभावित होने वाले स्थानों का चयन कर उन पर तत्काल कार्रवाई करना ज्यादा लाभप्रद हो सकता है। इसके लिए सभी एजेंसियों को बेहतर तालमेल के साथ काम करना बहुत आवश्यक है।

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